Book Title: Jambudwip Ek Adhyayan
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 4
________________ अन्य क्षेत्रों की व्यवस्था इसी पद्म सरोवर के उत्तर भाग से रोहितास्या नदी निकलती है जो कि नीचे गिरकर हैमवत क्षेत्र में बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है । महाहिमवान् पर्वत के महापद्म सरोवर के दक्षिण भाग से रोहित नदी निकलकर हैमवत क्षेत्र में बहती हुई पूर्व समुद्र में प्रवेश कर जाती है । इसी तरह आगे-आगे के क्षेत्रों में क्रम से हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता-- रक्तोदा ये दो-दो नदियां बहती हैं। भरत क्षेत्र के समान ऐरावत क्षेत्र में भी छह खण्ड-व्यवस्था होती है। पर्वतों के कूट हिमवान् पर्वत पर ११ कूट हैं, महाहिमवान् पर ८, निषध पर ६, नील पर ६, रुक्मि पर ८ और शिखरी पर ११ कूट हैं। इन सभी पर्वतों पर पूर्व दिशा के कूटों पर जिनमन्दिर हैं और शेष पर देवों के और देवियों के भवन बने हुए हैं। इन भवनों में भी गृह-चैत्यालय के समान जिन चैत्यालय हैं। हैमवत क्षेत्र में जघन्य भोगभूमि की व्यवस्था है, हरिक्षेत्र में मध्यम भोगमूमि की व्यवस्था है । ऐसे ही रम्यक क्षेत्र में मध्यम भोगभूमि की एवं है रण्यवत क्षेत्र में जघन्य भोगभूमि की व्यवस्था है। विदेह क्षेत्र इस विदेह क्षेत्र के बीचों-बीच में सुमेरु पर्वत है। उत्तर के नील पर्वत के सरोवर से सीता नदी निकलकर पूर्व दिशा में बहती हुई पूर्व समुद्र में प्रवेश कर जाती है। वैसे ही निषध पर्वत के सरोवर से सीतोदा नदी निकलकर पश्चिम में बहती हुई पश्चिम समुद्र में प्रविष्ट हो जाती है। जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में स्थित सुमेरु पर्वत से विदेह के पूर्व और पश्चिम ऐसे दो भेद हो गये हैं। पुनः सीता-सीतोदा नदियों के निमित्त से दक्षिण-उत्तर ऐसे दो-दो भेद हो जाते हैं। पूर्व विदेह के उत्तर भाग में भद्रसाल की वेदी, चार वक्षार पर्वत और तीन विभंगा नदियों के निमित्त से आठ विदेह हो गये हैं । ऐसे ही पूर्व विदेह के दक्षिण भाग में आठ विदेह एवं पश्चिम विदेह के दक्षिण-उत्तर भाग के आठआठ विदेह होने से बत्तीस विदेह हो जाते हैं। इन बत्तीसों विदेह क्षेत्रों में भी छह-छह खण्ड माने हैं, अन्तर इतना ही है कि वहां शाश्वत कर्मभूमि रहती है, सदा चतुर्थ काल के आदि काल जैसा काल ही वर्तमान रहता है और यहां भरत क्षेत्र व ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्ड में षटकाल का परिवर्तन चलता रहता है। सीता नदी के उत्तरभाग में विदेह क्षेत्र में सीमन्धर भगवान् का समवसरण स्थित है। इसी नदी के दक्षिण भाग में युगमन्धर तीर्थकर विद्यमान हैं । सीतोदा नदी के दक्षिण में बाहु जिनेन्द्र एवं सीतोदा के उत्तर भाग में सुबाहु जिनेन्द्र का सतत विहार होता रहता है। जंबूवृक्ष व शाल्मलीवृक्ष इस विदेह क्षेत्र में मेरु के दक्षिण, उत्तर में देवकुरु और उत्तरकुरु नाम से उत्तम भोगभूमि की व्यवस्था है। इस उत्तरकुरु में ईशान दिशा में जंबूवृक्ष नाम का एक महावृक्ष है जो कि पृथ्वीकायिक है इसकी उत्तरी शाखा पर एक जिनमंदिर है । ऐसे ही देवकुरु में नैर्ऋत्य दिशा में शाल्मलीवृक्ष है, उस पर भी दक्षिणी शाखा पर एक जिनमंदिर है। ये दोनों महावृक्ष रत्नों से निर्मित होते हुए भी पत्ते, फल और फूलों से सुन्दर हैं। वायु के झकोरे से इनकी शाखाएँ हिलती रहती हैं और इनसे उत्तम सुगंध भी निकलती रहती है । ये वृक्ष भी अकृत्रिम होने से अनादिनिधन हैं। गजदंत पर्वत सुमेरु पर्वत की विदिशाओं में एक तरफ से सुमेरु को छुते हुए और दूसरी तरफ निषध व नील पर्वत को छूते हुए ऐसे चार गजदंत पर्वत हैं । इन पर भी कूटों पर देवों के भवन हैं और सुमेरु के निकट के कूट पर जिन मंदिर है। विशेष-सभी पर्वतों की तलहटी में, ऊपर में चारों तरफ, सरोवर, नदी, कूट, देवभवन और जिनमंदिरों के भी चारों तरफ वेदिकाओं से वेष्टित सुन्दर बगीचे बने हुए हैं । सुमेरु पर्वत इस जंबूद्वीप के बीच में विदेह क्षेत्र है, उसके ठीक मध्य में सुमेरु पर्वत स्थित है । यह एक लाख चालीस योजन ऊंचा है। इसकी नींव पृथ्वी में एक हजार योजन है अतः यह इस चित्रा भूमि से निन्यानवे हजार योजन ऊंचा है। पृथ्वी पर इस पर्वत की चौड़ाई दस हजार जैन धर्म एवं आचार १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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