Book Title: Jainagam me Bharatiya Shiksha ke Mulya Author(s): Dulichand Jain Publisher: Z_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf View full book textPage 5
________________ जैन संस्कृति का आलोक है। घमण्डी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। क्रोध की चरित्र को ऊँचा उठाएं भावना भी विद्याध्ययन में बाधक है। प्रमादी व्यक्ति ___आज सूचना तकनीकी (Information Technolज्ञानार्जन कर नहीं सकता। अतः भगवान् ने बार-बार ogy) का द्रूतगामी विकास हुआ है। रेडियो, टी.वी., अपने प्रधान शिष्य गौत्तम को संबोधित करते हुए कहा - कम्प्यूटर, इंटरनेट आदि द्वारा विश्व का सम्पूर्ण ज्ञान "समयं गोयम मा पमाये।" हे गौत्तम! क्षण मात्र भी प्रमाद सहजता से उपलब्ध हो रहा है, लेकिन अगर बालक के मत करो, अप्रमत्त रहो। प्रमाद पाँच प्रकार का है-मद, चरित्र निर्माण पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये वैज्ञानिक विषय (कामभोग), कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ), साधन उसे पतित कर सकते हैं। आज विश्व के सर्वाधिक निद्रा और विकथा (अर्थहीन. रागद्वेषवर्दक वाता)। ये समृद्ध राष्ट्र अमेरिका का एक विद्यार्थी १८ वर्ष की उम्र दुर्गुण आज हमारे समाज में बढ़ रहे हैं जो शिक्षा प्राप्ति में तक कम से कम १२००० हत्याएं, बलात्कार आदि के बाधक हैं। विद्यार्थी को सदैव जागरुक रहना चाहिए दृश्य टी.वी. आदि पर देख लेता है। उस विद्यार्थी के तथा अपना समय आलस्य, व्यसनों के सेवन, गप-शप कोमल मस्तिष्क पर इसका कितना भयंकर प्रभाव पड़ता आदि में नहीं विताना चाहिए। है? आज यही तकनीकी हमारे देश में भी सुलभ हो गई शिक्षाशील कौन? है। अनेक प्रकार के चैनल व चलचित्र टी.वी. पर प्रदर्शित होते हैं जो २४ घण्टे चलते रहते हैं। उनमें से अनेक उत्तराध्ययन सूत्र में एक स्थान पर प्रश्न आता है कि हिंसा व अश्लीलता को बढ़ावा देनेवाले, हमारे पारिवारिक शिक्षाशील विद्यार्थी किसे कहें? जिस व्यक्ति में आठ जीवन को विखण्डित करनेवाले होते हैं। हमारी सरकार प्रकार के निम्न लक्षण हैं वह शिक्षा के योग्य कहा गया भी अधिक आमदनी के लालच में उन्हें बढावा देती है। है। वे लक्षण इस प्रकार है इसलिए समाज का यह दायित्व है कि जो व्यक्ति शिक्षण १. जो अधिक हँसी - मजाक नहीं करता है। शालाएं चलाते हैं उनके द्वारा विद्यार्थियों को चरित्र२. जो अपने मन की वासनाओं पर नियन्त्रण रखता निर्माण के संस्कार दिए जाए। केवल नाम के जैन विद्यालय चलाने से काम नहीं होगा, उन विद्यालयों में जैन संस्कारों का भी ज्ञान देना होगा यथा माता-पिता की भक्ति, गुरु३. जो किसी की गुप्त बात को प्रकट नहीं करता। भक्ति, धर्म भक्ति व राष्ट्र - भक्ति । इसी प्रकार से ४. जो आचारविहीन नहीं है। विद्यार्थियों को मानव मात्र से प्रेम, परोपकार की भावना, ५. जो दोषों से कलंकित नहीं है। जीव रक्षा के संस्कार देने होंगे। उन्हें यह महसूस कराना होगा कि कोई दुःखी व्यक्ति है तो उसको यथाशक्य मदद ६. जो अत्यधिक रस-लोलुप नहीं है। देना, सामान्य - जन के सुख-दुःख में सम्मिलित होना, ७. जो बहुत क्रोध नहीं करता है। किसी के भी प्रति द्वेष नहीं रखना आदि संस्कार जीवन ८. जो हमेशा सत्य में अनुरक्त रहता है। इस प्रकार को उत्कर्ष की ओर ले जाते हैं। आज विश्व का बौद्धिक की शिक्षा मनुष्य को ऊँचा उठाने की प्रेरणा देती। विकास बहुत हुआ पर आध्यात्मिक विकास नहीं हुआ। महाकवि दिनकर ने बडा सुन्दर कहा है | जैनागम में भारतीय शिक्षा के मूल्य १८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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