Book Title: Jainacharya Nagarjun Author(s): M M Joshi Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 3
________________ 300 पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड है कि जो विभिन्न घटनाओं के काल-निर्धारण को उलझा देती हैं। बौद्ध नागार्जुन एवं जैन नागार्जुन के बारे में प्राप्त जानकारी का सही उपयोग करके उनका स्पष्ट काल-निर्धारण करना उन गुत्थियों को सुलझाने में सहायक तो होगा ही, साथ ही भारतीय ज्ञान-विज्ञान के उन्नयन में जैन मनीषियों के योगदान का भी स्पष्ट उन्मीलन करने में सहायक होगा। जैन साहित्य के शोधकों से मेरा अनुरोध है कि वे मात्र पश्चिमी विद्वानों द्वारा प्रस्तावित तिथियों को ही सदा सत्य न मान लें, अपितु जैन परम्परा तथा अन्य सम-सामयिक परम्पराओं के मिलान के बाद ही काल-निर्धारण करें। यदि जैन नागार्जुन के सम्बन्ध में समस्त उपलब्ध सामग्री का समीक्षात्मक विवरण तैयार हो सके तथा उनका ठीक काल निर्णय हो सके, तो वह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जायगा / इस दृष्टि से आयुर्वेद के इतिहास विशारद, जैन साहित्य शोधक एवं प्राचीन इतिहास तथा पुरातत्व वेत्ताओं का सामूहिक प्रकल्प लिया जाना उपयोगी होगा। अविद्या और उसका परिवार अविद्या मोहवृक्ष की वेल है, विष-वेल है, दुःखफला है, कुलटा ली है, पिशाची है, असती है, वेगवती नदी है एवं विषकन्या है / __इस अविद्या का पुत्र अहंकार है। इसकी पुत्रवधू ममता है। अहंकार के दो पुत्र हैंस्व-पर संकल्प-विकल्प। इन पुत्रों को रति और अरति नामक स्त्रियाँ ( पौत्रवधू ) हैं। इनके दो पुत्र हैं-सुख और दुःख / ___ इस प्रकार अविद्या का विशाल और अक्षय परिवार है। इसके कारण वह दिनोंदिन आनन्दपूर्वक बढ़ रही है। -आत्मप्रबोध (कुमार कवि) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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