Book Title: Jaina Stupa At Mathura Art And Icons
Author(s): Renuka J Porwal
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 7
________________ The Jaina Stupa at Mathura: Art & Icons वहाँ से लौटते हुए पुनः कर्नाटक के रास्ते धारवाड के समीप उत्तरी कर्नाटक पहुँची। यह धारा दक्षिण के उष्ण-परिवेश के कारण नग्न या अचेल ही रही और निर्ग्रन्थसंघ के नाम से जाती रही। दूसरी धारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होती हुई मथुरा पहुंची और वहाँ से विन्ध्य होती हई विदिशा और अमरावती के रास्ते उत्तर-पश्चिमी कर्नाटक पहँची. यह धारा नग्नत्व पर बल देती रही, किन्तु अपवादिक स्थिति में सीमित वस्त्र-पात्र को स्वीकृत भी करती रही, यह धारा यापनीय कहलाई। जो धारा मथुरा पहुंची थी वह भी विभक्त होकर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के रास्ते कल्याण, पुणे होती हुई उत्तर-पश्चिमी कर्नाटक पहुँची, यह धारा श्वेतपट्ट महाश्रमण संघ के नाम से ज्ञात हुई, इसी की एक शाखा – कूर्चपुर (कुचेरा-राजस्थान) के आधार पर कूर्चक संघ कहलाई। आज भी हलसी के अभिलेखों में जैनधर्म की इन चारों शाखाओं के उल्लेख उपलब्ध है। जो शाखा उत्तर-पश्चिमी भारत के रास्ते पंजाब और उत्तरी राजस्थान पहुंची थी वहाँ शीत की अधिकता के कारण नग्नत्व पर अडिग न रह सकी तथा कम्बल वस्त्र और पात्र को स्वीकार लिया गया, यह परिस्थिति के साथ समझौता था, यह शाखा श्वेतपट्ट महाश्रमण संघ के नाम से अभिहित होती रही है, श्वेताम्बर मुनि परम्परा इसी का परवर्ती रूप है। यही जैन धर्म की श्वेताम्बर और दिगम्बर शाखाओं के विकास का सच्चा इतिहास है, मथुरा का पुरातत्त्व इसी कहानी को स्पष्ट करता है। मथुरा के पुरातत्त्व का एक लम्बा इतिहास जो ईसा की प्रथम सहस्त्राब्दि अर्थात् ईस्वी सन् की प्रथम शती से लेकर बारहवी शती तक के परिवर्तनों की कहानी कहता है। वस्तुतः जैन सम्प्रदायो के उत्थान-पतन की यथार्थ कहानी मथुरा का पुरातत्त्व ही प्रस्तुत करता है। मथुरा में जैन पुरातत्त्व की सामग्री ईसा की प्रथमशती से लेकर ईसा की 11-12 वी शताब्दि तक की अनवरत काल क्रम से प्रस्तुत करता है। ___ बहन रेणुका जी पोरवाल ने इस सम्बन्ध में जो अध्ययन किया है वह सम्प्रदाय निरपेक्ष है और विद्वानों को उस दिशा में अधिक प्रयत्नशील होने का संकेत करता है। आज जैन समाज का और उसके विद्वानों का यह दुर्भाग्य है कि वे सम्प्रदाय निरपेक्ष जैन इतिहास की संरचना में प्रायः निष्प्राण बने हुए है। अच्छा हो कि बहन के प्रयत्न से मथुरा की जो सामग्री प्रकाश में आयी है और हम वास्तविकता को समझ सके। बहन रेणुका जी का यह प्रयत्न हमारा प्रेरक बने। उन्होंने इस सम्बन्ध मेरा दिशा-दर्शन में जो प्रयत्न किया है वह सम्प्रदायों की खाई को पाटने में सहायक हो। इस पुनीत्त कार्य में मेरा उन्हें सहयोग रहा है और एक गृहणी होकर भी विद्या के क्षेत्र में उन्होंने जो प्रयत्न किया है जैन समाज और विद्वत् वर्ग उसका लाभ उठाये। इति अलम्। सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर (म.प्र.)

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