Book Title: Jain Yog Adhunik Santras Evam Manovigyan Author(s): Mangala Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf View full book textPage 9
________________ 149 जैनयोग, आधुनिक संत्रास एवं मनोविज्ञान पाद टिप्पणियाँ 1 तिविहे जोगे पण्णत्ते तंजहा मणजोगे, वइ जोगे कायजोगे ।-ठाणांगसू स्था० 3, 301, सू० 124 / 2. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः / -पातंजलयोगसूत्र 1 / 2 तथा, द्रष्टुस्वरूपावस्थितिहेतुश्चित्तनिवृत्ति. निरोधो योगः ।-योगवार्तिक 1 / 2 / It my also be pointed out that in the Brahmanical tradition, these vows for mendicantle were nowhere prescribed for a householder till perhaps yogasastra first of all thought of having small vuows (anuvratas) for the househalder.-Dayanand Bhargava, Jaina Ethics P. 104. 4. जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ।-योगसूत्र 2 / 31 / 5. ......"एवं दोच्चा सत्तराइंदियायान्वि / नवरं दंडायनियस्स वा लंगडसाइस्स वा कुडुयस्स वा वाणं णइत्तग्"....." / -दशाश्रुतस्कन्ध भिक्षु प्रतिमावर्णन 7:9 / 6. वाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहाविहा / उग्गा जहा धरिज्जन्ति कायकिलेसं तमाहियं ।।-उत्तराध्ययन 30 / 27 / 7. कल्याण, सावनांक पृ. 406 / 8. उस्सासं न निरुंभइ, आभिग्गाहिओ वि किमु उ चिट्ठाउ सज्जमरणं निरोहे सुहुमुस्सासं तु झयणाए ।-आ० नि० 1505. / ताव सुहुमाणुपाणु धम्म सुक्कं च झाइज्जा ।-आ० नि० 1495 / 10. "पडिसंलीणया चउन्विहा पण्णत्ता तंजहा-इंदियपडिसंलीणया कसायपडिसंलीणया / -औपपातिकसूत्र तपोधिकार सूत्र 30 / 11. ण सक्का ण सोउं सदा सोयविसयमागया / रागदोसा उ जे तत्थ तं भिक्खू परिवज्जए / / ण सक्का रूवमट्टुं चक्खू विसयमागयं / रागदोसा उ जे तत्थ तं भिक्खू परिवज्जए ।-आचारचूलिका विमुक्ति अध्ययन / 12. अर्जुन चौबे, सामान्य मनोविज्ञान, प्र० खं० पृ० 401-14 / दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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