Book Title: Jain Vrat Katha Sangraha
Author(s): Lala Jainilal Jain
Publisher: Lala Jainilal Jain Saharanpur

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Page 32
________________ - ar 1(२) नरीश्वरव्रतकथा ॥ याविधिन्नतपालेजोकोइ। अजरअमरपदपावेसोइ. ॥ ४२ ॥ __ इति श्री पुष्पांजलिव्रतकथा सम्पूर्णम् । वत कथा। दो-चरणनमोजिनराजके, जाते दुरित नशाय। . ___ शारद वंदो भावसे, सद्गुरु सदा सहाय ॥ १॥ ॥चौपाई॥ जंबू द्वीप सुदर्शन मेरु । रहो ताहि लवणो दधि घेर ॥ मेरुसेदक्षिणभारत क्षेत्र। मग्धदेशसुखसम्पति हेतु ॥२॥ राज गृह नगरी शुभ वसे। गढ़ मठ मंदिर सुंदर लसे॥ श्रेणिकराजकरेसुप्रचंड । जिनलोनोअरियणपरदंड ॥३॥ पटरानी चेलना सुजान । सदा करे जिन पूजा दान ।। सभा मध्यवेठो सो सय । बनमाली शिरनायो आय ॥४॥ दोकर जोड़ करे सो सेव । विपुलाचल आये जिन देव ।। बर्द्धमानकोआगमसुनो । जन्मसुफलचित अपने गुनो ॥५॥ राजा रानी पुरजन लोग ।बंदन चले पूजने योग । चलत २ सो पहुंचेतहां । समोशरणजिनवरकाजहां ॥६॥ दे प्रदक्षिणा भीतर गये। वर्द्धमान के चरणों नये ॥ 'पुनिगणधरकोकियोप्रणाम । हर्पितचित्तभयोअभिराम ॥ दशविधिधर्मसुनोजिनपास । जाते गयो चित्त का प्रास। दोकरजोड़नपति बीनयो । अतिप्रमोदमेरे मने भयो ॥८॥ प्रभु दयाल अब कृपाकरेव । अतनंदीश्वरकहो जिनदेव ॥ अरुसवबिधिकहियेसमझाय । भावसहितयोंपूछोराय ! अवधिज्ञान घरमुनिवरकहें। कौशलदेश स्वर्गसम रहें। ताके मध्य अयोध्यापुरी। धनकण सुखीछत्तीसोकुरी ॥१॥ तिहिपुर राज करे हरिसेन । त्याग तेग बल पूरणसेन ॥

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