Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
THE FREE INDOLOGICAL
COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC
FAIR USE DECLARATION
This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website.
Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility.
If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately.
-The TFIC Team.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
HWAGeners-IS-NEELawwwsessenteyverEANSuperceACLEASEADERNET
शी जिनेन्द्राय नमः ॥
HERA
PSne
PREMIEREHATIOLESARDAR
जैनव्रतकथा संग्रह।
SAC
-
जिस में REऋषि पञ्चमी २ सुगन्ध दशमी ३ अनन्तषौदश । रत्नत्रय ____५ दश लामया ६ मुक्तावली ७ रवित्रत ८ पुष्पाजलि
र नंदीश्वरनत भादि नो व्रत
पायानो का संग्रह है।
वीर सम्वत् Ram
పలు ముంతనుడు మకుటముత్వడంతయునుడsala మంతకు
प्रथमावृत्ति ।
१०००
न्योछावर
तीन भाना
मिलने का पता-- जैनधर्म की कुळ छपाहुई पुस्तकें वा ग्रंथ इस पतेसे मिलेंगे
लालाजैनीलाल जैन 26 मु० देववन्द-जि० सहारनपुर
दल
21492094BRE
SERIA
ब्रमश इटावा मे छपा ॥
MARPALI TERIESepteERIESTAITARIANRAIPTRAIEEEPISRemrosagaRITERATE
Spesalsassisaksists at asalsasrkestast esakssestarsistee sakatesh
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
VROLET
4Iyers AAMR.
sk
R
ecket
Ama
ऋषिपंचमीब्रतकथा भाषा॥
एकदिवसबन्द जिनदेवा । स्तनागपुर
दोहा-बन्दों श्रीजिनराजके, चरणकमल गुणहीर।।
भवसमुद्रतारणतरण, हरणसकल भवपीर ॥१॥ चन्दौजिन वाणीसुभग, जाते दुरित नशाय । कथा पंचमीकी कहूं, गुरु के लागों पोय ॥२॥
॥ चौपाई॥ राज गृह नगरी शुभ वसै। शोणिक महाराज अतिलसै ॥ एकदिवसबन्दजिनराजा। श्रोणिकप्रभाकियासुखकाजा ॥३॥ व्रतपंचमीकहो जिनदेवा। किनपायो फलकर व्रत सेवा ॥ तवगणधर बोलेसुनसंता । हस्तनागपुर बसे महंता ॥४॥ धनपतिनगरसेठतहंबसै। कमल श्री वनिता गृह लसै ॥ पुत्र सुभविकदत्ततिसगेह । भयो पुनीतमदनसमदेह ॥५॥ धनपतिऔर विवाहीत्रिया। नामरूप श्रीपति अतिप्रिया ॥ तबकमलनीअतिदुखसहै । पुत्रसहितन्यारेगृहरहै ॥६॥ धनपति रूप स्त्री आनन्द । वन्धुदत्त सुत उपजो चंद ॥ ज्यों ज्यों वड़ेसयानेभये । त्योत्योसकलकलागुणलये ॥७॥ एकदिवसमिलदोनोंभ्रात । धन बिढ़वनकीकहियोबात ।। तात गात आनंदित भयो । रत्नदीपको आयसुदयो ॥८॥ संगलये योद्धा वह धीर । लये पाट अम्बर वर चोर ॥ वणिजयोग्यलीनेसबसाज । रत्नाभूषणवर गजबाज ॥६॥
-
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
(२)
ऋषिपंचमीव्रतकथा ॥ भविकदत्त मातासे बात । कहो वनिजको पठवततात ॥ बन्धुदतपुनि संग सुचले। औरभिलोगसंग,भले ॥ १०॥ सुनमाता तबधधकोहियो । तुम बिछुड़े सुत कैसे जियो ॥ तुमगृह मंडनकुलआधार । तुमबिनसबसूनो संसार ॥ ११ ॥ अरुतुम संग सोतिकापूत । सो व्यसनी सुनियतहै धूर्त ॥ जोहठ पुत्र वणिजकोजाउ । तोधूर्तकोमतपतिआउ ॥ १२ ॥ नदी नखी जो नंगी जीव । अरु दुर्जन करशस्त्रसदीय ॥ अरुवेश्याकेघरमेबास । तिनकासुतमतकरोविश्वास ॥१३॥ यह माताकी सुनि कर यात। रोम २ आनन्दोगात।। चलत शकुन सवनीकेनये । चलतरसागर तट गये ॥ १४ ॥ तहां भरे मोहन जो अपार । वस्तुगिणत बाढ़े विस्तार ॥ गये तिलक पहनके तीर । जामें कोई जाय न धीर ॥१५॥ भविकदत्त चितकीनोंचाव । गयो नगर में कर उच्छाव ॥ शन्य नगर ना कोई वसै । वस्तु बजारहजारों लसै ॥ १६ ॥ निर्भयभयो गयो सो तहां । चैत्यालय जिनवर को जहां। वंदेचंद्रप्रभजिनराज । सुफलजन्मतिनमानों आज ॥१७॥ बन्धुदत्त ने कीनों द्रोह । यान चलाये छोड़ो मोह ॥ कुछयक दिनमें पहुंचेतहां । रत्न द्वीपपहन है जहां ॥ १८ ॥ भविकदत्तफिरआयोथान । शून्य देख मन भयो मलान । मातावचनसुमरमनधीर । फिर आयो जिनवरकेतीर ॥१॥ इतनी बात यहां ही रही। अब यह कथा मातपर गई। पत्र मोहकी व्यापीपोर । कमल श्रीमत घरे न धीर ॥२०॥ क्षण २ दीर्घले निश्वास । भूली सुधिबुधि भूख न प्यास ॥ संगसखीजो स्योनीलई । अवधि ज्ञानमुनिवरढिंगगई ॥२९॥ वन्दि मुनीश्वर पूछे सोई । जासे पुत्र मिलन अब होई ॥
-
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
ऋषिपंचमीव्रतकथा ॥ जासेसुख परमानंदलहो । विछुरापुत्र मिलैसोकहो ॥ २२ ॥ सुने बचन तब मुनिवरकहैं । ज्यासों रोगशोक सबद हैं । जासे स्वर्गमुक्तिफलहोइ । व्रत पंचमीकरोभविलोइ ॥ २३ ॥ जोड़े कमलनी कर दोइ । कहो मुनींद्रकौन विधिहोइ ॥ सुनिनिमुनिवीलेअभिराम । मासअषाढसुक्खकाधाम २४ जबहिशुक्रपंचमिदिन होइ । तबहीव्रतकीजे भविलोइ ॥ व्रतकेदिनछोड़ो आरंभ । जिनवरजजोतजोसबदंभ ॥२५॥ वर्षपंच अरुमासहि पंच । येसब ब्रत पेंसठ सुनसंच ।। जब यह व्रत पूरे हो लोइ । यथाशक्ति उद्यापन होइ ॥२६॥ लीनो व्रत कमलनी भाय । सव दुख ताके गये पलाय ॥ कथासुभविकदत्तकीठहीं । नगरनमोसोगयोनहिं कहीं ॥२७॥ पहुंचो राजाके दरबार । दिन आथयो भयो अधिकार ॥ तहां न कोई मानव रहै। कासोंबात चित्तकी कहै ॥२॥ नृपकी सुता रूपगुण खान । बोली तासों कर सन्मान ॥ अहोधीरतुमआयेयहां। कोनजातिपुर निवसो कहां ॥२६॥ कौन भांतितुम आगमभयो । यह सन्देह भयो मोनयो । तासे भविकदत्त वृत्तांत । अपनोकहीभयो तब शांत ॥३०॥ सुनपुनि राजकुंवरि यों कहै । एक महाराक्षस यह रहै । तानेपुरकीन्हों विध्वंशा। नरनारिनकारहान वंशा ॥ ३१ ॥ वहपुत्री करराखो मोहि । ना जानों अब कैसी होहि ॥ तुम्हें देख बहकरिहक्रोध । सदालेत मानुष का शोध ॥३२॥ अब मैं एकजो तुमसे कहीं। मैं द्वारे मंदिर के रहो। तुमभीतर रहिदेउकिवारा । तोवासेकुछहोइ उबारा ॥ ३३ ॥ कुंवर राखिदृढ़ दये किवारा । आप रही मंदिर के द्वारा ॥ सबैनिशाचर आयो तहां । पुत्री मंदिर बाहर जहां ॥ ३४ ॥
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Than.hunandaname--
names
(४)
ऋषिपंचमीनतकथा । सो हठकर मंदिर में गयो। देखकुंवर प्रमुदितमन भयो । अबमेरेसी सबकाज । तुमदर्शन पायो मैं आज ॥ ३५ ॥ तुमतो मेरे मित्र निदान । कन्या राखी तुम्हरे जान ॥ अनमोकोतुमअतिसुखदेऊ। कन्याराजपाटसबलेऊ ॥३६॥ तबहि असुरनेकियो बिवाह । कन्या दे कीन्हीं उत्साह ॥ भविकदत्तमहराजकुमारी । सुखसेरहतसुमहलमझारी ॥३॥ सम्म खने मंदिर के रहैं। तातमात की सब सुधि कहैं। यहतोलब्धिसुइनकोभई । कथो जो वंधुदत्त की ठई ॥ ३८ ॥ बस्तुबेब अरू लीनी नई । नफा न एक दाम की भई ॥ सोमरयानदेशको बले । वीचनीचतस्करबहमिले ॥ ३ ॥ तिन मिल लट लयो सब संग । कठिन कष्टसे छोड़े.नंग ॥
आयेफेरतिलकपुरथान। भविकदत्तअवलोकेजान ॥१०॥ दम्पति लखि आनंदितमये । तबसन मिल आगे होलये ॥ वन्धुदत्तपावोंपड़गयो । तुम बिनभातसहादुखलयो ॥४१॥ चोरों लूट लये हम सबे । कठिन कष्ट से छोड़े अवै॥ भविकदत्तहंसबोलोवीर । कछु शंकामतकरोशरीर ॥ ४२ ॥ मेरे बहु लछमी भंडार । रत्न जहाज भरो इक सार ॥ ऐसे कह सब गृह में गये । वस्त्राभूषण सबको दये ॥४३॥ षटरस व्यंजन भोजन करे । तासे सबहि कष्ट परिहरे॥ कर सन्मान यानभरदये। सर्व लोगप्रमुदितमनभये ॥१४॥ बन्धुदत्त विनवे कर सेव । अब तुम चलो देश को देव ।। धर्म धुरंधर कुल आधार। तुम समनहींपुरुषसंसार ॥ ४५ ॥ तात मातके दर्शन करो। योसे सकल कष्ट परिहरो॥ अरुभावजसेबिनतीकरी । सुनधुनिसागोलीगणभरी ॥ १६ ॥ अव प्रिय जिय कोजे सतभाव । देखें कमल श्री के पांव ॥
-
-
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
ऋषिपषमीव्रतकथा ।
अरुसबमिलजुकहीहठबात । भविकदत्तमबमानीमात ॥४॥ बनिता सहितचढ़ोसोजहाज । त्रिय बोलीमलीप्रियसाज ॥ देव अनर्थ दिया संदूक । वस्त्राभरण भरे गई चूक ॥४८॥ सुनी धनी वाणी निजत्रिया। ऋद्विसिद्धबिनकम्पोहिया ॥ भविकदत्तआतुरहोधाय । नगरमध्यसोपहुंचोजाय ॥ ४ ॥ बन्धुदत्तचित चिंतो क्रूर । भातहिछांड़ गयो पुनि दूर ॥ वणिकोसहितमंत्रतिनकियो । सबहिदानमनवांछितदियो पहुंचे जाय समुदके तीरा । निज नगरी आये धर धीरा ॥ मिलेसहिजनगणअरुतात। मात मिलोप्रमुदितमन गात ॥ देख अपूर्व वस्तु संयोग । भये सर्व विस्मय युत लोग ॥ अरुसुंदरिघरभीतर लई । रूप श्री आनंदित भई ॥५२॥ ताहि देख सब पुर नरनारी । कोई नहीं तास उनहारी॥ माता वन्धुदत्त से कहै। यहसुंदरिदुःखित क्योरहै ॥ ५३॥ कौननगरीकिसकीयहधिया। किन उपकारसुतुमपरकिया ॥ सुनध्वनिबन्धुदत्तमुखइसो । रत्न द्वीपसागरमेवसो ॥ ५४॥ पृथ्वीपाल नृपतिकी सुता । राजादई हमें गुणयुता ॥ मात तात गृहकीसुधिकरै। अखिलदेखधीरनहिंधरै ॥ ५५ ॥ | हमतुमविननाकियोविवाह । सुन ध्वनिसोआनंदीसाह ॥ ऐसेही सबसाथिन कही। तब सब केमनआईसही ॥ ६ ॥ सुन सबके मनभयो उछाह । कीजे बंधुदत्तका व्याह । शोधघडीपंडितनेकही । व्याह करो तिनदूजे सही ॥ ५७ ॥ कामिन गावें मंगल चार । बिविध, भांति दीनी ज्योनार ॥ कुंबररहोमंदिरसतखनै । निंदिकर्मभुखजिन वरभनै ॥८॥ करसाहव दृढ़दये किवार । त्यागे तिलक ताम्बूलाहार ॥ ऐसे यहां कथांतरहोइ । भविकदत्तसुधिकहै न कोइ ॥९॥
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
(€)
ऋषिपमव्रतकथा ॥
भविकदत्त नगरी मे गयो । सब सामग्री ले आइयो || देखशून्यथल लई पछार । मुखजंपे धिक् २ संसार ॥ ६० ॥ तब वहदेव भयो प्रत्यक्ष । भविकदत्तहम तुम्हरी पक्ष ॥ अनतुम हमको आज्ञादेव | पुजनोंमन वांछितकरसेव ॥६९॥ अविकदत्तयहकहो निदान । पहुंचोंजाय भातके थान ॥ - देवसुभगवहुलीनोशाज । रत्नपटाम्बरगजअरुबोज ॥ ६२ ॥ चढ़ि विमान में पहुंची सहां । कमल श्री पौढ़ी थी जहां ॥ देखविभूतिपुत्रको सोइ । सत्यकिधोंयहस्वप्ना होइ ॥ ६३ ॥ भविकदत्त बोलो वर वोर । मिली माय मोको घरधोर ॥ सुने वचनत संशयगयो । गहभर अंकपुत्रभेट्यो ॥ ६४ ॥ बंधुदत्त जो कीनो पाप । कहा सर्व माता से आप ॥ माता बोली कर उत्साह । तासे बंधुदत्तकरे व्याह ॥ ६५ ॥ सो नित चित्त परिव्रतधरे । तासे मूढ़ व्याह विधिकरे ॥ सो तो बहू तुम्हारी आइ । ताको देहु पारनो जाइ ॥ ६६ ॥ वस्त्राभन बके जिते । माताको पहिराये तिते ॥ अरु निजकर की मुंदरीदई । बैठ सुखासन सतहं गई ॥ ६७ ॥ कमल श्री आवतहो देख । रूप श्री मन भई विशेख ॥ मिलीं परस्परजियसुखभयो । करसन्मान बैठकादयो ॥ ६६ ॥ कमल श्रीमंदिर पर गई । वचन सुनाय सो ठाढ़ी भई ॥ तबतिन जानी अपनीसास | पडीपांदृढ़ लईउसांस ॥६९ ॥ अरुसुतको आगमनसुनाइ । देभोजनगृह पहुंचीजाय ॥ भविकदत्तराजापरगयो । मिलराजाआनंदित भयो ॥ ७० ॥ तवै राय सुन सो वृतंत । क्रोधन सको सम्हारि महंत ॥ किंकर पठये पहुंचे जाय । वंधुदत्तको लाये धाड़ ॥ ७९ ॥ आये लोग संग के सबे | पंछी तिन्हें सोह दे तबै ॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
.
(७)
सुगधदशमीव्रतकथा ॥ तिन राजालेसांचीकही। समधनभविक्रदत्तको सही ॥७२॥ राजासुनतकोपअतिकियो । बन्धुदत्तकोदण्ड जु दियो । अपनिसुतापुनिदीनीराइ । करविवाहमंदिरपहुंचाइ ॥७३॥ भविकदत्त माता गुण भरी । पुत्रलयो मैने शुभ घरी मैंव्रतकियोपंचमी तनो। जाते भयोअतुलधनधनो ॥ १४ ॥ तिनभीधुनिसुनकेव्रतलियो। भावसहितविधिपूर्वक कियो । उद्यापन विधिपूरणकरी । जाते भूरिलच्छि विस्तरी ॥७५॥ दोय २ सत तिनकेभये। नित २ करत महोत्सव नये ॥ भविकदत्तदीक्षानतलयो । दशवेंस्वर्गजायसुर भयो ॥६॥ भुगतेभोग परम सुखनयो । दयावन्तफिर मुक्तहिगयो । श्रेणिकसुनतसवहिवतकरो । तिनसयधोरदुःखपरिहरो ॥७७ और जो करे भावसे कोय । ताकोस्वर्ग मुक्ति सुख होय ॥ सत्रहसौसत्ताबनजान । मिती पौषसुदिदशमीमान ॥ ८ ॥ हती कंतपुरमें रचिकथा । श्रीसुरेंद्र भूषण मुनियथा ॥ नावकपढ़ोसुनोधरध्यान । जासेहोयपरमकल्याण ॥ ७६ ॥ |
इति श्रीऋषिपंचमी व्रतकथा भाषा सम्पूर्णम् ॥ सगधदशमी व्रत कथा।
चौपाई॥ वर्द्धमान वंदो जिनराय । गुरु गौतम बंदों सुख दाय ॥ सुगंधदशमीव्रतेकीकथा । वर्द्धमानसुप्रकाशीयथा ॥१॥ मगधदेश राजगृह नाम । श्रेणिक राज करे अभिराम ॥ नामचेलनागृहपटरानि । चंद्ररोहिणी रूप समान ॥२॥ ! नृप बैठो सिंहासन परे । वन माली फल लायो हरे॥
-
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Ramadandre
-
-
-
-
-
सुगन्धदशमीव्रतकथा ॥ करप्रणाम वच उपसेकहो । चित्त प्रमोदसेठाडोरहो ॥३॥ वर्द्धमानआयेजिनस्वामि । जिनजीतोउद्यतअरिकाम ॥ इतनीसुनतनपतिउठचलो । पुरजनयुतदलबलसेभलो ॥४॥ समोशरण बन्दे भगवान । पूजा भक्ति धार बहुमान । नरकोठाबैठोनप जाय । हाथ जोड़पछे शिरनाय ॥५॥ सुगंधदशमी व्रतफलभाषि। ता नरकी कहिये अवसाखि ॥ गणधर कहेसुनोमग्धेश । जंबूद्वीपविजयाई देश ॥६॥ शिवमंदिर पुर उत्तर श्रेणी । विद्याधर प्रीतंकर जैनी ॥ कमलावती नारिअतिरूप । सुर कन्या से अधिक अनूप । सागरदत्त बसे तहों साह । जाके जिनप्रतमें उत्साह ॥ धनदत्तावनिता गृहकही । मनोरमा ता पुत्री सही ॥८॥ सुगुप्ताचार्य गृह आइयो । देख मुनींद्र दुःख पाइयो । कन्यामुनिकी निंदाकरी । कुछ मनमेंनहिंशंकाधरो ॥६॥ नग्न गात दगंध शरीर । पगट पने देही नहिं चोर ॥ मुखतांबूलहतामुनिअंग । मानो सुखकोकीनोभंग ॥१०॥ भोजन अंतरायजबभयो । मुनि उठजायध्यानबनदयो । समताभाव धरेउरमांहिं । किंचित खेदचित्तमें नाहिं ॥ १९ ॥ वीतअवधिसमयकछुगयो । मनोरमा काकालसुभयो । भईगधीपुनिकुकरीग्राम । अपर ग्रामभईसूकरीनाम ॥१२॥ मगधसुदेशतिलकपुरजान। विजय सेनतहकानपमान ॥ चित्ररेखा ता रानी कही। ता पुत्रीदुर्गंधाभई ॥१३॥ एक समय गुरुवंदन गयो । पूजाकर बिनती को ठयो। मो पुत्रोदुर्गंधशरीर । कही भवान्तर गुण गंभीर ॥ १४ ॥ राजा बचन मुनीश्वर सुने । मुनि वृतान्त रायसे भने । सबवृतांतहाजिलोजान । मुनिराजासेकहोबखान ॥१५॥ सुनदुर्गंधा जोड़े हाथ । मो पर कृपा करो मुनिनाथ ॥
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुगंधदशमी कथा |
ऐसा व्रत उपदेशोमीहि । यासे तनु निरोग अबहोहि ॥ १६ ॥ दयावन्त बोले मुनिराय । सुन पुत्री ब्रूत चित्त लगाय ॥ समताभावचित्तधरो। तुम सुगंधदशमीबूतकरो ॥ १७ ॥ यहव्रत को मनवचकाय । यासे रोग शोक सब जाय ॥ दुर्गंधाविनवे निकुताय । कहियेसविधिमहामुनिशय ॥ १८ ॥ ऐसे वचन सुने मुनि जबे । तव बोले पुत्री सुन अबे ॥ भादों शुक्लपक्षजवहोय । दशमीदिनआराधोसोय ॥ १६ ॥ चारों रस को धारा देव । मनमें राखो श्री जिनदेव ॥ शीतलनाथकीपूजाकरो । मिथ्यामोहदूरपरिहरो ॥ २० ॥ वतके दिन छोड़ो आरंभ । यासे मिटे कम का दंभ ॥ याकेकरतपापक्षयजाय । सोदर्शबर्पकरोमनलोय ॥ २१ ॥ जब यह व्रत संपूर्णहोय । उद्यापन कीजे चित जोय ॥ दशश्रीफल अमृतफलजान । नीबू सरससदाफलआन ॥ २२ ॥ दश दीजे पुरतक लिखवाय । यहबिधिसत्रमुनिदईवताय ॥ विधिसुनदुर्गंधाव्रतलयो । सबदुर्गंधततक्षणगयो ॥ २३ ॥ व्रत करआयु जो पूरणकरी । दशवें स्वर्ग भई अप्सरी ॥ जिनचैत्यालयबंदनकरे । सम्यकभावसदाउरधरे ॥ २४ ॥ भरत क्षेत्र तहंमग्धसुदेश | भूति तिलकपुर वसे अशेश ॥ राजा महीपाल हांजान । मदनसुन्दरीत्रियाबखान ॥ २५ ॥ दशवें दिवसे देवी आन । तोके पुत्री भई निदान ॥ मदनावलींनामधरतास । अतिसुरूपतनुसकलसुवास ॥२६॥ बहुत बात को करे बखान । सुरकन्या नाता उन्मान ॥ कोसांवी पर मदननरेंद्र | रानीसती करे आनंद ॥ २७ ॥ पुरुषोत्तम सुतसुन्दरजान । विद्यावंत सुगुणं की खान ॥ जो सुगंधमदनावलिजाय । सो पुरुषोत्तमकोपरनाथ ॥ २८ ॥
1
(W)
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
-
(१०)
सुगंधदशमीव्रतकथा । राजा मदनसुंदरी बाल । सुखसे जात न जानो काल ॥ एकदिवसमुनिवरवंदियो । धर्मश्रषणमुनिवरपरकियो ॥२६॥ हाथ जोड़ पूछे तब राय । महा मुनींद्र कहो समझाय ॥ मोगृहरानीमढनावली । ता शरीरसौरमताभली ॥३०॥ कौन पुण्य से सुभग सुरूप । सुर वनितासेअधिक अनूप ॥ राजाबचनमुनीश्वरसुने । सबवृत्तांतरायसे भने ॥ ३१ ॥ जैसे दुर्गंधांवत लहो । तैसी विधि नरपति से कहो॥ सुने भवांतरजोड़ेहाथ । दिक्षावृतदीजेमुनिनाथ ॥ ३२ ॥ राजाने जब दिक्षा लई । रानी तबे अर्जिका भई॥ तप करअंतवर्गकोगई। सोलमस्वर्गप्रतेंद्रसोभई ॥ ३३ ॥ वाइस सागर कालजो गयो । अंत काल ता दिवसे चयो॥ भरतसुक्षेत्रमग्धतहंदेश । वसुधाअमरकेतुपुरवेस ॥ ३४ ॥ ता नपग्रह जन्म उनलहो । जो प्रतेंद्र अच्युत दिव कहो। कनिककेतुकंचनद्युतिदेह । बनिता भोगकरेशुभग्रह ॥ ३५ ॥ अमरकेतु मुनि आगमभयो। कनिक केतु तह बन्दनगयो । सुनो सुधर्मनवणसंयोग । तजेपरिग्रहअरुभवभोग ॥ ३६॥ घातिघातियाकेवललयो। पुनअघातिहनिशिवपुरगयो । वृत्तसुगंधदशमीविख्यात । ताफलभयोसुरभियुतगात ॥३७॥ यह वत पुरुष नारिजो करे । सो दुःख संकट भूलि नपरे । शहर गहलोउत्तम बास । जैन धर्मकोजहां प्रकाश ॥ ३८॥ सब नावकवृतसंयम धरें। पूजा दान से पातक हरें॥ उपदेशी विश्वभूषणसही। हेमराज पंडित ने कही ॥३॥ मन वच पढे सुनेजो कोय । ताको अंजर अमर पद होय ॥ यासेभविजनपढ़ोत्रिकाल । जो छूटेंविधिकेभ्रमजाल ॥ ४० ॥
इनि श्रीसुगंधदशमीव्रतकथा भाषा संपूर्णम् ॥
-
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनंतचौदश व्रतकथा
दोहा - अनंतनाथ बन्दों सदा, मनमें कर बहु भाव । सुर असुर सेवत जिन्हें, होय मुक्ति परचाव ॥ १ ॥ चौपाई ॥
जंबूद्वीप द्वीपोंमें सार । लख योजन ताका विस्तार | मध्य सुदर्शन मेरु बखान । भरत क्षेत्रता दक्षिणमान ॥ २ ॥ मगध देश देशों शिरमणी । राजगृह नगरी अतिवनी ॥ श्रेणिक महाराजगुणवंत । रानी चेलनागृहशोभंत ॥ ३ ॥ धर्मवंत गुणतेज अपार । राजा राय महागुण सार ॥ एक दिवस विपुलाचलवीर । आयेजिनवरगुणगंभीर ॥ ४ ॥ चार ज्ञानके धारक कहे । गौतम गणधरसों संग रहे ॥ 'छहऋ तुर्क फल देखेनयन । वनमालीलेचालोऐन ॥ ५ ॥ हर्ष सहित वनमाली भयो । पुष्प सहित राजा परगयेा ॥ नमस्कार करजोड़ेहाथ । मेोपरकृपाकरोनरनाथ ॥ ६ ॥ विपुलाचल उद्यान कहंल । महामुनीश्वर तहां बसंत ॥ सुन राजाअतिहर्षित भयो । बहुतदान मालीकोदयो ॥ ७ ॥ सप्तध्वनि बाजे वाजंत। प्रजा सहित राजा चालंत ॥ देप्रदक्षिणाबैठा राव | जिनवर देखकरोचितचाव ॥ ८ ॥ द्वै विधि धर्मको समझाय । यासे पाप सर्व जर जाय ॥ खग तह आयो एक तुरंत । सुंदर रूप महा गुणवंत ॥ ९ ॥ नमस्कार जिनवर को करो । जय जयकारशब्द उच्चरो ॥ ताहिदेख आश्चर्यितयो | राजाश्रेणिक पूछतभयेो ॥ १० ॥ सेना सहित महागुणखानि । को यह आयोसुंदरवाणि ॥
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१२)
अनंत चौदाव्रतकथा । याकीवातकहोसमझाय । ज्ञानवंत मुनिवरतुमआय ॥ ११ ॥ गौतम बोले वुद्धि अपार । विजया नगर कहो अतिसार ॥ मनो कंभ राजा राजत । श्रीमती रानीको कंत । १२॥ ताका पुत्र अरिंजय नाम । पुण्यवंत सुंदर गुणधाम ।। पूर्वतप कीनो इनजोय । ताका फलभगतेशुभसोय ॥ १३ ॥ ताको कथा कहूं विस्तार । जंबू द्वीप द्वीपों में सार ॥ भरतक्षेत्र तामें सुखकार । कोशलदेश विराजे सार ॥ १४ ॥ परम सुखदनगरीतहंजान । विम सोमशा गुणखान ॥ सोमिल्या भामिनताकही। दुखदरिद्रकोपूरितमही ॥१५॥ पूर्व पाप क्रिये अतिघने । ताको दुःख भुगतही बने । । सनराजा याका वृतांत । नगर २ सो श्रमें दःखान्त ॥ १६ ॥ देश विदेश फिरे सुखआश । तोहु न पावे सुक्खनिवास ॥ भ्रमतर लो आयोतहां । समो शरणजिनवरको जहां ॥१७॥ दो-अनंतनाथजनराजका, समोशरणातहिबार ॥ सुरनर अति हर्पितमये, देखमहाद्युतिसार ॥ १८ ॥
॥चौपाई ॥ विप्र देख अलिहर्षित भयो । समोशरण वन्दन को गयो । वन्दिजिलेश्वर पूछे सोइ । कहापाप मैं कीना होइ ॥ १६ ॥ दरिद्र पीड़ा दहे शरीर । सोतो व्याधि हरो गंभीर ॥ गणधरकहेंसुनोद्विजराय । अनन्तव्रत कीजेसुखदाय ॥२०॥ तब विन बोलो कर भाय । किस विधिहोइ सोदेहुबताय ॥ किसप्रकारयावतकोकरों । कहाविधान चित्तधरों ॥२१॥ भादोंमोस सुखकीखान । चौदशशुक्ल कही सुखदान । . करस्नान शुद्ध होजाय । तब पूजेजिनवरसुखदाय ॥ २२ ॥ गुरुवन्दना करे चितलाय । या विधिसे व्रतलेय बनाय ॥
m
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनन्तचौदशमकथा ॥
( १३ )
त्रिकाल पूजेश्रीजिनदेव | रात्रिजागरणकरसुख लेव ॥ २३ ॥ गीतनृत्य महोत्सवजान । धारा जिनवर करो बखान ॥ वर्ष चतुर्दश विधिसेधरे । ता पीछे उद्यापन करे ॥ २४ ॥ करे प्रतिष्ठा चौदह सार । या से पाप होइ जर क्षार ॥ भारीधारी अधिकअनूप । चरणकलशदेवेशुभरूप ॥ २५ ॥ दीवट झालर संकल माल । और चंदोवे उत्तम जाल ॥ छत्र सिंहासन बिधिसे करे । ताते सर्वपाप परिहरे ॥२६॥ चार प्रकार दान दीजिये । याते अतुल सुक्ख लीजिये ॥ अन्तावस्था ले संन्यास । तातेमिले स्वर्गका बास ॥ २७ ॥ उद्यापन की शक्ति न होइ । कीजे व्रत दूनो भविलोइ ॥ विप्रकियात्रतविधिसेआय | सर्वदुःखतसुगयाविलाय ॥२८॥ अंतकाल धरके संन्यास । ताते पायो स्वर्ग निवास ॥ चौथे स्वर्ग देव सो जान । महाऋद्विताकेसोबखान ॥ २६ ॥ 'विजयार्द्धगिरि उत्तम ठौर । काचीपुर पत्तन शिरमौर ॥ राजात अपराजितवीर | विजयातासप्रियागम्भीर ॥ ३० ॥ ताका पुत्र अरिंजय नाम । तिनयहआयकरोसोप्रणाम ॥ कंचनमय सिहासन आन | तापरभूप बैठौ सुखखान ॥ ३१ ॥ व्योमपटलविनशतल खसंत । उपजो चित वैरागमहंत ॥ राजपुत्रको दयो बुलाय | आपलईदीक्षा शुभमाय ॥३२ ॥ सही परीपह हृढ़चित धार । ताते कर्म भये अतिक्षार ॥ घाति घातिया केवल भयो । सिद्धबुद्धसोपदनिर्मयो ॥३३॥ रानीने व्रत की सही । देव देह दिव अच्युतलही ॥ तहांसुसुखभुगतेअधिकाय । तहांसे आयभयोनरराय ॥ ३४ ॥ राजऋद्धिपाई शुभसार । फिरतपकर विधिकीने क्षार ॥ तहांसेमुक्ति पुरीको गयो । ऐसातिनव्रतका फललयो ॥ ३५ ॥
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
रखत्रयव्रतकथा ॥ ऐसा व्रत पाले जो कोइ । स्वर्ग मुक्ति पद पावे सोइ ॥ . विनयसागरगुरुआज्ञाकरी। हरिकिलपाठचित्त मेंधरी ॥३॥ तव यहकथाकरीमनलाय । यथा शास्त्र में वरणीआय ॥ विधिपूर्वकपालेजोकोइ । तोकोअजरअमरपदहोइ ॥३७॥
इति नोअनंतचौदशन्तकथा सम्पूर्णम् ॥
रत्नत्रयव्रत कथा दोहा-अरहनाथकोवन्दिके, वन्दोसरस्वति पाय ॥ __ रत्नत्रयव्रत की कथा, कहूं सुनो मनलाय ॥१॥
॥चौपाई॥ जंबद्वीप भरत शुभ क्षेत्र । मग्ध देश सुखसम्पति हेत ॥ राजगृहतहानगरवसाय । राजा नेणिकराजकराय ॥ २ ॥ विपुलाचल जिनबीरकुंवार । केवलज्ञान विराजतसार ॥ भालीआय जनावो दयो । तत्क्षण राजा बंदनगयो ॥३॥ पूजा वंदनकर शुभसार । लागो पूछन प्रश्न विचार ॥ हस्वामी रत्नत्रयसार । व्रतकहिए जैसा व्यवहार ॥२॥ दिव्यध्वनिभगवानवताय । भादोंसुदिद्वादशि शुभभाय ॥ करस्नान स्वच्छ पटश्वेत । पहिनोजिनपूजनके हेत ॥५॥ आठोद्रव्यलेय शुभजाय । पूजो जिनवर मनवचकाय ॥ जीर्णन्यूतन जिनके ग्रह । विवधरावो तिनमें तेह ॥६॥ हेमरूग्य पीतलके यंत्र । तांबा यथा भोजके पत्र ॥ यंत्रकरो बहुमन थिरदेउ । रत्नत्रयकेगण लिखलेउ ॥७॥ निश्शांकादिदर्शनगुणसार । संशयरहितसो ज्ञान अपार ॥ अहिंसादि महाव्रतसार । चारित्र के ये गुणहैंधार ॥८॥ ये तीनों के गुणहैं आदि । इन्हें आदि जेते गुण वादि ॥
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
--
-
रत्नत्रयव्रतकथा ॥
(१५) शिवमार्गके साधन हेत । ये गण धारेव्रती सुचेत ॥ ६॥ भादोमाघ चैत्र में जान । तीनोकाल करो भविआन ॥ याविधितेरहवर्षप्रमाण । भावनाभावगुणहिनिधान ॥१०॥ लवंगादि अष्टोत्तर आन । जपो मंत्र मनकर श्रद्वान । पुनिउद्यापन विधिजीएह । कलशाचमरछत्रशुभदेह ॥१९॥ संग चतुर्विधि को आहार । वस्त्राभरण देउ शुभसार ॥ विंब प्रतिष्ठाआदिअपार । पूजोत्रीजिनहोभवपार ॥ १२ ॥ दो०-इसविधि त्रीमुखधर्मसुन, भनोचित्तधरभाय ॥ ___ कौनेफल पायोप्रभ, सो भाषो समझाय ॥ १३ ॥
॥चौपाई॥ जंबूद्वीप अलंकृत हेर । रहो ताहि लवणो दधिधेर ॥ मेरुसेदक्षिणदिशिहैसार। है सोविदेहधर्म अवतार ॥ १४ ॥ कच्छवती सुदेश तहांवसे । वीत शोक पुर तामें लसे ॥ वैसिवनामतहांका राय । करेराजसुरपतिसमभाय ॥१५॥ वनमाली ने जनावोदयो । विपुलबुद्धि प्रभुवनमें ठयो॥ इतनीसुननपवंदनगयो । दानवहुतमालीकोदयो ॥ १६ ॥ हे स्वामी रत्नत्रय धर्म । मोसो कहौ मिटै सब भर्म ॥ तवस्वामीनेसबबिधिकही। जोपहिलेसोप्र काशी सही ॥१७॥ पंचामृत अविशेकसुठयो । पूजाप्रभुकीकर सुखलयो । जागिरनादिठयोबहुभाय । इसविधिव्रतकरविसिवराय ॥१८॥ भावसहित राजावतकरो। धर्मप्रतीत चित्त अनुसरो॥ पोडशभावनामावतभरो। अंतसमाधिमरणतिनकरो ॥१९॥ गोत्र तीर्थंकर वांधोसार । जो त्रिभुवनमें पूज्यअपार ॥ सर्वार्थसिद्धिपहुंचोजाय । भयोतहांअहमेंद्रसुभाय ॥२०॥ | हस्तमात्रंतनुऊंचोभयो। तेतिससागर आयुसेालया।
-
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
दशलक्षणवनकथा ।
दिव्यरूपसुखकोभंडार । सत्यनिरूपणअवधिविचार ॥ २९ ॥ सौ धमेन्द्र विचारी घरी । यच्छेश्वर को आज्ञा करी ॥ वेगदेशनिर्माप्योजाय। थापासुथरापुर अधिकाय ॥२२॥ कुंभपुर राजा तहांबसे । देवी प्रजावती तिस लसे॥ नोआदिकतहाँदेवीआय । गर्भ से साधना कोनी जाय ॥२३॥ रत्न वृष्टि नृप अंगन भई । पन्द्रह मासलों बरसत गई। सर्वार्थसिद्धिसेसुरआय । प्रजावतीसुकुच्छउपजाय ॥ २४ ॥ मल्लिनाथ सो नामकोपाय । द्वेज चंद्रसम बढ़त सुभाय ॥ जबविवाहमंगलबिधिभई । तबप्रभुचितविरागतालई ॥२॥ दिक्षाधर बलमें प्रभु गये । घोतिकर्म हनि निर्मलठये ॥ केवललेनिर्वाण सेोजाय । पूजा करीसुरेशोआय ॥ २६ ॥ यहविधान श्रेणिक ने सुनो। व्रतलीने चित अपने गुणो । भक्तिविनयकरउत्तमभाय । पहुंचे अपनेगृहकोआय ॥२७॥ याविधि जो नर नारीकरे। सो भवसागर निश्चयतरे।। नलिनकीर्तिमुनिसंस्कृतकही। ब्रह्मज्ञानभाषानिर्मही ॥२८॥
॥ इति श्रीरत्नत्रयव्रतकथा भाषा सम्पूर्णम् ॥ दशलक्षणब्रतकथा
।
दोहा-प्रथमवन्दि जिनराज के, शारदगणधरपाय । दशलक्षणव्रतकीकथा, कहूंअगमसुखेदाय ॥१॥
॥चौपाई॥ विपुलाचल श्रीवीरकुंवार । आये भवभंजन भरतार ॥ सुनभूपतितहांवंदनगयो । सकललोकमिलिआनंदभयो ॥२॥
-
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
दशलवामनतकथा ॥
(१७) श्री जिनपूजे मनधर चाय । स्तुतिकरी जोड़कर भाव ।। धर्मकथातहासुनीविचार । दान शील तप भेदअपार ॥३॥ भवदुःख क्षायक दायक शर्म । भाषो प्रभु दशलक्षणधर्म ॥ ताकोसुनश्रेणिकरुचिधरी । गुरुगौतमसेविनतीकरी ॥४॥ दश लक्षण व्रत कथाविशाल । मुझसे भाषो दीन दयाल । बोलेगुरुसुनश्रेणिकचंद्र । दिव्यध्वनिकहोबीरजिनेंद्र ॥५॥ खंड धातुकी पूर्व भाग । मेरु थकी दक्षिण अनुरागं सोतोदाउपकंठी सही। नगरी विशालाक्षशुभकही ॥ ६ ॥ नामप्रीतंकर भूपति बसे। प्रीयकरी रानी तसु लसे ॥ मृगांकरेखासुतासुजान । मति शेखरनामासोप्रधान ॥७॥ शशिप्रभा ताको वरनारि । सुता काम सेना निरधार ॥ राजसेठ गुणसागरजान । शीलसुभद्रा नारिबखान ॥८॥ सुतामदन रेखातसु खरी । रूपकला लक्षण गुणभरी ॥ लक्षणभद्रनामा कुतवाल । शशिरेखानारीगुणमाल ॥ ६ ॥ कन्या तास घरे रोहिनी । ये चारों वरणी गरु तनी॥ शाखपढ़ेगुरुपासविचार । स्नेह परस्पर बढ़ा अपार ॥१॥ मास वसंत भयो निरधार । कन्या चारो वनहि मंझार ॥ गईमुनीश्वरदेखतहां । तिन कोबंदनकोनोवहां ॥ ११ ॥ चारों कन्या मुनि से कही । त्रिया लिंग ज्यों छूटे सही ॥ ऐसावतउपदेशो अवै । यासे नर तनु पावे सबै ॥ १२ ॥ घोलेमुनि दश लक्षण सार । चारों करो होहु भवपार ॥ कन्यायोलीकिम्कीजिये। किस दिनसेनतकोलीजिये ॥१३॥ तयगुरुयोले वचनरसाल । भादोमास कहो गुणमाल ॥ धवलपंचमीदिनसेसार । पंचामतअभिषेकउतार ॥ १४ ॥ पूजार्चनकीजे गुणमाल । जिन चौवीस तनी शुभसाल ।।
-nandan
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
AMum
देशलगायतकथा ।
(१८) उत्तमक्षमाआदिअतिसार । दश मोब्रह्मचर्यगुणधार ॥ १५ ॥ पुष्पांजलिइसविधि दीजिये। तीनोंकाल भक्तिकीजिये। इसविधिदशवासरआचरो । नियमितवृतशुभकार्यकरो ॥१६॥ उत्तम दश अनशन करयोग । मध्यमवतकांजीकाभोग ॥ भूमिशयनकीजेदशराति । ब्रह्मचर्य पालोसुखपांति ॥ १७ ॥ इसनिधि दशवर्षे जबजाय । तबतकनत कीजै धर भाय ॥ फिरव्रतउद्यापनकीजिये । दानसुपात्रोंकोदोजिये ॥ १८ ॥
औषधि अभयशास्त्रआहार। पंचामतअभिषेकहिसार ॥ माइनोरचिपूजाकीजिये। छत्रचमरआदिकदीजिये ॥ १६ ॥ उद्यापनकी शक्ति न होय । तो दूनो व्रत कीजे लोय ।। पुण्यतनोसंचयभंडार । परमवपावेमोक्ष सोद्वार ॥ २० ॥ तबचारोंकन्योंव्रतलायो । मुनिवरभक्तिभावलखिदियो। यथाशक्तिवतपूरणकरो । उद्यापनविधिसे आचरो ॥ २१ ॥ अंतकाल वे कन्या चार । सुमरण करो पंच नवकार ॥ चारोंमरणसमाधिसुकियो । दशवस्वर्गजन्मतिनलियो ॥२२॥ षोडस सागर आयु प्रमाणं । धर्म ध्यान सेमें तहां जोन ॥ सिद्धक्षेत्र में करें विहार । क्षायक सम्यकउदय अपार ॥२३॥ सुभग अवन्तो देश विशाल । उज्जयनी नगरी गुणमाल ॥ स्थूलभद्रनामानरपती। रानीचारुसो अतिगुणवती ॥ २४ ॥ देव गर्भ में आये चार । ता रानी के उदर मझार ।। प्रथम सुपुत्र देव प्रभु भयो। दूजोसुतगुणचन्द्रभाषियो ॥२५॥ पदम प्रभा तीजो बलवीर । पदम स्वारथी चौथो धीर", जन्म महोत्सवतिनकोकरो। अशुभदोषगृहदोनों हरी ॥२६॥ निकल प्रभा राजा-की सुता । ते चारों परनी गुण युता । प्रथमसुलासोब्रहीनाम । दुतियकुमारीसो गुणधोम ॥ २७ ॥
-
-
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
मुक्तावतीव्रतकथा ॥
( १९ । रुपवती तीजी सुकुमाल । मृगाक्ष चौथी सो गुणमाल ॥ करोव्याहघरकोआइयो । सकललोकघरआमन्दलियो ॥२८॥ स्थूल भद्राजा इकदिना । भोग विरक्त भयो भवतना ॥ राजपुत्रको दीनो सार । वन में जाययोगशुभधार ॥ २६ ॥ तपकरउपजो केवलज्ञान । वसु विधिहनि पायोनिर्वाण ॥ अब वे पुत्र राजकोकरें । पुण्यकाफल पावें ते घरें ॥३०॥ चारोंबांधव चतुर सुजान । अहिनिशिधर्मतनोफलमान ॥ एकसमय विरक्तसोये । आतमकार्यचिंतवतठये ॥ ३१ ॥ चारों बांधव दिक्षालई । वनमें जाय तपस्या ठई ॥ निजमनमें चिद्रपाराधि । शुक्नध्यानकोपायो साधि ॥३२॥ सर्व विमल केवल अपनो । सुख अनंत तब ही सोठनो॥ करोमहोत्सबदेवकुमार । जय २ शब्दभयोतिहिवार ॥ ३३ ॥ शेष कर्म निर्बल तिन करे । पहुंचे मुक्ति पुरी में खरे॥ अगमअगोचरभवजलपार । दशलक्षणव्रतकेफलसार ॥३४ वीरजिनेश्वर कही सुजान । शीतल जिनके बाड़े मान ।। गौतमगणधरभाषीसार। सुनश्रेणिकायेदरबार ॥ ३५॥ जो यह व्रत नर नारी करे । ताके गृह सम्पत्ति अनुसरे ॥ भहारक श्री भूषणवीर । तिनके चेला गुणगंभीर ॥ ३६॥ ब्रहाज्ञान सागर सुविचार । कही कथा दशलक्षणसार ।। मनबचनव्रतपालेजोइ । मुक्तिवरांगणाभोगेसोइ ॥ ३७॥ ।
॥ इति श्रीदशलक्षणव्रतकथामाषासम्पूर्णम् ॥
मुक्तावलीव्रतकथा॥ दो०-ऋषभनाथकेपदनमों, भविसरोजरविजान । ___ मुक्तावलिनतकी कथा, कहूं सुनो धरध्यान ॥१॥
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२०)
मुक्तावनीव्रतकथा ॥ मगधदेश देशों में प्रधान । तामें राजगृह शुभयान । राज्यकरे तहांगणिकराय । धर्मवंतसयको सुखदाय ॥२॥ ता गृह नारि चेलनासती । धर्म शीलपूरण गुणवती ॥ इकदिन समोशरणमहावीर ।आयो विपुलाचलपरधीर ॥३॥ सुन नृपअत्यानंदितभयो । कुटुम सहित बंदन को गयो । पूजाकरबैठो सुख पाय । हाथजोड़कर अर्जकराय ॥४॥ हेप्रभु मुक्तावलि व्रतकहो । यह कर कौनेक्याफल लहो॥ तब गौतमबोलेहाय । सुनौ कथा मुक्तावलि राय ॥ ५ ॥ याही जंबद्वीपमझार । भरत क्षेत्र दक्षिण दिशि सार । अंगदेश सोहे रमनीक । नगर बसे चंपापुर ठीक ॥६॥ नगरमध्य एकब्राह्मणबसे । नाम सोमशर्मा ससुलसे ॥ ता गृह एकसुताजोभई । यौवनमदकर पूरणठई ॥ ७ ॥ एक दिन देखे श्रीगुरु जबे । नग्न गात सो निदेतये ॥ अतिखोदेदुर्वचनकहाय । बहुतहीग्लानिचित्तमेलाय ॥८॥ ताकर महापापबांधियो । अवधिव्यतीतेमरण जुकियो। नरकजाय नानादुखसहे । छेदन भेदनजायनकहे ॥६॥ नरकआयु पूरीकर जोइ । भवभ्रमि द्विजगहपुत्रीहोइ ॥ निर्नालिकापड़ातिसनाम । अतिदुर्गंधादेहनिकाम ॥१०॥ कोई ढिंग आवे नहिंतहां। क्रमकर बडी भई सो वहां ॥ अन्नपानकरदुःखितमहा। जूठनभखेकष्टअतिलहा ॥११॥ एकदिवस देखे मुनिराइ । करप्रणाम विनवे शिरनाई॥ कौनपापमैं कीनोदेव । मैं पायोअतिदुःख अभेव ॥१२॥ तबमुनिवर पूर्व भवकहे । गुरु को निंदा से दुःखलहे ॥ तबदुगंधा जोड़ेहाथ । ऐसात्रतदीजेमोहिनाथ ॥१३॥ यासे रोग शोक सबजाय । उत्तम भव पाऊं गुरुराय ॥
me
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
मुक्तावलीव्रतकथा ॥
(२९) तब श्रोगुरयोले हर्षाय । मुक्तावलीकरो मनलाय ॥ १४ ॥ तासे सर्वपाप जरजाय । सुखसम्पत्ति मिलेअधिकाय ॥ तबदुर्गंधाकहे विचार । कौनभांतिकीजे व्रतसार ॥ १५ ॥ तबमुनिवरइमवचनकहाइ । सुनोभेद व्रतका चितलाइ॥ भादोंसुदिसप्तमिदिनहोइ । तादिनव्रतकीजेभक्लिोइ ॥ १६ ॥ प्रातसमय जिनमंदिरजाइ । पूजा कथासुनो मनलाइ ॥ सबआरंभतजोदिनमान । संयमशीलसजोगुणखान ॥१९॥ भोर भये जिन दर्शनकरो। शुद्ध अशनकीजेतबखरो॥ द्रजोवतपूर्ववतकरो। अश्विनयदिछठिपापनिहरो॥१८॥ तीजोबत कोजे उरधार । अश्विनबदितेरसि सुखकार ॥ करउपवासपालोगुणरसी । चौथोअश्विनसुदिग्यारसी ॥१८॥ पंचमत्त कीजे मनलाइ । कार्तिकबदियारसि सुखदाय ॥ फिरछठवांउपवाससुजान। कार्तिकशुनतीजगुणखान ॥२०॥ सप्तमवृत्तजिनधरनेकहो । कार्तिकसुदिग्यारसिशुभलहो । फेरकरोअष्टमवृतलोइ । मार्गबदिग्यारसिजवहोइ ॥ २१ ॥ नवमोवृत मार्ग सुदितीज । ये व्रत धर्म वृक्षके बीज ॥ याविधिकरोनववर्षप्रमान । मनवचकायशुद्धताठान ॥ २२ ॥ जय त पूर्ण होइ निदान । उद्यापन कीजे गुणवान ॥ श्रीजिनवरअभिषेककराइ । करोमाइनोजिनगृहजाइ ॥२३॥ अष्ट प्रकारी पूजा करो। जन्म २ के पातक हरो॥ यथाशक्तिउपकरणबनाय । श्रीजिनधामचढ़ावोजाय ॥२४॥ उद्यापनको शक्ति न होय । तो दूनो वत कीजे लोय ॥ सबविधिसुनदुर्गंधाबाल । मनवचतनव्रतलीनोहाल ॥ २५ गुरुभाषित तिनविधि सेकियो । पूर्वभवअघ पानीदियो । ताफलनारिलिंगछेदियो । सौधर्मस्वर्गदेवसोभयो ॥ २६ ॥
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २२ )
रतिकथा |
तहांआयु पूरणकर सोय । चलतभयो मथुराको लोय ॥ श्रीधरराजा राजकरंत । तोकेसुतउपजोगुणवंत ॥ २७ ॥ नामपदुमरथ मंडितभयो । एक दिवस वनक्रीड़ा गयो | गुफामध्यमुनियरको देख | वन्दनकरसुनधर्मविशेष ॥२८॥ वहां पूछे मुनिवरसेसोय । तुमसे अधिक प्रभाप्रभुकोय ॥ . तब मुनिवरवोलेसुनबाल | बासपूज्य जिनदोप्तिविशाल ॥२ चंपापुर राजें जिनराज | तेज पुंज प्रभु धर्म जहाज ॥ ; । यहसुनधर्मविषेचितदयो । समोशरणजिनवंदनगयो ॥ ३० ॥ नमस्कारकर दीक्षा लई । तपकर गणधर पदवी भई ॥ अष्टकर्मइसबिधिसेजार । पहुंचो शिवपुरसिद्धिमकार ||३१|| लखोभष्यव्रतका सोप्रभाव । राजभोगिभय शिवपुरराव | जोनरनारिकरे व्रतसार । सुरसुखलहिपावेंभवपार ॥ ३२ ॥ ॥ इति श्रीमुक्तावली व्रतकथासम्पूर्णम् ॥
श्रीरविव्रतकथा |
चौपाई ॥
श्री सुखदायक पार्स जिनेश । सुमति सुगति दाता परमेा ॥ सुमशारदपद अरिवंद | दिनकरवृतप्रगटोसानंद ॥ १ ॥ बाणारस नगरी सुविशाल । प्रजापाल प्रगटो भूपाल ॥ मतिसागरत हांसेठ सुजान । ताकाभूपकरेसन्मान ॥ २ ॥ तासुत्रिया गुणसुंदरिनाम । सात पुत्र ताके अभिराम ॥ पटसुतभोग करें परणीत | बालरूपगुणधरसुविनीत ॥ ३ ॥ - सहस्रकूटशोभितजिनधाम । आयेयतिपतिखंडितकाम ॥ सुनमुनिआगमहर्षितभये । सर्वलोगवन्दनकोगयें ॥ ४'n गुरुवाणी सुनके गुणवती । सेठिन तब जो करीबीनंसी ॥
1
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
-
--
-
रविव्रतकथा ।।
(२)
वृतप्रभुसुगमकहोसमझाय । जासेरोगशोगसबजाय ॥ ५ ॥ करुणानिधि भाषे मुनिराय । सुनो भव्यतम चित्त लगाय ॥ जबआषाढसितपक्षविचार । तत्र कीजेअंतमरविवार ॥६॥ अनसन अथवालघुआहार । लवणादिकजोकरे परिहार ॥ नवफलयुत पंचामृतधार । वसुप्रकारपूजोभवहार ॥ ७ ॥ उत्तम फल इवयासी जान । नव श्रावक घर दीजे आन ॥ याविधिकरोनववर्षप्रमाण । यातेहोयसर्वकल्याण ॥८॥ अथवा एकवर्ष एकसार । कीजेरवि वृतमनहि विचार ॥ सुखाहुन ननिजघरकोगई। वृतनिंदासे निंदित भई॥६॥ बत निंदासे निर्धन भये । सातपुत्र अयोध्यापुर गये ॥ तहाजिनदत्तसेठगृहरहें । पूर्वदुःकृतका फललहैं ॥ १० ॥ . मातपितागृहदुःखितसदा । अवधिसहितमुनिपूछेतदा॥ दयाबंतमुनि ऐसेकहो । ब्रतनिंदासे तुमदुःखलहो ॥ १९ ॥ सुनगुरुवचनबहुरिबतलयो । पुण्यकियोघर धनभयो । भविजनसुनोकथासम्बन्ध । जहांरहतथेवेसबनन्द ॥ १२॥ एकदिवस गुणधरसुकुमार । धासले आये गूहद्वार ॥ क्षधावतभावजपेगयो। दंतविनानहिभोजनदयो, ॥१३॥ बहुरि गये जहां भूलोदन्त । देखोतासे अहि लिपटत ॥ फणपतिकीतहाधिनसीकरी । पदमावतिप्रगटीसुंदरी ॥१४॥ संदरमणिमय पारसनाथ । प्रतिमा पंचरत्नशुभ हाथ ॥ देकरकहो कुंवरकरभोग। करोक्षणकपूजासयोग ॥१५॥ आनधि निजघरमें धरो। तिहेकरतिनकोदारिद्र हरी॥ सुखविलसतसेवेसबनंद। दिनप्रतिपूर्जेपार्सजिनेंद्र ॥ १६ ॥ साकेतानगरी अभिराम । जिनप्रसाद राचोशुभधाम ॥ करीप्रतिष्ठापुण्यसंयोग। आयेभविजनसंगसोलोग ॥१७॥
-
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २४ )
yourजतकथा |
संगचतुर्बिधिको सन्मान । कियोदियांमन वांछितदान ॥. देखसेठ तिनकी सम्पदा | जायकही भूपतिस्तदा ॥ १८ ॥ भूपतितब पूछो वृत्तन्त । सत्यकहो गुणधर गुणवन्त ॥ देख सुलक्षणता कोरूप। अत्यानन्द भयोसोभूप ॥ १९ ॥ भूपतिगृह तनुजा सुंदरी । गुणधर को दीनी गुण भरी ॥ करविवाहमंगलसानन्द । हयगयपुरजनपरमानन्द ॥ २० ॥ मनवांछित पायेसुखभोग | विस्मितभयेसकलपुर लोग ॥ सुखसेर हतबहुतदिनभये । तबसबबन्धुवनारसगये ॥ २९ ॥ मात पिता के परशे पांय । अत्यानन्द हृदय न समाय ॥ बिगटीबिषमविषमबियोग | भयोसकलपुरजनसंयोग ॥२२॥ आठसातसोलह के अंक । रविप्रतकथा रवीअकलंक || थोड़े अर्धग्रंथबिस्तार | कहेंकबीश्वरजोगुण सार ॥ २३ ॥ यह ब्रतजोनरनारी करें । सो कयही दुर्गति नहिंपरें ॥ भाब सहित सोसबसुखहें । भानु कीर्तिमुनियर मकहें ॥२४॥ इति श्रीरविव्रतकथा सम्पूर्णम् ॥
पुष्णंजलि व्रतकथा ।
दोहा - बीरदेबकोप्रणमिकर, अर्धाकरोंत्रिकाल । पुष्पांजलिव्रत की कथा, सुनाभव्य अघठाल ॥ # ॥ चौपाई ॥ पर्बतबिपुलाचल परआय । समोशरण जिनबरकापाय ॥ तहंसुनराजाश्रेणिकराय । वन्दनचलेप्रियायुतभाय ॥ २ ॥ बन्दन कर पूछे नृप तबे । हे प्रभु पुष्पांजलि बूत अबे ॥ मोसेकोकरीचितलाय । कोनेकरो कहाभई आय ॥ ३ ॥ ॥ बोलेगौतम बचनरसाल । जंबू द्वीप मध्य सो विशाल
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
-
पुष्पागलिनतकथा ।
(२५) सीतानदोदक्षिणदिशिसार । मंगलायतीसुदेशअपार ॥४॥ दोहा-रत्न संघयपुर तहां, बजसेन नृप आय । जयवती बनितालसे, पुत्रबिहानोथाय ॥५॥
॥चौपाई॥ पुत्रचाह जिन मंदिरगई। ज्ञानोदधि मुनि बंदित भई ॥ हेमुनिनाथ कहोसमझाय । मेरेपुत्रहोइ के नाय ॥६॥ दोहा-मुनियोले हे बालकी, पुत्रहोइ शुभसार ।
भूमिछखंड सुसाधिहै, मुक्तितनोभरतार ॥ ७ ॥ सुनकेमुनिकेवचनतब, उपजो हर्ष अपार । क्रमसे पूरे मासनव, पुषभयो शुभ सार ॥८॥ यौवन वयस सोपायके, क्रीड़ा मंडपसार ।
सहाव्योमसे आइयो, खगभूपरतिसवार ॥६॥ . रत्नशेखरकोदेखकर, बहुतप्राति उरमाहि। मेघवाहनने पांचसो, विद्यादीनी ताहि ॥ १० ॥
॥चौपाई॥ दोनोमित्र परस्पर प्रोति । गये मेरु वन्दन तज भीति ॥ सिद्धकट चेत्यालय वंदि। आये पंचचित्त आनंदि ॥ ११ ॥ ताकी सखो जनाई सार । वेग स्वयम्बर करी तयार ॥ भरि भूप आये तत्काल । माल रत्नशेखरगलडाल ॥ १२ ॥ धूमकेत विद्याधर देख । क्रोकियो मन माहि विशेष ॥ कन्याकाजदुष्टताधरी । विद्याबल बहुमायाकरी ॥१३॥ रत्नशेखर से युद्धसो करो। वहुत परस्पर विद्याधरी ॥ जीतोरत्नशेखरतिसवार । पाणिग्रहणकियोव्यवहार ॥ १४ ॥ मदन मजषा रानी संग । आयो अपने ग्रह असंग ॥ वजसेनकोकरनमस्कार। माततासमनसक्खअपार ॥१५॥ एकदिनामंदिरगिर योग । पहुंचे मित्र सहित सब लोग ॥ चारणमुनिबंदेतिहिबार । सुमोधर्मचितभयोउदार ॥ १६ ॥
-
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २६ )
पुष्पांजलित था ॥
हे मुनि पूर्व जन्म सम्बन्ध। तीनों के तुमकहो निबन्ध ॥ तब मुनिकसुनौचितधार । एकमृणालनगरसुखकार ॥ १७ ॥ नृप मंत्रीएकतहांश्रुतिकीर्ति । बन्धुमतीवनिता अतिप्रीति ॥ एकदिना बन क्रीड़ागयो । नारी संगरमतसोभयो ॥ १८ ॥ पापी सर्पस भक्षण करी । मंत्री मृतक लखी निजनरी ॥ भयांविरक्तजिनालयजाय । दिक्षालोनीमन हर्षाय ॥ १६ ॥ यथाशक्ति तप कुछ दिन करो। पाछे भ्रष्टभयो तपटरी ॥ गृहआरंभ करनचितठनो । तबपुत्री मुख ऐसे भनो ॥ २० ॥ तातजी मेरुचढ़ोकिहिकाज । फिर भवसिंधुपड़ेत जलाज ॥ यो सुनप्रभावतीवचसार । मंत्री को पकियो अधिकार ॥ २९ ॥ तब विद्या को आज्ञा करी । पुत्रो को ले बन में घरी ॥ विद्या जब बनमें लगई । प्रभावती मन चिंता भई ॥ २२ ॥ अरहंत भक्ति चित्तधरी । तब विद्या फिर आई खरो ॥ हे पुत्री तेरा चित जहां । वेगबोलपहुंचाऊ तहां ॥ २३ ॥ पुत्री कही केलाशके भाव । जिन दर्शनको अधिकहीचाव ॥ पूजाकरके बैठी व्हां । पद्मावति आई सो तहां ॥ २४ ॥ इतने मध्य देव आइयो । प्रभावती तब पूछन लयो ॥ हे देवी कहिएकिकाज | आयेदेवीदेव सीआज ॥ २५ ॥ पदमावति बोलो सार । पुष्पांजलि व्रत है सुअवार ॥ मामास शुक्ल पंचमी | पंचदिवस आरंभनअमी ॥ २६ ॥ प्राप यथाशक्ति व्यवहार । पूजो जिन चौबोसी सार ॥ नानाविधिके पुष्पजोलाय । करा एकमाला जोबनाय ॥ २७ ॥ तीनकाल वह माला देय । बहुत भक्ति से विनय करेय ॥ जपो जाप शुभ मंत्रविचार याविधिपंचवर्षअवधार ॥ २८ ॥ उद्यापन कीजे पुनियार । चार प्रकार दान अधिकार ॥ उद्यापनकी शक्ति होइ । तोदूनोन्नतकीजे लोइ ॥ २९ ॥ 'यह सुन प्रभावती व्रतलयो । पदमावती कृपा कर दयो ॥
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुष्पानगिनतकथा स्वर्गमुक्तिफलकादातार । हैयहपुष्पांजलिव्रतसार ॥ ३० ॥ दोष-पदमावति उपदेश से, लीनान्नत शुमसार ।
पृथ्वीपरसोप्रकाशिके, कियोभक्ति चितधार ॥३१॥ तपविद्याश्रुतकीर्तिने, पाई अति जो प्रचंड । प्रभावती व्रतखंड ने,आई सो बलबंड ॥ ३२ ॥
॥चौपाई॥ बासर तीन व्यतीते जवे । पदमावति पुनि आई तबे ॥ विद्यासवभागोतत्काल । करोसंन्यास भरणतिसवाल ॥३३॥ कल्प सोलहवें मध्यसोजान । देवभयोसा पुण्य प्रवाण ॥ तहदेिवने कियोविचार । मेरातात भ्रष्टआचार ॥ ३४ ॥ मैं सम्बोधों वाको अने। उत्तम गति वह पावे नये ॥ यहीविचारदेवआइयो । मरणसंन्यासतातकोकियो ॥ ३५ ॥ वाही स्वर्ग भयो सो देव । पुण्य प्रभाव लयो फलएव ।। बंधुमती माता का जीव । उपजाताहीस्वर्ग अतीव ॥ ३६ ॥ दो०-प्रभावतीका जीव तू, रत्नशेखर भयोआय। माताका जो जीव है, मदनमजूषा थाय ॥ ३७॥
॥चौपाई॥ श्रुतिकीर्तिको जीव जो तहां । मंत्री मेघ वाहन है यहां ॥ ये तीनोंके सुन पर्याय । भईसो चिंता अंग न माय ॥ ३८ ॥ सुनव्रतफलअहगुरुकोवानि । भयोसुचितत्तलीनोजानि ॥ अपनेथानबहुरिआइयो। चक्रवर्ति पदभोगसुकियो ॥ ३ ॥ समय पाय वैरागसा भयो । राज भारसत्र सुत को दयो । त्रिगुप्तिमुनिकेचरणोपास। दिक्षालीनोपरमहुलास ॥ ४० ॥ रत्न शेखर दिक्षालो जये। भये सेव वाहन मुनि तबे॥ भविजीवोंकोअनिसुखकार । केवलज्ञानउपार्जीसार ॥ ४ ॥ घाति कर्म निर्मल सुकरे । पाछे मुक्ति पुरो अनुसरे ॥
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
ar
1(२)
नरीश्वरव्रतकथा ॥ याविधिन्नतपालेजोकोइ। अजरअमरपदपावेसोइ. ॥ ४२ ॥ __ इति श्री पुष्पांजलिव्रतकथा सम्पूर्णम् ।
वत कथा। दो-चरणनमोजिनराजके, जाते दुरित नशाय। . ___ शारद वंदो भावसे, सद्गुरु सदा सहाय ॥ १॥
॥चौपाई॥ जंबू द्वीप सुदर्शन मेरु । रहो ताहि लवणो दधि घेर ॥ मेरुसेदक्षिणभारत क्षेत्र। मग्धदेशसुखसम्पति हेतु ॥२॥ राज गृह नगरी शुभ वसे। गढ़ मठ मंदिर सुंदर लसे॥ श्रेणिकराजकरेसुप्रचंड । जिनलोनोअरियणपरदंड ॥३॥ पटरानी चेलना सुजान । सदा करे जिन पूजा दान ।। सभा मध्यवेठो सो सय । बनमाली शिरनायो आय ॥४॥ दोकर जोड़ करे सो सेव । विपुलाचल आये जिन देव ।। बर्द्धमानकोआगमसुनो । जन्मसुफलचित अपने गुनो ॥५॥ राजा रानी पुरजन लोग ।बंदन चले पूजने योग । चलत २ सो पहुंचेतहां । समोशरणजिनवरकाजहां ॥६॥ दे प्रदक्षिणा भीतर गये। वर्द्धमान के चरणों नये ॥ 'पुनिगणधरकोकियोप्रणाम । हर्पितचित्तभयोअभिराम ॥ दशविधिधर्मसुनोजिनपास । जाते गयो चित्त का प्रास। दोकरजोड़नपति बीनयो । अतिप्रमोदमेरे मने भयो ॥८॥ प्रभु दयाल अब कृपाकरेव । अतनंदीश्वरकहो जिनदेव ॥ अरुसवबिधिकहियेसमझाय । भावसहितयोंपूछोराय ! अवधिज्ञान घरमुनिवरकहें। कौशलदेश स्वर्गसम रहें। ताके मध्य अयोध्यापुरी। धनकण सुखीछत्तीसोकुरी ॥१॥ तिहिपुर राज करे हरिसेन । त्याग तेग बल पूरणसेन ॥
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
नदीश्वरप्रसकपा ॥
(२९) वंशइक्ष्वाक प्रगटचक्रवे । ताकीआनि खंडपटचवे ॥११॥ पाट बध रानी नृप तीन । गंधारी जेठी गुण लोन ॥ प्रियमित्रा रूपश्री नाम । साधेधर्मअर्थ अरुकाम ॥ १२ ॥ सुखसे रहत बहुत दिनभये । ऋतु वसंत कन राजागये ॥ जलक्रीड़ावनक्रीडाकरें। हास्य बिलासप्रीतिअनुसरें॥१३॥ तावनमध्य कल्पद्रुममूल । चंद्रकांतिमणि शिलानुकूल ॥ मंडपलताअधिकविस्तार । चारणमुनिआयेतिहिवार ॥१४॥ अरिजय अमितंजय नाम । सामदयालु धर्म के धाम ॥ राजारानी पुरजननारि। देखमुनितिनहष्टिपसारि ॥१५॥ सत्र नर नारि अनंदित भये। कोडातजमुनिबन्दनगये ॥ त्रियापुरुषचरणोंअनुसरे । अष्टद्रव्यसुनिपूजेखरे ॥ १६.॥ धर्म ध्यान कहो मुनिराय । श्रद्धा सहित सुनो करभाय ॥ राजाप्रश्नकरीमुनिपास । सुनो धर्म भयोचित्त हुलास ॥ १७ ॥ दलबलसहितसम्पदाघनी । और भूमिषट खंडजोतनी॥ महापुण्य जोयहफलहोइ॥ गुरुविनज्ञाननपावेकोइ ॥१८॥ बार २ विनवे कर सेव । पूर्व कहो भवान्तर देव ॥ अवधिज्ञानबलमुनिवरकहै। परअहिक्षेत्रवनिकएकरहै। सुखित कवर मित्रता नाम । साधे धर्म अर्थ अरु काम ॥ जेष्ठ पुत्रश्रीवर्मकुमार । मध्यमजयवर्मा गुणसार ॥२०॥ लघुजयकीर्ति कार्ति विख्यात । तीनोशुभआनंदितगात ॥ एकदिवसउपजोशुभकर्म । वनमें आये मुनिसौधर्म ॥२९॥ सेठ पुत्र मुनिवर बंदियो । श्रीवा जो अठाई लियो। नंदोश्वरव्रतविधिसेपाल । भव २ पापपुंजकोजाल ॥२२॥ अंतसमाधि मरण को प्राय । इस पर वज़बाहु नपआय ॥ ताकेविमलारानीजान । तुमहरिसेनपत्रभये आन ॥२३॥ पूर्व व्रत पालो अभिराम । ताते लही सुक्खको धाम ॥ जयवर्माजयकीर्तिवीर । निकट भव्यगुणसाहसधीर ॥२४॥
-
manand
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३० )
नदीश्वाव्रतकथा ॥
वन्दे गुरुजी धुरंधर देव । मन वच काय करी बहुसेव ॥ तब मुनिपंच अनुवत दिये । दोनों भावसहितव्रतलिये ||२५|| अरुनंदीश्वरव्रततिनलियो । अंतसमाधिमरणतिनकियो || हस्त नागपुरशु भजहांबसे । तहांविमलवाहननृपलसे ॥२६॥ ताके नारि श्रीधरा नाम । आरिंजय अमितंजय धाम ॥ पुत्रयगलहम उपजेतहां । पूर्वपुण्यभलपायो जहां ॥ २७ ॥ गुरुसमीप जिन दिक्षालई । तपबल चारण पदवी भई ॥ यासे हम तुम पूर्व भ्रात । देखतप्रेम ऊपजो गात ॥ २८ ॥ पूर्व व्रत नंदीश्वर कियो । ताते राज चक्र पद लिया ॥ अब फिरवत नंदीश्वरकरो । तातेस्वर्गमुक्तिपदधरो ॥ २६ ॥ तब हरिसेन कहे कर जोर । व्रत नंदीश्वर कहो बहोर ॥ मुनिवरकहें द्वीप आठमी । तासनामनंदीश्वरनमो ॥ ३० ॥ ताकेचहुंदिशि पर्वत परे । अंजन दधिमुखं रतिकरधरे ॥ तेरह तेरहदिशिदिशजान | येसबपर्वतबावनमान ॥ ३१ ॥ पर्वतपर्वत पर जिन ग्रह । वह परिमाण सुनो कर नेह ॥ सौयोजनताका आयाम | अरुपत्रासविस्तारसुताम ॥ ३२ ॥ उन्नति है योजन पच्चीस । सुर तहं आय नत्रा में शीश ॥ अष्टोत्तरसौ प्रतिमाजान । एक २ चैत्यालयमान ॥ ३३ ॥ गोपुर मणिमय के सुप्रकार | छत्र चमर ध्वजवंदनवार ॥ प्रातिहार्यविधिशोभाभली । तिनरवि कोटिसोमछविछली ॥ तास द्वीप में सुरपति आय । पूजा भक्ति करे बहु भाय ॥ देव अतीवृत नहीं करें। भावभक्ति करपातिक करें ॥३५॥ तासद्वीप सम्बन्धी सार । व्रत नंदीश्वरको अधिकार ॥ यहां कहो जिनवरसुंप्रकाशि। आदिअनादिपुण्यकीराशि ॥ जो वृत भव्य भाव से करें । भव २ जन्म जराभय हरें ॥ - ताव्रतको सुनिये अधिकार । वर्ष २ में त्रय २ बार ॥ ३७ ॥
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३१ )।
-
नदीश्वरव्रतकथा ॥ आपाढकार्तिकअरुजोफाग । शाखातीनकरी अनुराग ॥ आठोदिनआठपर्यंत । भक्तिसहितकीजेवतसंत ॥ ३८॥ सातैको एकासन करो। कर संयम जिनवर मनधरो॥ आठेकेदिनकरउपवास । जासेछूटे कर्मका त्रास ॥ ३ ॥ करोप्रथमजिनकाअभिषेक । जातेपातिक जायंअनेक ॥ अष्ट प्रकारी पूजा करो । मुख परमेष्टि पंच उच्चरो ।।। तादिनव्रत नंदीश्वरनाम । ताकाफलसुनियो अभिराम ॥ फलउपवासलक्षदशान । श्रीजिनवरनेकरोबखान ॥४१॥ दूजे दिन जिन पूजा करो। पात्र दान दे पातिकहरो ॥ अष्टविभूतिनामदिनसाइ । तादिन एकासनकरलाइ ॥ २४ ॥ फलउपवाससहस्रदशहाइ । अयनीजोदिनसुनियेलोइ॥ जिनपूजाकरपात्रहिदान । भोजनपानीभात प्रमाण ।४३ ॥ नामत्रिलोक सारदिनकही। साठलाखमोषधफललहो॥ चतुर्थदिनकरआमौदर्य । नामचतुर्मुखदिनसीहर्य ॥ १४ ॥ तहांउपवासलक्षफलहोइ। पंचमदिनविधिकरियोसाइ॥ जिनपूजाएकासनकरो। हयलक्षणजुनामदिनधरो ॥४५॥ फलचौरासी लक्ष उपास । जासे जायभ्रमण भव त्रास ॥ षष्टम दिन जिनपूजादान । भोजनभातआमिलीपान॥६॥ तादिन नाम स्वर्गसोपान । व्रत चालीसलक्ष फलजान ॥ सप्तमदिनजिनपूजादान । कीजे पविजनकासन्मान ॥१७॥ सब सम्पत्तिनामदिन सोइ । भोजनभात त्रिवेलीहोइ॥ फलउपवासलक्षकोजान। अष्टमदिनव्रतचितमें आन ॥१८॥ कर उपवास कथा रुचि सुनो । पान दानदेसुकृत गुनो। इंद्रध्वजनतदिन तसनाम । सुमरोजिनवर आठोजाम ॥४॥ तीनकोड़अतलाखपचास । यह फल होइ हरेसबत्रास ॥ यहविधिआठवर्षमेंहोइ । भावसहितकीजेभविलोय ॥ ५० ॥
-
-
-
-
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
-
-
(३२)
नंदीश्वरव्रतकथा ॥ उत्तम सातवर्षविधिजान । मध्यमपांच तीन लघमान॥ उद्यापन विधिपूर्वक सचो। वेदी मध्य माडनारचा ॥५॥ जिनपूजारुमहाअभिषेक । चंद्रोपमध्वज कलश अनेक ॥ . छत्रचमरसिंहासनकरो । बहुविधिजिनपूजोअघहरो ॥२॥ चारोदान सुपात्रहि देउ । बहुत भक्तिकर विनय करेउ । बहुविधिजिनप्रभावनाहोइ । शक्तिसमानकरोभविलोय ५३ उद्यापन की शक्ति न होइ । तो दूनो व्रत कोजोलोइ ॥ जिनयहव्रतकीनोअभिराम । तिनपदलयोसुक्खकाधाम॥५४॥ यहवन पूर्वमहाफललियो । प्रथमऋषभजिनवरनेकियो । अनंतवीर्यअपराजितपाल । चक्रवर्तिपदवीभई हाल ॥५॥ श्रीपाल मैना सुंदरी। व्रत कर कुष्ट व्याधि सवहरी ॥ बहुतकनरनारीव्रतकरो। तिनसवअजरअमरपदधरो ॥५६॥ सना विधान राय हरिसेन । अति प्रमोद मुख जंपेबैन । संबपरिवारसहितव्रतलयो। मुनिवरधर्मप्रीतिकरदयो ॥५॥ व्रतकर फिर उद्यापन करो। धर्मध्यानकर शुभ पदधरी ॥ अंतसमाधिमरणकोपाय । भयो देव हरिसेन सुराय ॥८॥ पर्यायान्तर जैहे मुक्ति। श्रेणिक सुनी सकलवतयुक्ति ।। गौतमकहोसकलअधिकार । सुनामगधपतिचित्तउदार॥५॥ जो नर नारी यह व्रत करें। निश्चय स्वर्गमुक्तिपद धरें। संकट रोग शोकसबजाहिं । दुःख दरिद्रतादूरबिलाहिं ॥६॥ यह व्रत नंदीश्वर की कथा । हेमराज सु प्रकाशी यथा ॥ शहर इटावा उत्तम थान । श्रावक करेधर्मशुभध्यान ॥६॥ सुने सदा ये जैन पुराण । गुणी जनोंका राखें मान ॥ तिहिठा सुना धर्मसम्बन्ध। कीनीकथाचौपई बंध ॥२॥ कहें सुनें देखें उपदेश । लहें भाव से पुण्य अशेष ॥ जाकेनाम पापमिटिजांय । ताजिनवरकेवन्दोपांय ॥६॥
इति श्री नंदीश्वरव्रत कथा सम्पूर्णम् ॥
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
हमारे यहां निम्न लिखित जैनपुस्तकें मिलती हैं।
जैनग्रन्थ संगह। इतने ५० पुस्तयों हैं । और पुष्ट झागज पर सुन्दर टेप से छपी हैं और ऊपर से । बुन्दर जिल्द बंधी है। यही एक पुस्तक परदेश में पास रखना दारफी है । मूल्य प्रथम एक स था । अब 1) पाठ माने ही मे देंगे।
व्याख्यान रत्नमाला।
छपगई ! छपगई !! छपगई !!! जिस पुस्तक के लिये सभा प्रेमी परुष वर्षो से भटक रहे थे। वही भाग छप कर तैयार हो गई । सचमुच ही यह व्याख्यानरूपी रत्नों की माला ही . है। इसके धारण करने से लोग सभा में धर्राटे के साथ व्याख्यान दे कर जाति सुधार कर सहेंगे तया धन धर्न विद्या बुद्धि की वृद्धि कर सकेंगे जो पुरुष सभा . में व्याख्यान कहना सीखना चाहते हैं वह इस के अंगाने में देरी न करे। की० ८ भाग को ) नवीनहोलीसंग्रह,एकबारवश्यपढ़िये) हा निषेध | सांगीत मनोरमा (नौटंकीकीराहमें) दुःखहरण बिनती सागीतनेनचन्द्रका (नौटफीकीराहने) 4) सकटहरण विनती
जैनगजन संग्रह (चा भीलिखा है )-)| बारह भावना सग्रह, स्तोत्रशलत(भनेकारागों में१००स्तुतिह)) समाधिमरण (एलविनती सहित) । प्रमोरिमाला (पर्याशी पुस्तफा है)-) परमार्थजकाड़ी, वा-रानुल सोरठमे) . तस्वार्थ उन्नजी मूल __-) पुकार पचीसी पंचसंगल पाठ
| जैनषालगुटका (वालोंकोबढ़ाइये)) লাক্ষাদ্বা বালুনী ) | इट छत्तीसी निर्वाणकांड गाथा )। भारहनामा नीता जी
बाईसपरीषह, बारह भावना सहित) बारहमासा मुनिजी
| प्रश्नोत्तर नेमराजल बारहमासा मजदंत
| पालोचनापाठ अर्थसहित वराय भावना
व्याहला नेमिनाथ अध्यात्म पचासा
| मामायक भाषा दश भारती
॥ सप्तऋषि पूजा निर्वाणकांड भाषा
निशिभोजन भजन कथा धर्मपचीसी.
मतानर संस्कृति वा भाषा कृपया पचीसी .
बुढ़ापे का विवाह जैनधर्म की कुल छपीहुई पुस्तक वा ग्रंथ इसपते सेही मिलेंग----लाला जैनीलाल जैन--मु०देववन्द-जि० सहारनपुर---
।
ར ར ར
25-
1
=
RAJ4A
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
_