Book Title: Jain Tattvadarsha Uttararddha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 8
________________ किञ्चिद् वक्तव्य 'जैनतरवादर्श' नामा हिंदी ग्रन्थना आ उत्तरार्ध याने भाग वीजाने लांबी प्रस्तावनानी अगत्य न ज होई शके कारण के पूर्वार्ध याने भाग पहेलामा 'प्रासंगिक वक्तव्य 'मां विनीत हंसयुगलनी कलमथी ए विस्तृतरूपे आलेखायेल छे. विशेषमा श्रीयुत् बनारसीदास जैने 'महाराज साहिब की भाषा 'ना मथाळा हेठल केटलीक चोखवट पण करेली छे. मुंबईमा स्थापन थयेल श्री आत्मानंद जैन समाए आ ग्रन्थ श्रीविजयकुमार नटवरलाल छोटालाल सीरीझमा छापवानो निर्णय कों ए संबंधी वात, तेम न सभा द्वारा थयेली कार्यवाहीनो आछो ख्याल, पण 'प्रकाशक का निवेदन' मथाळा हेठळ आपी दीघेल छे. न्यायांभोनिधि जैनाचार्य श्रीमद् विजयानंदसूरि(आत्मा. रामजी)महाराजना नामधी जैन-जनेतर जनता अजाण नथी. आपणा युगनी नजिकमां थयेल ए महापुरुष भारे प्रतिभाशाली, दीर्घदर्गी अने क्रान्तिकारी हता. तेओश्रीना गुणोथी आकर्पाईने ज, तेमना गुरु, तेम ज वडिल गुरुभाईओ होवा छता, ए महात्माओनी मलामणथी भारतवर्षना सकळ संधे पवित्र एवा श्री सिद्धक्षेत्र महातीर्थनी शीतळ छायामां तेमने आचार्य पदवी अर्पण करेली. हाल जेने राष्ट्रभापानुं गौरव प्राप्त थयेल छ एवी आमजनसमूहने भोग्यं हिंदी भाषामां ग्रंथो लखवानी तेओश्रीए ज पहेल करेली. वळी अमेरिकाना चिकागो शहरमा

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