Book Title: Jain Tarkbhasha Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ मार्च 2010 231 श्रीउदयसूरिजीकृत टीकामां पण छे अटले ओवा पाठो बन्ने टीकामां न राखतां ओक टीकामां राखी बीजीमां मात्र तेमनो निर्देश के अतिदेश करी पुनरुक्ति निवारी देवामां कशुं खोटुं नथी. सम्पादके आ संस्करणमां ओ पद्धति अपनावी छे, परन्तु निर्देश/अतिदेश माटेनी सूचना टीकाना भागथी अलग जणाई आवे ओ रीते आपवी जोईती हती. ओ सूचनाओ फूटनोटमां, कौंसमां अथवा जुदा प्रकारना टाईपमां आपी शकात, जेथी टीका साथे भळी न जाय. कदाच सम्पादक मुनिवरनो सम्पादननो आ प्रथम प्रयास होवाथी आम बन्युं हशे. विषयने न्याय आपवामां सम्पादक मुनिश्री सफळ रह्या छे, ते बदल मुनिश्रीने अभिनन्दन अने तर्कक्षेत्रे अेक उदीयमान विद्वान तरीके तेमनुं हार्दिक स्वागत. जैन देरासर नानी खाखर, कच्छ-३७०४३५Page Navigation
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