Book Title: Jain Tarkbhasha Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ पुनः प्रकाशननुं सुन्दर नजराणुं : 'जैन तर्कभाषा' उपा. भुवनचन्द्र प्रमाण वस्तुविचारणा माटे जैनदर्शन अनेकान्तदृष्टि, नयभेद, निक्षेप, भङ्ग, ज्ञानना प्रकार जेवां साधनोने 'प्रमाण' तरीके काममां ले छे. 'प्रमिति' अर्थात् प्रमा (बोध-ज्ञान) विशे पण जैन दर्शन पोताना आगवा सिद्धान्तो धरावे छे. प्रमेय अर्थात् परीक्षणीय वस्तु तो आ आखुं जगत सहुनी समक्ष छे ज. प्रमिति अने वस्तुनुं ज्ञान अने से ज्ञान माटे वस्तुपरीक्षानी स्वीकृत पद्धति ए बन्ने व्याख्यायित थाय तो ज प्रमेयनी परीक्षा योग्य रीते थई शके. न्यायदर्शने वस्तुविचारनी पद्धति बहु सूक्ष्मताथी निर्धारित करी हती. तर्कयुक्ति आधारित अ पद्धतिनो पछीथी सर्व दर्शनोओ स्वीकार कर्यो अने पोतपोताना सिद्धान्तोना प्रतिपादनमां तेनो विनियोग कर्यो. महो. श्री यशोविजयजीओ अवी तार्किक पद्धति आधारित जे ग्रन्थरत्नो आप्यां तेमां ‘जैन तर्कभाषा' मुख्य छे. 'ज्ञान' (प्रमिति ) ना उपकरण तरीके जैनदर्शने जे 'प्रमाणो' स्वीकार्यां छे तेनी तर्कबद्ध विचारणा आ ग्रन्थमां तेमणे करी छे. जैन दर्शनने तार्किक अभिगमथी समजवा मागता अभ्यासीओ माटे आ ग्रन्थनो अभ्यास अनिवार्य छे. आ तर्कखचित अने शास्त्रसन्दर्भोथी समृद्ध ग्रन्थना तात्पर्य अने मर्म सुधी पहोंचवुं प्रथमाभ्यासी माटे दुष्कर छे. ओ माटे विवेचन के टीकानी अपेक्षा रहे ज. आ प्रशिष्ट ग्रन्थनी टीकाओ आधुनिक समयमां विजयनेमिसूरीश्वरजीना पट्टशिष्य आ. विजयोदयसूरिजीओ आ ग्रन्थ उपर विस्तृत टीका रची छे जे तेनी गम्भीरता तथा विशदता थकी प्राचीन टीकाकारोनी स्मृति करावे छे. भारतीय दर्शनशास्त्रना प्रकाण्ड पण्डित श्रीसुखलालजीओ संक्षिप्त छतां अभ्यासीने अति उपकारक ओवी बीजी टीका रची छे. मूळ ग्रन्थ अने तेनी आ बे टीकाओ वर्षो पूर्वे प्रकाशित थयां हतां. हमणां ज बने टीकाओ साथे मूळ ग्रन्थनुं पुनः प्रकाशन ‘जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति, खम्भात' तरफथी थयुं छे. आनुं सम्पादन आ. श्रीPage Navigation
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