Book Title: Jain Siddhanto ke Sandarbh me Vartaman Ahar Vihar
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 7
________________ जन सिद्धान्तों के सन्दर्भ में वर्तमान आहार-विहार 293 अदरक कफ एवं वात का शमन करने वाला, स्वर के लिए हितकारी, विबन्ध ( कब्ज ), अहॉह ( आफरा ) और शूल का नाश करने वाला, कटु रस वाला, उष्ण गुण वाला, रुचिकारक, वृष्य ( पुष्टि कारक ) एवं हृदय के लिए हितकारी होता है। सोंठ स्निग्धोष्णा कटुका शुण्ठी वृष्या शोफ कफारुचीन् / हन्तिवातोद श्वास पाण्डु श्लीपदनाशिनी // सोंठ स्निग्ध गुणवाली, उष्ण वीर्य वाली, कटु रस बाली वृष्या (पुष्टि कारक ), शोफ, कफ और अरुचि, वातोदर, श्वास, पाण्ड और श्लीपद रोग का नाश करने वाली होती है / हींग हिंगूष्ण कटुकं हृद्यं सरं वातकफी कृमीन् / हन्ति गुल्मोदराध्मानबन्धशूलहृदामयान् / / हींग उष्ण वीयं वाली, कटु रस वाली, हृदय के लिये बल कारक, मल निःसारक, वात-कफ और कृमि नाशक होती है / यह गुल्म उदर रोग, आध्मान, बन्ध ( कब्ज ), शूल और हृदय के रोगों का नाश करती है। इस प्रकार उपर्युक्त द्रव्य औषधीय गुणों से सम्पन्न होते हैं जो शरीर में आवश्यक तत्वों की पूर्ति तो करते ही हैं, अनेक प्रकार के रोगों का नाश करने में भी सहायक हैं / ये धार्मिक दृष्टि से त्याज्य होते हुए भी स्वास्थ्य की दृष्टि से ग्राह्य एवं उपादेय हैं। वैसे भी श्री समन्तभद्र स्वामी ने इन द्रव्यों के सेवन-ग्रहण का पूर्णतः निषेध नहीं किया है / केवल अपक्व कच्चे रूप में इनका सेवन नहीं करना चाहिये ( आमानि न अत्ति ) / यदि उन्हें अग्नि पक्व कर लिया जाय, तो जीव .. रहित एवं निर्दोष हो जाते हैं / प्रासुक द्रव्यों का सेवन वयं नहीं है, अतः गृहस्थ श्रावक जीवों के घात ( संकल्पी हिंसा) से बचते हुए अपने आहार विहार को शुद्ध एवं सात्विक रखें, यह धर्मशास्त्र सम्मत है। 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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