Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 14
________________ ( ४ ) निश्चयनय का कथन है-उसका नयार्थ है । प्रश्न १० - मतार्थ क्या है ? उत्तर - वस्तुस्वरूप से विपरीत ऐसे किस मत का ( साख्यबोद्धादिक) का खण्डन करता है । और स्याद्वाद मत का मण्डन करता है - इस प्रकार शास्त्र का कथन समझना वह मतार्थ है । निर्णय करके अर्थ करना वह प्रश्न ११ - आगमार्थ क्या है ? उत्तर - सिद्धान्त अनुसार जो अर्थ प्रसिद्ध हो तदनुसार अर्थ करना वह आगमार्थ है । प्रश्न १२ – भावार्थ क्या है ? उत्तर - शास्त्र कथन का तात्पर्य - साराग, हेय उपादेयरूप प्रयोजन क्या है ? उसे जो बतलाये वह भावार्थ है । जैसे- निरजन ज्ञानमयी निज परमात्म द्रव्य ही उपादेय है, इसके सिवाय निमित्त अथवा किसी भी प्रकार का राग उपादेय नही है । यह कथन का भावार्थ है । प्रश्न १३ – पदार्थों का स्वरूप सीदे-सादे शब्दो मे क्या है, जिनके श्रद्धान- ज्ञान से सम्पूर्ण दुःख का प्रभाव हो जाता है ? उत्तर- " जीव अनन्त, पुद्गल अनन्तानन्त, धर्म-अधर्म - आकाश एक-एक और लोक प्रमाण असँस्थात काल द्रव्य हैं । प्रत्येक द्रव्य मे अनन्त-अनन्त गुण हैं । प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक गुण मे एक ही समय मे एक पर्याय का व्यय, एक पर्याय का उत्पाद और गुण ध्रौव्य रहता है । ऐसा प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक गुण मे हो चुका है, हो रहा है और होता रहेगा ।" इसके श्रद्धान- ज्ञान से सम्पूर्ण दुख का अभाव जिनागम मे बताया है । - प्रश्न १४ – किसके समागम मे रहकर तत्त्व का अभ्यास करना चाहिए और किसके समागम में रहकर तत्त्व का अभ्यास कभी नहीं करना चाहिए ?

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