________________
प्रकाशकीय नम निवेदन
'जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली' या प्रथम नाग प्रमागिन होते देग मुसी अपार हर्ष हो रहा है। लगभग पान वर्ष पहने मे -म गाने को गाकार करने का प्रयत्न चल रहा था। अब यह महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ हो गया है। पचवर्षीय योजना के स्प मे इसके छ भाग प्रकागित करने में सफलता मिलेगी मी पूरी आशा है।
'जैन सिद्धात भवन ग्रन्थावली' का यह पहला भाग जैन मिदान भवन, आरा के ग्रन्थागार मे संग्रहीत मस्कृत, प्राकृत, अपभ्रम, कन्ना व हिन्दी मे हस्तलिखित ग्रन्थो की विस्तृत सूची है। इसमे लगभग एक हजार ग्रन्यो का वि. रण है। हर भाग मे इसका विभाजन दो राण्डो मे किया गया है। पहले गुण्ट में अग्रेजी (रोमन) मे ग्यारह शीर्षको द्वारा पाडुलिपियो के आकार, पृष्ठ राम्या आदि की जानकारी दी गई है। "भवन' के ग्रथागार में लगभग छह हजार हस्तलिग्नित कागज एव ताडपत्र के ग्रयो वा गग्रह है। इनमे अनेक ऐसे भी ग्रन्थ है जो दुर्लभ तथा अद्याववि अप्रकाशित है। अप्रााशित ग्रन्थो को सम्पादित कराकर प्रकाशित करने की भी योजना आरम्भ हो गई है। वर्तमान मे जैन सिद्वात भवन, आरा में उपलब्ध 'राम यशोग्सायन राम (सचित्र जन रामायण) का प्रकाशन हो रहा है जो शीघ्र ही पाठो के हाथ मे होगा। इममे २१३ दुर्लभ चिन हैं ।
'जैन सिद्धात भवन ग्रन्यावली' के कार्य को प्राग्भ कराने में काफी कठिनाइयो का सामना करना पड़ा लेकिन श्रीजी और मां सरस्वती की असीम कृपा से सभी रायोग जडते गए जिससे मै यह ऐतिहासिक एव महत्व पूर्ण कार्य आरम्भ कराने मे सफल हुआ हूँ। भविष्य मे भी अपने सभी महयोगियो से यही अपेक्षा रखता है कि हमे उनका सहयोग हमेशा प्राप्त होता रहेगा।
ग्रन्थावली एव रामयशोरसायन रास के प्रकाशन के सबसे बड़े प्रेरणाश्रोत आदरणीय पिता जी श्री सुबोध कुमार जैन के सहयोग एव मार्गदर्शन को कभी विस्मृत नही किया जा सकता। अपने कार्यकर्ताओ की टीम के साथ उनसे विचार विमर्श करना तथा सबकी राय से निर्णय लेना उनका ऐसा देरीका रहा है जिसके कारण सभी एकजुट होकर कार्य में लगे है।
__ बिहार सरकार एव भारत सरकार के शिक्षा विभाग एवं संस्कृति विभाग ने इस प्रकागन को अपनी स्वीकृति एव आथिक महयोग प्रदान कर एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम उठाया है जिसके लिये हम निदेशक राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली, निदेशक पुरातत्व एव निदेशक सग्रहालय विहार सरकार तथा भारत सरकार के सभी सबधित