Book Title: Jain Shraman ki Rog Prati Rakshatmak Swavlambi Jivan Shaili Author(s): Chanchalmal Choradiya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 8
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 415 का पेशाब बंद हो तो, अन्य स्वस्थ साधक का शिवाम्बु पिलाने से मूत्र में आया अवरोध दूर हो जाता है। उसके पश्चात् रोग ग्रस्त साधक अपने स्वयं के शिवाम्बुका सेवन कर सकता है। 21. मौन हंसी द्वारा रोगोपचार- हँसी से शरीर में वेग के साथ ऑक्सीजन का अधिक संचार होने से मांसपेशियाँ सशक्त होती हैं। जमे हुए विजातीय, अनुपयोगी, अनावश्यक तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं, जिससे विशेष रूप से फेंफड़े और हृदय की कार्य क्षमता बढ़ती है। अवरोध समाप्त होने से रक्त का प्रवाह संतुलित होने लगता है। फलतः हृदय और श्वसन संबंधी रोग होने की संभावनाएँ कम हो जाती हैं और यदि इनसे संबंधित कोई रोग हो तो तुरन्त राहत मिलने लगती है। प्रातःकाल चंद मिनटों तक एकान्त में, स्वच्छ वातावरण में बैठ साधक मौन हंसी द्वारा हास्य योग द्वारा स्वयं को स्वस्थ रख सकते हैं। एकाग्रता से रोगोपचार- प्रातःकाल जितना जल्दी उठ सकें, निद्रा त्यागकर शांत, एकान्त खुले स्वच्छ वातावरण में आंखें एवं मुंह बंद कर, दर्द अथवा शरीर के कमजोर भाग पर यदि दबाव दे सकते हैं तो दबाव दें, अन्यथा उस स्थान पर हथेली से मसाज करने, अगर यह भी संभव न हो तो उस स्थान पर हथेली से स्पर्श कर मौन हंसी -हंसने से शरीर के उस भाग में चेतना का प्रवाह अधिक होने लगता है। जिससे शरीर का वह भाग सक्रिय होने लगता है। चन्द दिनों तक नियमित इस प्रयोग से चमत्कारी परिणाम आते हैं तथा संबंधित अंग सक्रिय हो बराबर कार्य करने लग जाता है। पेन्क्रियाज पर दबाव देने से चन्द दिनों में ही मधुमेह का रोग भी नियन्त्रित हो जाता है। हृदय पर मसाज करने से हृदय बराबर कार्य करने लगता है। 23. मेथी स्पर्श रोग निवारण- मेथी वात और कफ का शमन करती है। अतः जिस स्थान पर मेथी का स्पर्श किया जाता है, वहाँ वात और कफ विरोधी कोशिकाओं का सृजन होने लगता है, शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगता है। दर्द वाले अथवा कमजोर भाग में विजातीय तत्त्वों की अधिकता के कारण शरीर के उस भाग का आभा मंडल विकृत हो जाता है। मेथी अपने गुणों वाली तरंगें शरीर के उस भाग के माध्यम से अन्दर में भेजती है। जिसके कारण शरीर में उपस्थित विजातीय तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं, प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने लगता है। फलतः रोगी स्वस्थ होने लगता है। जैन श्रमण के लिए सचित्त मेथी का उपयोग वर्जित होने से वे अचित्त मेथी स्पर्श कर उपर्युक्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 24. रक्त शुद्धि का सरल उपाय-तेल गंडूस- लगभग एक चम्मच सूर्यमुखी तेल को 15 से 20 मिनट मुंह में अन्दर ही अन्दर घुमाकर थूकने से रक्त की शुद्धि होती है। जिससे रक्त-विकार से संबंधित, उच्च एवं निम्न रक्तचाप, हृदय, गुर्दे, त्वचा आदि सभी प्रकार के रोग चन्द दिनों में ही दूर होने लगते हैं। हड्डियां और दांत भी मजबूत होने लगते हैं। 25. शारीरिक संतुलन क्यों आवश्यक?- हमारा शरीर दाहिने एवं बायें बाह्य दृष्टि से एक जैसा लगता है। परन्तु उठने-बैठने-खड़े रहने, सोने अथवा चलते-फिरते समय प्रायः हम अपने बायें और दाहिने भाग पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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