Book Title: Jain Shasak Amogh Varsh Pratham
Author(s): Dinbandhu Pandey
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 6
________________ जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन गरुड़ की प्रतिकृत्ति के लिए द्रष्टव्य, अमोघवर्ष प्रथम का जवखेड़ अभिलेख, एपिग्रापिया इण्डिका भाग 32, पृष्ठ 129, टिप्पणी 1, फलक 3; दन्तिवर्मा का गुजरात अभिलेख वही, भाग 6, पृष्ठ 285; अमोघवर्ष के समय का हूविन-हिप्पगि अभिलेख, साउथ इंडियन इंस्क्रिप्शंस, भाग 11, खंड 1, पृष्ठ 5, टिप्पणी 1 / कर्क सुवर्णवर्ष के बड़ोदा अभिलेख (इंडियन एंटिक्वेरी, भाग 12, पृष्ठ 156) एवं ध्रुव द्वितीय के बगुमरा अभिलेख (वही पृष्ठ 189) की मुद्राओं पर शिव का अंकन कहा गया है। किन्तु ये अंकन गरुड़ के ही जान पड़ते हैं / इनमें से कर्क सुवर्णवर्ष के अभिलेख की मुद्रा प्रकाशित है (वही, पृष्ठ 156 के सामने का फलक) जिसमें गरूड़ के पंख स्पष्ट द्रष्टव्य है। अन्य धार्मिक प्रतीकों में स्वस्तिक का उल्लेख किया जा सकता है जिनका अंकन अमोघवर्ष प्रथम के काल के सौरटूर अभिलेख में प्राप्त है (साउथ इंडियन इंस्क्रिप्शंस, भाग 11, खण्ड 1, पृष्ठ 8 टिप्पणी 3) / 26. श्रियः प्रियस्संगतविश्वरूपस्सुदर्शनच्छिन्नपरावलेपः / दिश्यादनंतः प्रणतामरेंद्रः श्रियं यांद्यः प्रभवो जिनेन्द्रः // अनन्तभोगस्थितिरत्र पातु वः प्रतापशीलप्रभवोदयाचलः / सुराष्ट्रकूटोज्जितवंशपूर्वजस्स वीरनारायण एव वो विभुः / / -कोन्नूर अभिलेख, श्लोक 1-2, एपिग्राफिया इंडिका, भाग 6, पृष्ठ 39 / 27. वही, श्लोक 2 / 28. अमोघवर्ष प्रथम के संजान, जवखेड, तरसादी एवं सिरुर अभिलेख तथा उसके काल के नीलगुंड अभिलेख एवं दन्तिवर्मा के गुजरात अभिलेखों में निम्न श्लोक पाया जाता है स वोऽव्याद्वेधसा धाम यन्नाभिकमलं कृतं / हरस्य यस्य कान्तेन्दुकलया कमलं कृतं // 29. जयति भुवनकारणं स्वयमूज्जित पुरन्द्रनन्दनो मुरारिः / जयति गिरिसुता निरुद्धदेहो दुरितमयापहरो हरश्च देवः / / विष्णु एवं शिव के संबंध में दूसरा श्लोक वही है जो टिप्पणी 28 में उद्धृत है (एपि ग्राफिया इंडिका, भाग 6, पृष्ठ 102, श्लोक 1, 2) / 30. वही, पृष्ठ 277, पंक्ति। 31. द्रष्टव्य, उपरि टिप्पणी 14, 15 / 32. आयोलाजिकल सर्वे आफ वेस्टर्न इंडिया, भाग 5, पृष्ठ 87, पंक्ति / 33. एपिग्राफिया इंडिका, भाग 1, पृष्ठ 211 एवं आगे, कर्णाटक इंस्क्रिप्शंस, भाग 1, पृष्ठ 13 एवं आगे। सुदृष्टिपुरी डिग्री कालेज, बलिया, उ० प्र० . परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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