Book Title: Jain_Satyaprakash 1955 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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मड्डाहडगच्छकी कालिकाचार्यकथा-प्रशस्ति ।
लेखक श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा
मडाहडगच्छकी परम्पराके सम्बन्धमें अपनी जानकारी मैंने 'जैन सत्य प्रकाश' वर्ष २० अंक ५में प्रकाशित की थी। उसके अंतमें यह लिखा गया था कि 'खोज करने पर भी इस गच्छकी कोई प्रशस्ति व पुष्पुिका लेख प्रकाशित हुआ, देखने में नहीं आया' पर उसके बाद अपने पिताश्रीकी स्मृतिमें स्थापित शंकरदान नाहटा कलाभवनमें प्रदर्शित प्रतियोंकी सूची बनानेका प्रसंग आया तो कालिकाचार्यकी सचित्र प्रतिके अंतमें मड्डाहडगच्छकी नव श्लोककी एक प्रशस्ति देखनेको मिली। पूर्व लेख लिखते समय इसका ध्यान ही नहीं आया था। इसलिये अब इसे प्रकाशित की जा रही है ।
इस प्रशस्तिमें मड्डाहडगच्छके कमलप्रभसूरिके शिष्य वाचनाचार्य गुणकीर्तिको कल्पसूत्रके साथ इस कालिकाचार्य कथाको सिरोहीके श्रावक तिहुणा महणा द्वारा दिये जानेका उल्लेख है । तिहुणा महणाकी परंपरा बतलाते हुए उनको उपकेशवंशीय बहुरागोत्रीय सुश्रावक आभाक महिपालका वंशज बतलाया है। इन्होंने शत्रुजय तीर्थकी संघ सहित यात्रा की थी। सिरोहीमें लक्ष भूपतिके राज्यमें इस प्रतिको तिहुणा महणाने भावपूर्वक गुरुको दी। प्रशस्तिमें समयका निर्देश नहीं किया गया, पर सिरोहीके इतिहासके पृष्ठ १५७के अनुसार महाराव लाखा संवत् १५०९में गद्दीनशीन हुये थे, ये बड़े वीर प्रकृति राजा थे, संवत् १५४०में परलोकवासी हुए। सिरोहीके लिए प्रशस्तिमें ‘सितरोहीपुर' शुद्धरूप प्रयुक्त कियाँ गया है । देशी नामोंको संस्कृतवाले इसी तरह मनमाने संशोधितरूप दिया करते है।
इस प्रशस्तिको प्रकाशित करने ही वाला था कि श्रीअचलमलजी मोदीका तीर्थ मडाहड' लेख 'जैन सत्यप्रकाश में पढनेको मिला। उसमें सिरोहीके अनंतनाथ मंदिरमें इस गच्छके आचार्यने एक भद्रप्रासाद बनाया और श्री कमलप्रभसूरिने प्रतिष्ठा की, इस भाववाले शिलालेखका उल्लेख किया है, इससे मेरे संग्रहकी प्रकाशित की जानेवाली प्रशस्तिके कमलप्रभसूरि भिन्न नहीं है, अतः उस लेखको नकल भी श्री मोदीसे प्राप्त कर इसके साथ ही प्रकाशित की जा रही है । प्रशस्तिमें कमलप्रभसूरिको हरिभद्र मूरिका पटधर लिखा है, साथ ही संवत् १५२०में आचार्य धनप्रभसूरिके साथ होने का भी उल्लेख किया है। मोदीजीने इस गच्छके दो और लेख भेजे है, उन्हें भी साथ ही दे रहा हूं।
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