Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बम्बई मण्डन श्रीचिन्तामणि प्रतिष्ठा स्तवन संपा० श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा बम्बईके श्रीचिन्तामणिजीके मन्दिर निर्माण सम्बन्धमें दो-तीन वर्ष पूर्व हमसे पूछा गया था, पर उस समय इस सम्बन्धमें कोई प्रामाणिक साधन स्मरण नहीं था। हमारे मंदिरोंके निर्माणादिके सम्बन्धमें बहुत वार तो वहां प्राप्त शिलालेख, मूर्ति लेखादिके आधारसे निर्णय हो जाता है पर कई मन्दिर ऐसे भी हैं जिनके निर्माणादि सूचक शिलालेख प्राप्त नहीं होते और मूर्तियोंके लेख पृष्ठ भागमें होनेसे या पचीमें दब जानेसे पढ़नेमें नहीं आते। कई मन्दिरोंमें मूलनायकादि प्रतिमाएं अन्य स्थानोंसे लाकर विराजमान की जानेके कारण उनके लेख भी मन्दिरके इतिवृत्त जाननेमें सहायक नहीं होते। वहां एक मात्र साधन पुराने कागजात या समकालीन बने स्तवन ही होते हैं। बम्बईका चिन्तामणि मन्दिर कोई अधिक प्राचीन नहीं, फिर भी १२५ वर्ष हो जानेसे उसके पुराने कागजात संभव है उसके निर्माणादिके सम्बन्धमें निर्णय न दे सकते हो इसीलिए समकालीत स्तवनादिकी खोज की गयी। हमें यह तो विदित था कि खरतरगच्छीय वाचक अमरसिंधुरजी सं. १८८०के लगभग बम्बई जाकर कई वर्ष रहे थे और वहां उनके रचित कुशलसूरिस्थाननामगर्भित स्तवन गा. ६५, प्रदेशी चौपाई, एवं नवाणुं प्रकारी पूजा आदि भी ज्ञात थे। हमारा अनुमान था कि उन्हींके उपदेशसे श्रीचिन्तामणिजीका मन्दिर स्थापित हुआ हो । अभी इसकी पुष्टि हमारे संग्रहके एक गुटके, जिसमें उनके रचित अनेक पद है, में प्राप्त चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवनसे हो गई है। यह गुटका सं. १८८८में बम्बईमें ही उन्होंने अपने शिष्य रूपचंद और आनंदके लिए स्वयं लिखा था । इसके प्रारंभिक २९ पत्र प्राप्त नहीं हैं इसलिए इनकी बहुतसी रचनाएं (जिनकी संख्या ३९ थी व ४०का कुछ अंश भी नहीं है ) प्राप्त न हो सकी, फिर भी प्राप्तपत्रोंमें भी शताधिक रचनाएं हैं। अंतमें जैसलमेरके पटवोंके संघके वर्णनकी तीर्थमाला है, जो लिखते हुए छोड दी गयी है । चिन्तामणि पार्श्वनाथजीके भी इसमें अनेक स्तवन हैं। और भी उनके पदादि उत्तम होनेसे प्रकाशन योग्य हैं जिनका प्रकाशन चिन्तामणिजी मंदिरके ट्रस्टियोंको करवाना चाहिए। यहां तो हम केवल उसी स्तवनको प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें इस मंदिरके निर्माता और प्रतिष्ठापक आदिका वर्णन है। यद्यपि प्रतिष्ठाका संवत् नहीं दिया है पर वह निम्नोक्त विचारणासे निर्णित हो जाता है। इस स्तवनके ९वें पद्यमें अमरसिंधुरजीके ८ वर्षकी प्रेरणा व प्रयत्नसे इस मंदिरका For Private And Personal Use Only

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