Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - Me] જેમેં ધારણ પૂજા मूडा आठ सहस, दीध वीसल वणवीरे । मूडा बार सहस, दीध सिंधवे हमीरे ॥ गंजनमे सुलतान, सहस मूडा इकवीसें । मालवे पत्र अदार, अने मेवाड बात्तीसें ॥ राया स धारण इण पर हुवो, संवत् बारतीडोत्सरे । जगडवा साह सोलातणे, करी प्रसिद्ध पनडोत्तरे ॥३॥ अद्वय मूढ सहस्सा वीसलरायस्स, बार हम्मीरा । गवीस सुरत्ताण तई दिणा जगड दुब्भिक्खे ॥४॥ दानसाल जगडूतणी केती हुई संसारि। , नवकरवाली मणिअ जे, तेहिं अग्गल विचारि ॥५॥ ૧ થી ૩ કવિત મોરબીના મેજીસ્ટ્રેડ . રા. નથુભાઈ પીતામ્બરભાઈ દ્વારા પ્રાપ્ત. ૪ થી ૫ છે. કલરના પુસ્તકથી ઉદ્ભત. जैनोंमें धारणी-पूजा (लेखकः--डा. बनारसीदासजी जैन) धारणी बौद्ध धर्मका पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है अलौकिक शक्तिको धारण करने वाली, अथवा भूत पिशाच आदिके दुष्ट प्रभावको पकड़कर रखने वाली अर्थात् उससे बचाने वाली । वास्तवमें धारणी बौद्ध मन्त्र या स्तोत्रको कहते हैं जिसका प्रयोग मनोरथसिद्धिके लिये किया जाता है। जैसे-अनावृष्टि, रोग, महामारि, भूत पिशाचादिको दूर करनेके लिये, तथा युद्ध में विजय, धन, पुत्रादिकी प्राप्तिके लिये।। ___भारतवर्षमें मन्त्र विद्या बड़ी प्राचीन है । वैदिक, विशेषकर आथर्वण, मन्त्रोंका प्रयोग अभीष्ट सिद्धिके लिये होता था ! बौद्ध धर्मको भी ऐसे मन्त्रोंकी आवश्यकता हुई। पालीके कई "मुत्त' (सूत्र) “परित्ता" (रक्षामन्त्र)के तौर पर प्रयुक्त होने लगे। महायान संप्रदायने भी कुछ सूत्रोंसे मन्त्रों (धारणी)का काम लिया। निश्चयपूर्वक तो नहीं कहा जा सकता कि धारणियोंकी रचना कब प्रारम्भ हुई। फिर भी विक्रमकी तीसरी शताब्दीमें धारणियोंकी सत्ताके प्रमाण मिलते हैं। लेकिन भगवान् बुद्धके समयमें इनका अस्तित्व सिद्ध नहीं होता, यद्यपि उस समय यज्ञ, बलि, मन्त्र आदिका बहुत प्रचार था। बौद्ध धर्मको महायान संप्रदायके साहित्यका धारणियां एक प्रधान और विशाल अंग हैं। नेपाल देशसे पचासके लगभग धारणियां मिली हैं। कई एक तिब्बत, चीन, जापान तथा मध्य एशियासे उपलब्ध हुई हैं। धारणियोंकी भाषा पालीप्रभावान्वित संस्कृत होती है। इनके प्रारम्भमें एक कथानक सा होता है जिसमें यह बताया होता है कि प्रस्तुत धारणिका आविर्भाव कैसे और किसके लिये हुआ। इसके बाद मूल धारणी अर्थात् देवताके आवाहन पूर्वक मन्त्रपद, बीजाक्षरादि यथा-डों सुट । सुट । खट । खट । खिटि । खिटि । खुट । खुट । सुरु । सुरु । मुत्र। मुख । मुरुश्च । मुरुश्च इत्यादि । इनके अनन्तर धारणीका माहात्म्य रहता है। For Private And Personal Use Only

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