Book Title: Jain_Satyaprakash 1944 11 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म २-३ ] પૂજનૈમે' ભી યા [ 3 घटता है इस लिए जैसे वैदिकी हिंसाके दृष्टांत से मूर्तिपूजामें हिंसा साबित करते हो उसी तरह तुम्हारी धार्मिक प्रवृत्तियोंमें भी हिंसा सिद्ध होती है । उदाहरण दोनोंमें समान है । तुम्हारी धार्मिक प्रवृत्तियों में मात्र एकेन्द्रिय जीवोंकी ही हिंसा नहीं है किन्तु सकी भी है, क्योंकि तुम गुरुओंको वंदनादि के लिए रेलगाडी आदिमें जाते हो इससे कई त्रस पंचेन्द्रियोकी भी हिंसा होती है, इसका कभी ख्याल किया है ? और तुम्हारे साधु उन लोगों के आने में खुश होते हैं इससे त्रस जीवोंके वधमें निमित्त होते हैं, नहि तो निषेध करना चाहिए । विहार आदिमें भी कितनें नसों का वध होता है ? ऐसी अनेक बातें है जिन्हें परिचित लोग जानते हैं। पुष्पों की तो स्वरूप हिंसा है। साधुके पेर नीचे जीव दब जाय तो इस हिंसाको क्या वैदिकी हिंसा कहोगे ? क्योंकि तुम्हारे उद्देश्यसे मात्र हिंसा शब्द जहां लगे वह वैदिकी हिंसा है । हमारे यहां पुष्पोंसे प्रभुपूजा करनेकी विधि सूरिजीने दोखलाई है वैसी है । इसके लिए श्राद्धविधि आदि ग्रंथ देखलेना । पुष्पों को तोडने की बातका भी इसी ग्रंथ में खुलासा मिल जायगा । यह सब ख्याल रखकर ही लिखा गया है कि भगवानके शिररूप कण्ठरूप अंगों का आश्रय लेकर बिचारें पुष्प आराम से बैठे हैं । इसकी दया भी किस अपेक्षासे होती है यह भी सूरिजीने साफ दिखा दिया है । इस ग्रंथका विचार पूर्वक अवलोकन करनेसे किस तरह पुष्पको उपयोगमें लिया जाता है वह सब मालूम हो जाता है । और मालीसे श्रावको फुल खरीद कर उसकी दया करते हैं, जैसे कषाइयोंसे गाय आदिको वर दया करते है, इस पर भोगीको फुल नही मिलेंगे-ऐसा आक्षेप करना अज्ञान है । कसाई से गाय छुडवानेसे क्या उसको गाय नहीं मिलती ? इससे गायको छुडानेवाले की दया 1 1 1 1 नहीं कही जायगी ? चाहे वह अधिक गायको और प्राप्त करे या न करे गायको छुडवावालेको दया जरूर ही है । माली अधिक फुल लावे या न लावे सद्उपयोगके लिए श्राक्कका फुल खरीदना भी दया ही है। मगर मालीके पास रहा हुवा पुष्प मृतक तुल्य है, इससे दया नहीं होती ऐसा कहना भी गलत है, क्योंकि पुष्प प्रत्येक शरीरी है अत एव सब्जिको साधु छूते नहीं हैं । यदि दया करना हो तो भोगीयों को समझाकर उनसे फुलोंकी रक्षा करवाते इसीसें फुलोंकी रक्षा हो सकती थी यह आक्षेप भी बराबर नहीं, क्योंकि कमाई को समझाकर उनसे गायोंकी रक्षा करवाते, इसीसे उनकी रक्षा हो सकती थी फिर पैसा देकर क्यों छुडवाना ? तुम्हारे हिसाब से तो वह दया ही नहीं है । यदि भक्त के रेलगाडी वगैरह से गुरुके दर्शनार्थ जाने में किसी प्रकारकी हिंसा नहीं और दीक्षाके समय नाना ग्रामोसे भावुक गण आने में कोई हिंसा नहीं, धर्म है, क्योंकि गुरु निषेध नहीं करते हैं, आनेमें ही प्रसन्न होते है, तो गुरुओंको भी रेलगाडी वगेरे में जाना चाहीए, क्योंकि इसमें कोई हिंसा नहीं फीर रेल आदिसे वंचित रहना उनकी बुद्धिमानी नहीं है । पाठक इस बातको अवश्य जान लेंगे कि किसी पडे हुए For Private And Personal Use Only

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