Book Title: Jain Samt Vyapti
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 1
________________ जैन संमत व्याप्ति - दलसुख मालवणिया जैनों के मत से तर्क स्वतंत्र प्रमाण है और उसका विषय व्याप्ति है। अन्य दर्शन में तर्क को स्वतंत्र प्रमाण माना नहीं गया केवल जैन दर्शन में ही तर्क को स्वतंत्र प्रमाण माना गया है। तर्क को स्वतंत्र प्रमाण क्यों माना जाय इस की विशेष चर्चा जैनों के दार्शनिक ग्रन्थों में की गई है । व्याप्ति के विषय में जैन मान्यता क्या है उसी का विवरण यहां प्रस्तुत है । प्रथम यह जानें कि व्याप्ति क्या है? पदार्थों के त्रैकालिक संबंध को व्याप्ति माना गया है। आचार्य विद्यानंद ने तर्क के प्रमाण्यर्क चर्चा के प्रसंग में कहा है सम्बन्धं व्याप्तितेऽर्थानां विनिश्चित्य प्रवर्तते। येन तर्कः स संवादात् प्रमाणं तत्र गम्यते ॥४॥ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक १.१३ ।। प्रस्तुत प्रसंग में सर्वप्रथम बौद्धों की यह शंका कि संबंध तो वस्तुसत् नहीं, वह तो काल्पनिक है तो वह तर्क प्रमाण का विषय कैसे होगा? इसका निराकरण किया गया, हम जानते हैं कि धर्मकीर्ति ने संबंध परीक्षा नामक ग्रन्थ लिखा है। उसमें उन्होंने संबंध का निराकरण किया है। अतएव यह जरूरी था कि संबंध भी वस्तुसत् है—इसकी स्थापना की जाय। अतएव जब जैनों ने संबंध को तर्क का विषय माना तो यह आवश्यक था कि वे संबंध की स्थापना करें। मैं यहां बौद्ध और जैनों की उस चर्चा का पूरा विवरण देना आवश्यक नहीं समझता हूं । जिज्ञासु उस चर्चा को अन्यत्र देख लें। यहां तो आचार्य विद्यानन्द ने बौद्धों की ही पदार्थ या वस्तुसत् जैन संमत व्याप्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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