Book Title: Jain Sahitya aur Sanskruti ki Bhumi Mevad Author(s): Kasturchand kasliwal Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf View full book textPage 5
________________ 168 | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन अन्य 000000000000 000000000000 (4) जिनदत्त सूरि-जिनदत्त सूरि १२वीं शताब्दी के जैनाचार्य थे। संवत् 1164 में चित्तौड़ के वीर जिनालय में देवेन्द्रसूरि द्वारा खरतरगच्छ के आचार्य पद का भार दिया गया। आप प्रगमधान के पद से भी सुशोभित थे। आपने जैन-साहित्य की अपूर्व सेवा की तथा अपभ्रंश में उपदेशरसायनराय, चर्चरी एवं काल स्वरूप कलक की रचना सम्पन्न की / आपके पूर्व जिनवल्लभ सूरि को भी चित्तौड़ में ही संवत् 1167 में खरतरगच्छ पद पर प्रतिष्ठित किया गया / 5. भट्टारक सकल कौति भट्टारक सकल कीति १५वीं शताब्दी के महान जैन संत थे / संस्कृत एवं प्राकृत के वे प्रकाण्ड विद्वान थे। आपने सर्वप्रथम मेवाड़ प्रदेश में स्थित नेणवा नगर में भट्टारक पदमनन्दि के पास अध्ययन किया था। आपका जन्म संवत् 1443 में और स्वर्गवास संवत् 1496 में हुआ। आपकी प्रमुख कृत्तियों में आदि पुराण, उत्तरपुराण, शांति पुराण, पार्श्वपुराण, महावीर चरित, मल्लिनाथ चरित, यशोधर चरित, धन्य कुमार चरित, सुकुमाल चरित, कर्मविपाक सूक्ति मुक्तावली के नाम उल्लेखनीय हैं / आपने मेवाड़, बागड़ एवं गुजरात में विहार करके जैन साहित्य एवं संस्कृति की अपूर्व सेवा की थी। उन्होंने गिरनार जाने वाले एक संघ का नेतृत्व किया और जूनागढ़ में आदिनाथ स्वामी की धातु की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सम्पन्न की। उक्त कुछ विद्वान आचार्यों के अतिरिक्त मेवाड़ में पचासों जैन साहित्य सेवी हुए जिन्होंने जैन साहित्य के निर्माण के साथ ही उसके प्रचार-प्रसार में भी अत्यधिक योगदान दिया। Sr... 00 ------------- AR राजनीति का प्रमुख सूत्र है-अविश्वास ! और धर्मनीति का प्रमुख सूत्र है-विश्वास ! अविश्वास-जीवन में अधिक दूर तक नहीं चल सकता। जीवन में कहीं न कहीं किसी का विश्वास करना ही होता है। हां, विश्वास में भी विवेक रखना चाहिए। विवेक-शून्य विश्वास 'अंध-विश्वास होता है / --'अम्बागुरु-सुवचन' 1 ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृष्ठ 5 2 वही 3 जैन ग्रन्थ भंडारस् इन राजस्थान, पृष्ठ 236 30000 MADRI 88680 टा - OSTALE J ou canton memona Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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