Book Title: Jain Sahitya Samvardhan me Rashtra Kutyug ka Yogdan Author(s): Jyoti Prasad Jain Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 6
________________ जिनसेनसूरि पुन्नाट-(७८३ ई०) हरिवंशपुराण (सं०, १०००० शक ७०५) जिनसेन स्वामि (ल० ७९०-८५०) जयधवलटीका (प्रा० सं० शेष, ४०००० शक ७५९), लोकानुयोग (सं०), पाश्वम्युिदयकाव्य (सं०), आदिपुराण (सं०, १०३८०) अपूर्ण । श्रीधराचार्य (७९९ ई०) ज्योति निविधि (सं०), गाणितसार (सं०) श्रीपाल (ल० ८०० ई०) जयधवलका संपालन-सम्पादन हेलाचार्य , ज्वालिनीकल्प (प्रा०) कोट्याचार्य , वड्डाराढने (वृहत् आराधनाकथा (क०) पेराशिरियर , तोलकपियम व्याकरणकी टीका (त०) मणरुनेय्यार अरैयनार (ल० ८०० ई०) पलमोलि (त०) सूक्तिसंग्रह इन्द्रनन्दि संहिता (प्रा०), पूजाविधि (प्रा.) आर्यदेव राद्धान्त (सं०) कन्नमय्य मालतिमाधवकाव्य (क०) पद्मसेन पाश्र्वचरित्र (सं०) त्रिभुवन स्वयंम् (ल० ८००-८२०) स्वयंभके काव्योंका सम्बर्द्धन-सम्पादन अनन्तवीर्य (रविभद्रशिष्य) (ल० ८००-८४०) सिद्धिविनिश्चयटीका (सं०), प्रमाणसंग्रह टीका (सं०) अमोघवर्ष नृपतुंग (८१५-७६ ई०) प्रश्नोत्तररत्नमालिका (सं०), कविराजमार्ग (क०) गुणनन्दि (ल० ८२५-५० ई०) जैनेन्द्रका शब्दार्णव सूत्रपाठ (सं० चन्द्रकीति , श्रुतविन्दु (सं०) अनन्तकीति (ल० ८५० ई०) बृहत्सर्वज्ञसिद्धि, (धर्मसिद्धि),जीवसिद्धि,प्रमाणनिर्णय,(सब सं.) देवसेन (वीरसेन शिष्य) (ल० ८५० ई०) धर्मसंग्रह (प्रा.) विजया (बंकेय पत्नी काव्य (सं० (?) महावीराचार्य (ल० ८५०-७५ ई०) गणितसारसंग्रह, क्षेत्रगणित, ज्योतिषपटल, छतोसुपूर्वा प्रति उत्तर प्रतिसह, (सब सं०)। शाकटायन पाल्यकीर्ति ,, शब्दानुशासन, स्वपज्ञ, अमोघवृत्तिसहित, स्त्रीमुक्तिप्रकरण (सब सं०) गुणभद्राचार्य (ल० ८५०-८५ है०) जिनसेनीय आदिपुराणका शेष भाग, उत्तर पुराण, जिनदत्त चरित, आत्मानुशासन, (सब सं०) वीरपण्डित (वीराचार्य) , प्रतिष्ठापाठ (सं०), शकुनदीपक (सं०) असगकवि (८५३ ई०) वर्द्धमान या सन्मतिचरित (सं०, वि० सं० ९१०), शान्तिपुराण (सं०), चन्द्रप्रभपुराण (सं०) आदि, कई कन्नड़ग्रन्थ भी बताये जाते हैं। कौमारसेन (८७१ ई०) अर्हतत्प्रतिष्ठासार (सं०) सिंहसूरि मुनि (ल० ८७५ ई०) वट्टाराधनकथाकोश (प्रा०, ४०००) गुणवर्म (८८६-९१३ ई०) हरिवंश या नेमिनाथपुराण (क०), शूद्रकपद्य (क०) लोकसेन (८९८ ई०) गुणभद्रीय महापुराणका सम्पादन-विमोचन (पूरक ८२०) -२७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7