Book Title: Jain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 5
________________ आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आनंदऋषिजी म. का शुभ - सन्देश जैन तत्त्वज्ञान में शोध की दशा, दिशा और सम्भावना पर दृष्टिपात करते हुए ऐसा प्रतीत होने लगा है कि भारतीय मनीषा के प्राच्य मूल्यों का युगीन सन्दर्भ में यदि आकलन न हो सका तो हमारी बहुत बड़ी धरोहर उपेक्षा और अवमूल्यन का शिकार बन जायेगी। विज्ञान और तकनीकी विकास के परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक अवधारणाओं का समीचीन सन्दर्भ केवल शोध द्वारा सम्भव है और वह भी अनेकान्त दृष्टिकोण को लक्ष्य रखकर। योग का विवेचन प्रस्तुत कर श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण-संघ की विदुषी आर्या साध्वी प्रियदर्शनाजी ने बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की है। श्रमण संघ के इतिहास में यह उल्लेखनीय प्रयास है। जैविक चेतना के क्रमिक विकास एवं आधारभूत सिद्धांतों के प्रतिपादन में साध्वीजी ने जिस मेधा का परिचय दिया है, उसके सम्मानार्थ पुणे विश्व विद्यालय के दर्शन विभाग, मार्गदर्शक, परीक्षक आदि ने जिस किस प्रकार का योगदान दिया है, उसके प्रति मंगल भावना प्रस्तुत है। विश्वास है, विद्यावारिधि / पीएच. डी. उपाधि से विभूषित साध्वी प्रियदर्शनाजी संयम मार्ग में अबाध गति से चलती हुई ज्ञान - दर्शन - चारित्र की प्रभावना में तीन करण - तीन योग से दत्तचित्त रहेगी और वर्तमान तथा भविष्यत् के लिये ऐसे मानदण्ड प्रस्तुत करेंगी जिससे विशाल स्तर पर लोग लाभान्वित होंगे। - आचार्य आनन्दऋषि चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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