Book Title: Jain Ras Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandra Maharaj
Publisher: Gokaldas Mangaldas Shah
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रचना तेमणे पटणानगर मध्ये स्वपर कल्याणना कारणे विक्रम संवत १७६२ ना वर्षे मागसर वदी पंचमी गुरुवार सिद्धियोगमां करेल छे, पोताना हाथनी लखेल प्रतिमां ते प्रमाणे अंतमां लखेल छे. आ चरित्रनी सर्व गाथा १७० छे. श्रीजिनेश्वर परमात्माओए कर्मनी गति बहु विशमी बतावेल छे तेनो स्फोट करता कुबेरदत्त अने कुबेरदत्तानो जीवनवृतांत वर्णवता कविवरे घणीज असरकारक शैलीथी गुजराती भाषामां पद्यबंध भाववाही कवितामां गुंथेल छे. तेनी मझाह तो वांचनारज जाणी शके. मोहनीय कर्मनी स्वरूप विशेषता पूर्वक वर्णव्यो छे. आ रासना कर्ता संस्कृत, पाकृत भाषामां सारा विद्वान् हता. तेमणे प्राकृत गाथा बद्ध सदोपदेशनामा ग्रन्थ तथा प्राकृत गाथाबद्ध कलिकालस्वरूपकथनशतक नामा ग्रन्थ रच्यो छे. ए बे ग्रन्थो तो मारी पासे मोजुद छ.. ते शिवाय पण तेमणे सारा सारा ग्रन्थो रच्या हशे ? आध्यात्मिक पदो-स्तवनो सज्झायो पण तेमना करेला जोवामां आवे छे. तेमज घणा ग्रन्थो तेमणे लख्या छे, तेथी सारा लेखक पण हता, तेमनो जीवन वैराग्य वासित आध्यात्मिक हतुं. तेओ मारवाड, पूर्व, बंगाल विगेरे देशोमां विशेष विचर्या छे. तेमनो जीवन ईतीहास विशेष जाणवामां आवेल नथी.
४-श्रीरोहिणीनो चोपाई बद्ध-रास. पृष्ट ९६थी१४७ शुधीमां आवेल छे. तेना कर्ता-श्रीनागपुरीयवृहत्तपागच्छ गगनांगणनभोमणी श्रीपार्श्वचंद्रसूरीश्वर परंपरामां श्रीजयचंद्र

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