Book Title: Jain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Author(s): Sima Rani Sharma
Publisher: Piyush Bharati Bijnaur

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Page 10
________________ और शुक्ल ध्यान, इन ध्यान के भेदों का वर्णन करते हुए तत्त्वार्थ सूत्रकार ने ‘परे भोक्ष हेतु' कहकर धर्म और शुक्ल ध्यान को मोक्ष का हेतु कहा है । इनमें शुक्ल ध्यान साक्षात् हेतु है, क्योंकि मोक्षगामी पुरुषों के जीवन प्रसङ्ग में प्राय: कहा जाता है कि अन्त में योगों का निरोध कर क्षपक श्रेणी पर अरोहण कर वे शुक्ल ध्यान से मुक्त हुए । इस प्रकार ध्यान मोक्ष की कुञ्जी है, यह जीवन का अनुभूत प्रयोग है । आज ध्यान की विविध प्रकार की पद्धतियाँ लुप्त हो गई हैं. इन्हें जाग्रत करने की पुनः आवश्यकता है। वर्तमान समय में ध्यान अथवा योग पर पाश्चात्य जगत् का भी ध्यान गया है। वहाँ योग और उसकी शैलियाँ अधिक लोकप्रिय हो रही हैं । आज के भटकते हुए मानव को यदि कोई त्राण दे सकता है, तो सद्ध्यान ही दे सकता है । इसके लिये आवश्यकता है सम्यक पुरुषार्थ की । ध्यान की लोकप्रियता को देखते हुए नित्य प्रति नई नई पुस्तके आ रही हैं । स्थानक वासी आचार्य तुलसी और उनके शिष्यों ने प्रेक्षाध्यान पर अनेक पुस्तके लिखी हैं । शोध की दृष्टि से कुछ पुस्तके प्रकाश में आई हैं, किन्तु अभी भी बहुत कुछ करना शेष है। इस दिशा में कु० डा० सीमा रानी शर्मा ने 'जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन' नामक पुस्तक लिख कर एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । यह उनका पी-एच० डी० का शोध प्रबन्ध है, जो रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से स्वीकृत हुआ है । विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित समय में वे बड़े मनोयोग पूर्वक कार्य में संलग्न रहीं और उन्होने बड़े संतुलित ढंग से समीक्षात्मक दृष्टि अपनाते हुए अपना कार्य अच्छे रूप में सम्पन्न किया । इसकी गुणवत्ता को देखते हुए पी-एच० डी० की मौखिकी के बाह्य परीक्षक डा० करुणेश शुक्ल, अध्यक्ष संस्कृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय ने कहा था-यदि यह ग्रन्थ प्रकाशित हो तो इसको एक प्रति मेरे पास अवश्य भिजवाना । छात्रा के श्रम और डा० शुक्ला के प्रोत्साहन को देखते हुए मेरी यह

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