Book Title: Jain Parampara ma Paricharna Bhed Vichar Author(s): Nagin J Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ अनुसंधान-१७. 202 आवे छे एटले पूरा कामसुख अने पूर्ण मैथुनक्रिया माटे जीवोने शरीरसंघर्षण जरूरी बने छे. __ संकल्पसिद्धिनुं मनःपरिचारणा साथे, दृष्टिसिद्धिनुं रूपपरिचारणा साथे, वाक्सिद्धिनुं शब्दपरिचारणा साथे, हस्तसिद्धि-आश्लेषसिद्धिनुं स्पर्शपरिचारणा साथे अने द्वन्द्वसिद्धिनुं कायपरिचारणा साथे साम्य छे. जैनोए परिचारणाविचार देवोने अनुलक्षीने कर्यो छे. ज्यारे सांख्ये सर्व जीवोने अनुलक्षीने कों छे. जैनोनी जेम महाभारत पण जणावे छे के देववर्गोमां पांच प्रकारे साद्यंत समग्र मैथुनक्रिया पूर्ण थाय छे. महाभारतनो श्लोक - सन्ति देवनिकायाश्च सङ्कल्पाज्जनयन्ति ये / वाचा दृष्ट्या तथा स्पर्शात् सङ्घर्षेणेति पञ्चधा // - 15. 38. 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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