Book Title: Jain Parampara ma Paricharna Bhed Vichar Author(s): Nagin J Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ अनुसंधान - १७ • 201 पूर्ण थाय छे. आ परिचारणा सौधर्म अने ईशानगत देवोमां होय छे. मन: परिचारणा आदि पांच परिचारणाओनो जे जैन विचार छे तेनुं साम्य सांख्य परंपरामां प्राप्त संकल्पसिद्धि, दृष्टिसिद्धि आदि छ सिद्धिओ साथे छे. आ छ सिद्धिओनुं वर्णन सांख्यकारिका ३९ उपरनी युक्तिदीपिका टीकामां मळे छे. ते वर्णन नीचे प्रमाणे छे. (१) संकल्पसिद्धि सृष्टिना गरंभे जीवोमां सत्त्वगुण प्रबळ होय छे. एटले तेओ शरीरसंयोग विना केवळ संकल्प द्वारा ज पूर्ण कामसुख पामे छे. केवळ संकल्प द्वारा ज तेमनी मैथुनक्रिया पूरी थाय छे. (२) दृष्टिसिद्धि - सृष्टिना बीजा तबक्के जीवोमां सत्त्वगुण कंईक क्षीण थाय छे. एटले तेमने संकल्पसिद्धि होती नथी. तेमनी मैथुनक्रिया केवळ सकाम दृष्टिपात द्वारा पूर्ण थाय छे. अत्यारे पण केटलांक प्राणीओमां आ सिद्धि जणाय छे. काचबी काचबा प्रति सकाम दृष्टिपात करी गर्भ धारण करे छे. (३) वासिद्धि सृष्टिना त्रीजा तबक्के सत्त्वगुणमां वधु क्षीणता आवे छे. एटले जीवोने पहेली बे सिद्धिओ होती नथी. तेमनी मैथुनक्रिया केवळ प्रियजनना शब्दश्रवण द्वारा पूरी थाय छे. अत्यारे पण शंखी शब्दश्रवण द्वारा गर्भ धारण करे छे. प्रियजन साथे मधुर आलाप करी मनुष्यव्यक्ति प्रचुर आनंद पामे छे ते आ सिद्धिनो अवशेष छे. (४) हस्तसिद्धि सृष्टिना चोथा तबक्के जीवगत सत्त्वगुणमां कंइक वधारे क्षीणता आवे छे. एटले, जीवोने पहेली त्रण सिद्धिओ होती नथी, तेओ केवळ हाथना स्पर्श द्वारा संपूर्ण कामसुख पामे छे. तेमनी मैथुनक्रिया केवळ स्पर्शथी ज पूर्ण थाय छे. आजे पण प्रियजनना हाथने दबाववाथी अत्यन्त आनंद थाय छे ते आ सिद्धिनो अवशेष छे. - Jain Education International (५) आश्लेषसिद्धि सृष्टिना पांचमा तबक्के जीवोमां सत्त्वगुण वधु क्षीण थाय छे, एटले जीवोने पहेली चार सिद्धिओ होती नथी. केवळ आश्लेष द्वारा तेमनी मैथुनक्रिया पूर्ण थाय छे. (६) द्वन्द्वसिद्धि सृष्टिना छठ्ठा तबक्के पूर्ववर्ती सत्त्वशक्तिमां वधु क्षीणता - - — For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3