Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 13
________________ अन्तस्तत्त्व ५.२.१. अचेल जिनकल्प से ही मोक्ष की प्राप्ति ५.२.२. जिनेन्द्रगृहीत होने से अचेललिंग ही प्रामाणिक ५.२.३. श्रुत में अचेलत्व का ही उपदेश ५.३. श्वेताम्बरीय सचेल जिनकल्प का समर्थन नहीं ५.४. सचेलकता के निषेध से स्त्रीमुक्ति का निषेध ५.४.१. स्त्रीदीक्षा नहीं दी गई ५.४.२. स्त्रीमुक्ति के लिए स्थान नहीं ... ५.५. शिवभूति को श्वेताम्बरागम मान्य नहीं बोटिक और यापनीय परस्परविरुद्ध परम्पराएँ ६.१. बोटिकमत और यापनीयमत में घोर वैषम्य ६.२. श्वेताम्बरग्रन्थों में बोटिकों की निन्दा, यापनीयों की प्रशंसा ४५ ६.३. प्राचीन श्वेताम्बरग्रन्थों में बोटिकों की 'दिगम्बर' संज्ञा - मालवणिया जी का मत युक्ति-प्रमाणविरुद्ध ६.४. आधुनिक श्वेताम्बर विद्वानों का मत : बोटिक-दिगम्बर एक ५७ ६.५. श्वेताम्बरसाहित्य में बोटिकों की 'यापनीय' संज्ञा नहीं। ७. कुन्दकुन्द के प्रथमतः यापनीयमतावलम्बी होने का मत असत्य . ८. कुन्दकुन्द बोटिक शिवभूति से पूर्ववर्ती ९. कुन्दकुन्द श्रुतकेवली भद्रबाहु के परम्परा-शिष्य १०. कुन्दकुन्द के दिगम्बरमत-प्रवर्तक होने का मत कपोलकल्पित 0 दिगम्बरमत कुन्दकुन्द से पूर्ववर्ती १०.१. पाँचवी शती ई० के पूर्व निर्ग्रन्थमहाश्रमणसंघ का अस्तित्व १०.२. कुन्दकुन्द-प्ररूपित मार्ग जिनप्रणीत : आ० हस्तीमल जी १०.३. आगमोक्त सरलमार्ग का निषेध अमनोवैज्ञानिक १०.४. दक्षिण में दिगम्बरपरम्परा श्रुतकेवली भद्रबाहु से पूर्ववर्ती १०.५. शिवभूति द्वारा जिनेन्द्रगृहीत अचेललिंग का अंगीकार १०.६. श्वेताम्बरग्रन्थों में कुन्दकुन्द का उल्लेख नहीं १०.७. दिगम्बरसंघ भद्रबाहु की परम्परा का संघ : डॉ० सागरमल जी ११. बोटिकसंघ की दक्षिणयात्रा अप्रामाणिक १२. 'मूलसंघ' यापनीयसंघ का पूर्वनाम नहीं १३. 'यापनीयसंघ' दिगम्बरसंघ का पूर्वनाम नहीं १४. परस्परविरोधी धराशायी होती कहानियाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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