Book Title: Jain Nitishastra Ek Parishilan Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 2
________________ प्रस्तुत पुस्तक जीवन को धारण करने वाला तत्त्व धर्म है। - जीवन को धर्म की ओर ले जाने वाली प्रेरणा का नाम है नीति । __ नीति--धर्म की सहगामिनी है । जैसे भूखे के लिए भोजन और प्यासे के लिए पानी--अपरिहार्य आवश्यकता है, वैसे ही सुख-शान्तिमय जीवन के लिए धर्म तथा नीति की अपरिहार्यता है। नीति की प्रेरणा, नीति की मर्यादा, नैतिक प्रत्यय, नैतिक निर्णय एवं जीवन में नीति का स्वरूप, धारणा, विकल्प आदि सैकड़ों ऐसे प्रश्न हैं, जिनपर न केवल सैद्धान्तिक, किन्तु मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक तथा व्यावहारिक दृष्टि से . भी चिन्तन-मनन-समीक्षण होना जरूरी है । प्रस्तुत पुस्तक 'जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन' में नीति सम्बन्धी समस्त पहलुओं पर सर्वांगीण दृष्टि से--पूर्वपश्चिम की अवधारणाओं के आधार पर जैन दर्शन सम्मत दृष्टिकोण से विशेष अनुशीलन किया गया है। Printed at: DIWAKAR PRAKASHAN, ___A-7, Avagarh House, M.G.Road, Agra - 282 002. Ph.68328 FUI Personal Pavae use on Jain Education International SIL www.jainelibrary.orgPage Navigation
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