Book Title: Jain Nastik Nahi Hai
Author(s): Devendra Kumar Jain
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 6
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ अहिंसक और अपरिग्रही होगा, परंतु गृहस्थ के लिए अहिंसा महाव्रत या अपरिग्रही महाव्रत का पालन करना संभव नहीं है। गृहस्थ प्राणघात का संकल्प करके एक चींटी भी नहीं मारेगा, परंतु घर-बार, देश-समाज, धर्म या धर्मायन पर आक्रमण होने की स्थिति में तलवार उठा कर पूरी शक्ति के साथ लड़ेगा। इस तरह की लड़ाई करते हुए श्रावक के अहिंसाणुव्रत की कोई हानि नहीं होती है। भगवान-महावीर की अहिंसा की तरह उनके द्वारा बताया गया निवृत्ति मार्ग भी देश, जाति या समाज के उत्थान के लिए किए जाने वाले कामों या लोकमंगल के कार्यो में कोई बाधा नहीं डालता, यहां तक कि यह निवृत्ति मार्ग लोगों को बेहतर जीवन-यापन करने की प्रेरणा देता है। यदि निवृत्ति मार्ग प्रवृत्ति में बाधक होता तो स्वयं भगवान महावीर क्यों लोक-कल्याण की ओर प्रवृत्त होते। वे तो मुक्त जीवन थे और केवल ज्ञान प्राप्त कर चुके थे। उन्हे जगह-जगह विहार करके संसारी जीवों को उपदेश देने की कोई जरूरत नहीं थी। परंतु केवल ज्ञान के वाद उन्होने इसलिए लगातार देशना की ताकि अन्य जीवों का भी कल्याण हो सके। इसलिए उनको तीर्थकर कहा जाता है। उन्होंने न केवल खुद भव-सागर पार कर लिया था, बल्कि दूसरों को भी इसके पार जाने का रास्ता दिखलाया। दूसरों को मार्ग दिखाने के कारण ही तीर्थंकर कहा जाता है। भगवान महावीर की अहिंसा या उनका निवृत्ति मार्ग यदि राजकाज और समाज के कामों में बाधक होता तो जैन धर्म का राजाओं के बीच इतना असर नहीं होता। जैन धर्म का उत्तर और दक्षिण के राजाओं पर काफी असर रहा है। बैशाली के राजा चैटक, मगध के राजा श्रेणिक, मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त, सम्राट अशोक के पौत्र संप्रति, कलिंग चक्रवर्ती खारवेल और कलचुरि नरेश जैन धर्म के अनुयायी थे ही, राष्टदूत और चालुक्य राजाऔ, चौल और पांडेय नरेशों, गंगवंश और होमसल वंश के राजाऔ और विजय नगरराज्य में भी जैन धर्म की काफी ख्याति रही है। __ जैनाचार्यो और साधुओ द्वारा रचित ग्रंथों को देखकर भी यह धारणा पक्की हो जाती है कि जैनों की निवृत्ति का सामाजिक प्रवृत्ति पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा था। जैनाचायों के गणित, रत्नशास्त्र, आयुर्वेद पर तो ग्रंथ हैं ही, अर्थशास्त्र नीतिशास्त्र, आयुर्वेद, शिल्पशास्त्र, मुद्राशास्त्र, धातुविज्ञान और प्राणिविज्ञान पर आपको उनके लिखे ग्रंथ मिल जाएंगे। कला, संगीत और नाटक जैसी विद्याएं भी जैनाचार्यों से अछूती नही रहीं। व्याकरण, कोश, अलंकार और छंद पर हजारों ग्रंथ जैन साधुओं और आचार्यों ने Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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