Book Title: Jain Nastik Nahi Hai Author(s): Devendra Kumar Jain Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf View full book textPage 1
________________ दर्शन-दिग्दर्शन जैन नास्तिक नहीं है। - देवेन्द्र कुमार जैन एडवोकेट 'जैनों के अनुसार भगवान महावीर ने कोई नया धर्म नही चळाया। उन्होने जो कुछ बताया वह सदा से है, सनातन है। उन्होने धर्म की स्थापना नही की बल्कि धर्म मे खोई आस्था को फिर से कायम किया। महावीर की तरह भगवान ऋषभदेव भी जैन धर्म के संस्थापक नहीं थे । ऋषभदेव को धर्म-संस्थापक मान लेने से जैनों की काल-संबंधी अवधारणा गड़बड़ा जाती है। काळचक्र की अवधारणा के कारण जैन अपने आपको सनातनी मानते है। इस समझ के अनुसार तीथंकरों की अनंत चोबीसियां इस भरत क्षेत्र में हो चुकी है और वे भविष्य में भी होती रहेंगी। ऋषभदेव इस अवसर्पिणी काल के पहले तीर्थकर है। और महावीर अंतिम, किन्तु ऋषभदेव से पूर्व भी अनंत तीर्थकर हो चुके हैं ओर महावीर के बाद भी उत्सर्पिणी काल मे तीर्थकर होते रहेगे। तीर्थकरों की यह परंपरा अनादि और अनंत है। जैन परंपरा में त्रिषविट शलाका पुरुषों का वर्णन मिळता है। अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नामक सुदीर्घ काळखंड में ६३ शळाका पुरुष उत्पन्न होते हैं जो समय-समय पर लोगो को धर्म की प्रेरणा देते हैं। कालचक्र के परिवर्तन में आने वाले उतार चढ़ाव को जैन परिभाषा में अवसर्पिणी और उत्सपिंणी नाम से जाना जाता है। उत्सर्पिणी काल मे प्राणियों के बल, आयु और शरीरादि का प्रमाण क्रमशः बढ़ता जाता है। इन कालो में होने वाले २४ तीर्थकर १२० चक्रवर्ती, ६ प्रतिनारायण और ६ बलभद्र मिलकर त्रैसठ शलाका पुरुष कहलाते है। __ जैन मान्यता के अनुसार मौजूदा काल अवसर्पिणी काल का पंचम कालखण्ड है। इस काल में शलाका-पुरुषों की उत्पत्ति नहीं होती। पहले, दूसरे और तीसरे काल-खंड में भी महापुरुष नही होते क्योंकि इन कालों में भोगों की ही प्रधानता रहती है । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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