Book Title: Jain Lakshanavali Part 2
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 381
________________ परिभोग ] भुज्यत इति भावः । परिशब्दस्याभ्यावृत्त्यर्थत्वात् । XXX बहिर्भोगो वा परिभोगः, परिशब्दस्य बहिर्वाचकत्वात् । (श्रा. प्र. टी. २८४ ) । ४. पुनः पुनः परिभुज्यत इति परिभोगः स्त्री-वस्त्राभरणादिः । ( धव. पु. ६, पृ. ७८ ) । ५. प्रशन-पान - गन्ध-माल्यादि सकृद् भुक्त्वा पुनरपि भुज्यत इति परिभोगः । (चा. सा. पृ. १२) । ६. भूषादिः परिभोगः स्यात् पौनःपुन्येन सेवनात् । ( उपासका ७५६) । ७. मुहुर्यो भुज्यते लोके परिभोगः स उच्यते । ( धर्मसं. ७ - १७) । ८ श्राच्छादन प्रावरण- भूषणशय्यासन-गृह-यान-वाहन- वनितादिकः परिभोग उच्यते । (त. वृत्ति श्रुत. ७ - २१ ) । ६ परिभोगः समाख्यातो भुज्यते यत्पुनः पुनः । यथा योषिदलंकार - वस्त्रागार-गजादिकम् ॥ ( लाटीसं. ६ - १४७ ) । २ जिसे एक बार भोगकर छोड़ दिया जाता है तथा फिर से भी भोगा जाता है वह परिभोग कहलाता है— जैसे प्राच्छादन, वस्त्र, आभूषण, शयन, श्रासन, घर, सवारी और वाहन आदि । परिभोगान्तराय -- जस्स कम्मस्स उदएण परिभोगस्स विग्धं होदि तं परिभोगंतराइयं ॥ ( धव. पु. ६, पृ. ७८) । जिस कर्म के उदय से परिभोग में विघ्न होता है वह परिभोगान्तराय कहलाता है । परिमर्शन - १. समस्तशरीरस्य हस्तेन स्पर्शनं परिमर्शनम् । (भ. प्रा. विजयो. ६४९ ) । २. परिमर्शनं सर्वगात्रस्पर्शनम् । (भ. श्री. मूला. ६४६ ) । १ हाथ से समस्त शरीर के स्पर्श करने को परिमर्शन कहते हैं । परिमितकाल सामायिक स्वाध्यायादौ सामायिकग्रहणं परिमितकालम् । (त. वृत्ति श्रुत. ६, १८) । स्वाध्याय श्रादि में जो सामायिक ग्रहण की जाती है वह परिमितकाल सामायिक कहलाती है । परिवर्तदोष- देखो परिवर्तित। १. मदीये वेश्मनि तिष्ठन्तु भवान् युष्मदीयं तावद् गृहं यतिभ्यः प्रयच्छेति गृहीतं परियट्टमित्युच्यते । ( भ. प्रा. विजयो. २३०९ कार्तिके. टी. ४४८ - ४९ ) । २. व्रीहिकूरा दिभिः शालिकूरादेः परिवर्तनम् । यद्दास्यामीति यतये परिवर्तः प्रकीर्तितः ॥ ( श्राचा. सा. ८-३१ ) । ३. व्रीह्यन्नाद्येन शाल्यन्नाद्युपात्तं परिवर्तितम् । Jain Education International ६८३, जैन - लक्षणावली [ परिवर्तित ( अन. ध. ५ - १४ ) । ४ मद्गृहे तिष्ठतु भवान्, स्वगृहं यतिभ्यः प्रयच्छेति गृहीतं परियट्टम् । (भ. प्रा. मूला. २३० ) । ५. कस्यचिद् गृहस्थस्य व्रीहीन् दत्त्वा शालयो गृह्यन्ते, अथवा निजं कूरं दत्त्वा परकूरो गृह्यते, निजाभ्युषान् दत्त्वा परेषामभ्यूषा गृह्यन्ते, एवं यत् परिवर्त्यते यतिभ्यो दीयते दास्यते वा स परिवर्तः कथ्यते । (भावप्रा. टी. ६६, पृ. २५० ) । १ श्राप मेरे घर में रहें और अपना घर साधुनों के रहने के लिए देदें। इस प्रकार कह कर साधु के लिए जो निवासस्थान ग्रहण किया जाता है वह परिवर्त नामक दोष से दूषित होता है । २ व्रीहि आदि से शालि धान के भात प्रादि को बदल कर साधु के लिये देना, यह परिवर्त नामक एक उत्पादन दोष है । परिवर्तन – १. परियदृणं णाम परियट्टांति वा अब्भसणंति वा गुणणंति वा एगट्ठा। ( दशवं. न. पृ. २८ ) । २. अविस्सरणट्ठ पुणो पुणो भावागमपरिमलणं परियट्टणं णाम । ( धव. पु. ६, पृ. २६२ ) ; अवगत्थस्स हियएण पुणो पुणो परिमलणं परि णाम । ( व. पु. १४, पृ. ६) । ३. पूर्वाधी तस्य सूत्रादेरविस्मरणहेतवे । निर्जरार्थं च योऽभ्यासः स भवेत् परिवर्तना ।। ( लोकप्र. ३०-६८ ) । १ परिवर्तन, अभ्यसन और गुणन ये समानार्थक शब्द हैं । २ पठित भावागम का विस्मरण न हो, इसके लिये जो उसका बार बार परिशीलन किया जाता है इसे परिवर्तन कहते हैं । परिवर्तना-देखो परिवर्तन । परिवर्तमान परिणाम जत्थ पुण ट्ठाइगुण परिणामंतरं गंतूण एग-दोप्रादिसमएहि श्रागमणं संभवदि ते परिणामा परियत्तमाणा णाम । पु. १२, पृ. २७) । धव. जिस परिणाम पर स्थित होकर दूसरे परिणाम को प्राप्त होते हुए एक-दो प्रादि समयों में पुनः उसी परिणाम को प्राप्त होना संभव है, ऐसे परिणामों को परिवर्तमान परिणाम कहते हैं । परिवर्तित - देखो परिवर्त । १. यच्छाल्योदनादि कोद्रवादिना प्रातिवेशिकगृहे परिवर्त्य ददाति तत्परिवर्तितम् | ( श्राचारा. सू. शी. वृ. २, १, २६६, पृ. ३१७ ) । २. स्वद्रव्यमर्पयित्वा परद्रव्यं तत्सदर्श For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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