Book Title: Jain Kavi Kumarsambhav Author(s): Satyavrat Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf View full book textPage 9
________________ (74]woooooooooo जैनकुमारसम्भव का वास्तविक सौन्दर्य तथा महत्त्व उसके वर्णनोमें निहित है / इनमें एक प्रोर कविका कवित्व मुखरित है और दूसरी ओर जीवनके विभिन्नपक्षों तथा व्यापारोंसे सम्बन्धित होनेके कारण इनमें समसामयिक समाजकी चेतना का स्पन्दन है / इन वर्णनों के माध्यमसे ही काव्यमें समाज का व्यापक चित्र समाहित हो सका है जो महाकाव्यके एक बहुअपेक्षित तत्त्वकी पूर्ति करता है / इसलिए जैनकुमारसम्भवसे तत्कालीन वैवाहिक परम्पराओं, राजनीति तथा भोजनविधिसे लेकर प्रसाधनसामग्री, प्राभूषणों, वाद्ययन्त्रों, समुद्री व्यापार, अभिनय, सामाजिक मान्यताओं, मदिरापान आदि कुरीतियोंके विषयमें महत्त्वपूर्णसामग्री उपलब्ध होती है / इस प्रकार जैनकुमारसम्भव साहित्यिक दृष्टि से उत्तम काव्य है, और इसमें युगजीवन की व्यापक अभिव्यक्ति [ SAMBODHI] Vol.7 एगओ वरई कुज्जा, एगओ य पवत्तणं / असंजमे नियत्ति च, संजमे य पवत्तणं // एक तरफ निवृत्ति और दूसरी तरफ प्रवृत्ति करना चाहिए-असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति / कोहो पाइं पणासेइ, माणो विणयनासणो / माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सम्वविणासणो / क्रोध प्रीति का, मान विनय का, माया मैत्री का, और लोभ सभी का नाश करता है। उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे / मायं चऽज्ज्वभावेण, लोभं संतोसओ जिणे // क्षमा से क्रोध को हरो, नम्रता से आदर को जीतो, सरल स्वभाव से ममता पर और सन्तोष से लोभ पर विजय प्राप्त करो। કાDિS આ આર્ય ક યાણાગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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