Book Title: Jain Kavi Kumarsambhav
Author(s): Satyavrat
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 7
________________ ७२JARRIALAAAAAAAAAAAAIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIMa कुमारसम्भव की प्रकृति मानव के सुख-दुःख से निरपेक्ष जड़ प्रकृति नहीं है। उसमें मानवीय भावनाओं एवं क्रियाकलापों का स्पन्दन है । प्रकृति पर सप्राणता पारोपित करके जयशेखर ने उसे मानव जगत् की भाँति विविध चेष्टानों में रत अंकित किया है। प्रभात वर्णन के प्रस्तुत पद्य में कमल को मन्त्रसाधक के रूप में चित्रित किया है जो गहरे पानी में खड़ा होकर मन्त्रजाप के द्वारा प्रतिनायक चन्द्रमा से लक्ष्मी को छीन कर उसे पत्रशय्या पर ले जाता है। गम्भीराम्भःस्थितमथ जपन्मुद्रितास्यं निशायामन्तगुञ्जन्मधुकरमिषान्नूनमाकृष्टिमन्त्रम् । प्रातर्जातस्फुरणमरुणस्योदये चन्द्रबिम्बा-- दाकृष्याब्जं सपदि कमलां स्वांकलतल्पीचकार ॥ १०॥८४ कुमारसम्भव में नर-नारी के कायिक सौन्दर्य का भी विस्तृत वर्णन हुआ है। सौन्दर्य-चित्रण में कवि ने दो प्रणालियों का आश्रय लिया है। एक अोर विविध उपमानों की योजना के द्वारा नखशिख विधि से वर्ण्य पात्र के विभिन्न अवयवों का सौन्दर्य प्रस्फुटित किया गया है, तो दूसरी ओर प्रसाधन सामग्री से पात्रों के सहज सौन्दर्य को वृद्धिगत किया गया है। कवि की उक्ति-वैचित्य की वृत्ति तथा सादृश्यविधान की कुशलता के कारण उसका सौन्दर्य चित्रण रोचकता तथा सरलता से मुखर है । जहाँ कवि ने नवीन उपमानों की योजना की है, वहाँ वर्ण्य अंगों का सौन्दर्य साकर हो गया है और कवि-कल्पना का मनोरम विलास भी दृष्टिगत होता है । सुमंगला तथा सुनन्दा की शरीर-यष्टि की तुलना स्वर्ण-कटारी से करके कवि ने उनकी कान्ति की नैसगिकता तथा वेधकता का सहज भान करा दिया है। तनस्तदीया ददृशेऽमरीभिः संवेतशुभ्रामलमंजुवासा । परिस्फुटस्फाटिककोशवासा हैमीकृपाणीव मनोभवस्य ॥ ३१६८ कुमारसम्भव की कथावस्तु में केवल चार पात्र हैं। उनमें से सुनन्दा की चर्चा तो समूचे काव्य में एक-दो बार ही हई है। शेष पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं का भी मुक्त विकास नहीं हो सका है । इन्द्र यद्यपि काव्य कथा में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है पर उसके चरित्र की रेखाएँ धूमिल ही हैं । वह लोकविद तथा व्यवहारकुशल है । उसकी व्यवहार-कुशलता का ही यह फल है कि वीतराग ऋषभ उसकी नीतिपूष्ट यक्तियों से वैवाहिक जीवन अंगीकार करने को तैयार हो जाते हैं। ऋषभदेव काव्य के नायक हैं। उनका चरित्र पौराणिकता से इस प्रकार आक्रान्त है कि उसका स्वतन्त्र चित्रण सम्भव नहीं। पौराणिक नायक की भांति वे नाना अतिशयों तथा विभूतियों से भूषित हैं। लोकस्थिति के परिपालन के लिये उन्होने विवाह तो किया, किन्तु काम उनके मन को जीत नहीं सका। उनमें आकर्षण और विकर्षण का अद्भुत मिश्रण है। काव्य की नायिका सुमंगला उनके व्यक्तित्व के प्रकाश पुज से हतप्रभ निष्प्राण जीव है। काव्य में उसके द्वारा की गयी नारी-निन्दा उसके अवचेतन में छिपी हीनता को प्रकट करती है। जैन कुमारसम्भव की प्रमुख विशेषता इसकी उदात्त एवं प्रौढ़ भाषाशैली है । संस्कृत महाकाव्य के જ શીઆર્ય ક યાણગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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