Book Title: Jain Kala Vikas aur Parampara Author(s): Shivkumar Namdev Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 5
________________ जैन कला : विकास और परम्परा ................................................................. १५६ . ...... कर्नाटक में जैन धर्म का अस्तित्व प्रथम सदी ई० पू० से ११वीं सदी तक ज्ञात होता है । होयशल नरेश इस मत के प्रबल पोषक थे। इस काल की बृहताकार प्रतिमायें श्रत्रण बेलगोल, कार्कल एवं बेलूर में स्थापित है। कर्नाटक में देवालय एवं गुफायें-ऐहोल, बादामी, पट्टडकल, लकुण्डी, बंकपुर, बेलगाम, बल्लिगवे आदि में है—जो देवप्रतिमाओं में विभूषित हैं। कर्नाटक में पद्मावती सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षी रही है। कर्नाटक में गोम्मट की अनेक मूर्तियाँ हैं । ई० सन् ६५० की गोम्मट की एक प्रतिमा बीजापुर जिले के बादामी की है। बंगाल में जैन धर्म का अस्तित्व प्राचीन काल में रहा है। यहाँ के धरापात के एक प्रतिमाविहीन देवालय के तीनों ओर ताकों में विशाल प्रतिमाये थीं, जिनमें पृष्ठभाग वाली में ऋषभदेव, वाम पक्ष से प्रदक्षिणा करते शांतिनाथ आदि थे। ये मूर्तियाँ सम्भवत: आठवीं सदी की हैं । बहुलारा के एक मन्दिर के सामने वेदी पर तीन प्रतिमायें हैं। मध्यवर्ती प्रतिमा भगवान शांतिनाथ की है। इसके अतिरिक्त बांकुड़ा जिले के हाडमासरा के निकट जंगल में एक पार्श्वनाथ की प्रतिमा तथा पाकबेडरा में अनेकों प्रतिमा संरक्षित हैं । तामिलनाडु से भी अनेक प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं । कलगुमलाई से चतुर्भुज पद्मावती की ललितमुद्रा में (१०-११ वीं) सदी की मूर्ति प्राप्त हुई है। मदुरा तमिलनाडु का महत्वपूर्ण नगर है। यहाँ पर जैन संस्कृति की गौरव-गरिमा में अभिवृद्धि करने वाली कलात्मक सामग्री विद्यमान है । बिहार प्रदेश से उपलब्ध अनेकों प्रतिमायें पटना संग्रहालय में हैं। सग्रहालय में चौसा के शाहाबाद से प्राप्त जैन धातु मूर्तियाँ भी सुरक्षित हैं। नालन्दा संग्रहालय में भी अनेक मूर्तियाँ संरक्षित हैं। राजस्थान के ओसियां नामक स्थल में महावीर का एक प्राचीन मन्दिर है, जो हवीं सदी का है । मन्दिर में महावीर की एक विशालकाय मूर्ति है । इस स्थान से उपलब्ध पार्श्वनाथ की धातुमूर्ति कलकत्ता संग्रहालय में है। जयपुर के निकट चांदनगाँव एक अतिशय क्षेत्र है। यहाँ महाबीर के मन्दिर में महावीर की भव्य सुन्दर मूर्ति है। जोधपुर के निकट गांधाणी तीर्थ में भगवान ऋषभनाथ की धातु मूर्ति ६३७ ई० की है। देलवाड़ा में स्थित हिन्दू एवं जैन मन्दिर प्रसिद्ध है। इसी प्रकार राणकपुर के मन्दिर भी सुन्दर हैं। ____ महाराष्ट्र प्रदेश में जैन प्रतिमायें बहुसंख्या में उपलब्ध हुई हैं। एलोरा (6वीं सदी) की गुफाएँ तीर्थकर प्रतिमाओं से भरी पड़ी हैं । छोटा कैलाश (गुहा संख्या ३० लेकर गुहा क्रमांक ३४ तक) की गुहायें जैन-धर्म से सम्बन्धित हैं । अंकाई-तंकाई में जैनों की सात गुफायें हैं जहाँ जैन-प्रतिमायें भी हैं। गुजरात जैन शिल्पकला की दृष्टि से समृद्ध राज्य रहा है । गुजरात के चालुक्य नरेशों के काल में अनेक जैन मन्दिरों का निर्माण हुआ। कुमारिया एक प्राचीन जैन तीर्थ है। बड़नगर में चालुक्य नरेश मूलराज (९४२-६६७) के काल का आदिनाथ का मन्दिर है। गुजरात के अन्य जैन देवालयों में जैन मत की प्रतिमायें हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थलों से प्राप्त मूर्तियाँ विभिन्न संग्रहालयों की श्रीवृद्धि के साथ-साथ इस प्रदेश में जैन धर्म के प्रचार का द्योतन भी कर रही हैं। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत में जैन-मूर्ति निर्माण कला का प्रारम्भ चार हजार वर्ष ई० पू० में हो चका था । सिन्धु सभ्यता से उपलब्ध प्रतिमायें इस मत की साक्षी हैं। तब से लेकर आज तक यह परम्परा अक्षण्ण बनी हुई हैं । देश के विभिन्न भागों में उपलब्ध प्रतिमायें इस धर्म की प्राचीनता एवं विकास की ओर इंगित करती हैं। वास्तुकला भारतीय वास्तुकला का इतिहास मानव-विकास के युग सम्बद्ध है, परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से इसका इतिहास १ जैनिज्म इन साउथ इंडिया-देसाई, पी० बी०, पृ० १६३. २ जैनिज्म इज साउथ इंडिया-देसाई, पी० बी०, प० ६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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