Book Title: Jain Kala Vikas aur Parampara
Author(s): Shivkumar Namdev
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 8
________________ . 162 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड जो मांडदेवल के नाम से जाना जाता है, इसका निर्माण ११वीं सदी में हुआ था। जगतविख्यात वास्तुशिल्प केन्द्र खजुराहो के मन्दिरों में पार्श्वनाथ, आदिनाथ एवं शान्तिनाथ के मन्दिर उल्लेखनीय हैं / चित्रकला जैन चित्रकला की अपनी विणिष्ट परम्परा रही है। ताड़पत्रों, वस्त्रों एवं कागजों पर बने चित्र अत्यन्त प्राणवान, रोचक और कलापूर्ण हैं। जहाँ तक जैन भित्ति-चित्रकला का प्रश्न है, इसके सबसे प्राचीन उदाहरण तंजोर के समीप सित्तनवासल की गुफा में मिलते हैं। इनका निर्माण पल्लवनरेश महेन्द्रवर्मा प्रथम के राज्यकाल (625 ई.) में हुआ था। जहाँ तक ताडपत्रीय चित्रों का सम्बन्ध है, इनका काल ११वीं शती से १४वीं शती तक रहा। सबसे प्राचीन चित्रित ताडपत्र ग्रन्थ कर्नाटक के मुड़बिद्रि तथा पाटन (गुजरात) के जैन भण्डारों में मिले हैं। कागज की सबसे प्राचीन चित्रित प्रति 1427 में लिखित कल्पसूत्र है, जो सम्प्रति लन्दन की इण्डिया ओफिस लाइब्रेरी में है। जैन शास्त्र भण्डारों में काष्ठ के ऊपर चित्रकारी के कुछ नमूने प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार चित्रकला के आधार पर जैन धर्म की प्राचीनता ७वीं सदी ई. तक ज्ञात कर सकते हैं। परन्तु कतिपय कला-समीक्षकों ने जोगीमारा गुफा (म०प्र०) में चित्रित कुछ चित्रों का विषय जैन धर्म से सम्बन्धित बताया है। यदि इसे आधार मानें दो इस धर्म की चित्रकला की प्राचीनता 300 ई० पू० तक मानी जा सकती है। उपर्युक्त विवेचन के सम्यक् परीक्षण के उपरान्त इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि जैन धर्म एक अत्यन्त प्राचीन धर्म है / सिन्धु सभ्यता से प्राप्त धड़ के आधार पर इस मत की प्राचीनता 4 हजार वर्ष ई०पू० तक जाती है। अवध, तिरहुत, बिहार के प्रान्तों में आरम्भ से ही जैन धर्म प्रचलित हो गया था। उड़ीसा के उदयगिरि एवं खण्ड गिरि की सर्वविदित गुफाओं का काल ई०पू० दूसरी सदी है। कुषाण काल में जैन मत मथुरा में भली भाँति प्रचलित था। राजस्थान, कठियावाड़-गुजरात आदि में वह काफी लोकप्रिय था। ७वीं सदी में बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक वह फैला था। मध्ययुग में देश के विभिन्न-भागों में निर्मित जैन कला-कृतियाँ इस मत के विकास एवं प्रसार को सूचित करती हैं। सारांश यह है कि कलात्मक साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ईस्वी सन् की पहली शताब्दी तक जैन धर्म का प्रचार, मगध, उड़ीसा, विदर्भ, गुजरात आदि प्रदेशों में अर्थात् समस्त उत्तर भारत में हो चुका था। दक्षिणी भारत में जैन धर्म का प्रचार ईसा पूर्व तीन सौ वर्ष से आरम्भ हुआ और ईसा के 1300 वर्ष बाद तक वहाँ इसका खूब प्रचार रहा। D00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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