Book Title: Jain Jyotish Sahitya Ek Drushti
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 7
________________ जैन ज्योतिष साहित्य : एक दृष्टि ३८७ (१) महावीराचार्य - ये जैनधर्मावलम्बी थे एवं गणित के धुरन्धर विद्वान थे । इनके द्वारा रचे गये ज्योतिषपटल एवं गणितसार नामक ग्रंथ मिलते हैं । (२) चन्द्रसेन - इनके द्वारा रचित 'केवलज्ञान होरा' नामक एक विशालकाय महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । (३) श्रीधराचार्य - ये कर्णाटक प्रांत के निवासी थे । इनके ग्रंथों के नाम इस प्रकार मिलते हैं - ( १ ) जातकतिलक या होराशास्त्र ( २ ) ज्योतिर्ज्ञानविधि या श्रीकरण ( ३ ) गणितसार या त्रिशतिका इनके द्वारा बीजगणित एवं लीलावती नामक ग्रंथों की रचना का भी उल्लेख मिलता है । (४) दुर्गदेव - ये उत्तर भारत में कुम्भनगर के रहने वाले थे । इन्होंने अपने रिष्टसमुच्चय की रचना सं० १०८६ में की । अन्य रचनाओं में अर्द्ध करण और मंत्रमहोदधि है जो कि प्राकृत में है । (५) मल्लिषेण -- इनका ग्रंथ 'आयसद्भाव' प्रश्नशास्त्र फलित ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है | अनेक ग्रन्थों की रचना की है । वर्त - प्रश्न चतुर्विंशतिका, (४) जन्म समुद्र (६) नरचन्द्र उपाध्याय -- इन्होंने ज्योतिषशास्त्र के मान में इनके (१) बेड़ाजातकवृत्ति, (२) प्रश्नशतक, (३) सटीक, (५) लग्नविचार और (६) ज्योतिष प्रकाश नामक ग्रंथ उपलब्ध हैं । (७) समन्तभद्र - इनके द्वारा लिखा हुआ ग्रंथ ' केवलज्ञान प्रश्न चूड़ामणि' है । रचना शैली की दृष्टि से ग्रंथ का रचनाकाल १२वीं - १३वीं सदी प्रतीत होता है । (८) हेमप्रभसूरि – इनके द्वारा रचित ग्रंथ त्रैलोक्य प्रकाश है आपने ही लिखा है । 'मेघमाला' नामक ग्रंथ भी - (e) हरिकलश - ये खरतरगच्छ के थे । इन्होंने ई० सन् १५६४ में नागौर में ज्योतिषसार नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ की रचना प्राकृत में की है । (१०) मेघविजयगणि— ये ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान थे । इनका समय वि० सं० १७३७ के आसपास माना जाता है। इनके द्वारा रचित मेघमहोदय या वर्ष प्रबोध, उदय दीपिका, रमलशास्त्र और हस्तीसंजीवन आदि मुख्य हैं । प्रश्नसुन्दरी और विशायंत्रविधि भी इनके द्वारा रचे गये । (११) महिमोदय - इनका समय वि० सं० १७२२ के आसपास बताया जाता है । ये गणित और फलित दोनों प्रकार के ज्योतिष के विद्वान् थे । इनके द्वारा रचित ज्योतिष रत्नाकर, गणित साठ सौ पंचाङ्गानयनविधि ग्रंथ कहे जाते हैं । (१२) उभयकुशल - इनका समय सं० १७३७ के लगभग माना जाता है । ये फलित ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे। इन्होंने विवाह पटल, चमत्कार चिंतामणि टवा नामक दो ज्योतिष ग्रंथों की रचना की है । (१३) लब्धिचन्द्रगणि—ये खरतरगच्छीय कल्याणनिधान के शिष्य थे । इन्होंने वि० सं० १७५१ के कार्तिक मास में जन्मपत्री पद्धति नामक एक व्यवहारोपयोगी ज्योतिष का ग्रंथ बनाया है । (१४) बाघजी मुनि - ये पार्श्वचन्द्र गच्छीय शाखा के मुनि थे । इनका समय वि० सं० १७८३ माना जाता है । इन्होंने 'तिथि सारिणी' नामक एक ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखा है, इसके अतिरिक्त इनके दो तीन फलित ज्योतिष के भी मुहूर्त्त सम्बन्धी ग्रंथों का पता लगता है । (१५) यशस्वतसागर - इनका दूसरा नाम जसवन्तसागर भी बताया जाता 1 ये ज्योतिष, न्याय, व्याकरण और दर्शनशास्त्र के धुरन्धर विद्वान थे । इन्होंने ग्रहलाघव के ऊपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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