Book Title: Jain Jyotish Sahitya Ek Drushti Author(s): Tejsinh Gaud Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf View full book textPage 1
________________ जैन ज्योतिष साहित्य : एक दृष्टि डा० तेजसिंह गौड़, एम० ए०, पी-एच० डी० ( उन्हेल - जिला उज्जैन, म० प्र०) [हमारे अभिनन्दनीय ज्योतिर्विद श्री कस्तूरचन्द जी म० का ज्योतिष प्रिय विषय रहा है । आपश्री का ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान शास्त्र तथा अनुभव की कसौटी पर कसा हुआ है। अतः आपश्री के अभिनन्दन ग्रन्थ में ज्योतिष से सम्बन्धित कुछ सामग्री देना भी प्रासंगिक एवं वांछनीय है । पाठक पढ़ें ज्योतिष विषयक ज्ञानपूर्ण लेख । -संपादक ] मानव स्वभाव से जिज्ञासु है । क्यों ? क्या ? कैसे ? कब ? कहाँ ? आदि प्रश्नों की जानकारी वह अधिक-से-अधिक प्राप्त कर रखना चाहता है । आदिम मानव भी प्रकृति के विभिन्न परिवर्तनों को आश्चर्य से देखता होगा। दिन के बाद रात और रात में असंख्य तारागण । कोई तारा अधिक प्रकाशमान तो कोई मध्यम प्रकाश वाला । कभी आकाश में चन्द्रमा अपनी छटा बिखेरता हुआ दिखाई देता है तो कभी घोर अँधेरा । चन्द्रमा का घटना और बढ़ना उस मानव के लिए एक अजीब : रहस्य रहा होगा । आकाश की ओर तारागणों की छटा निहारते-निहारते एकाएक किसी गिरते तारे को देख वह चौंक उठता होगा। इन सब के विषय में उसकी जानने की जिज्ञासा ने इस ओर उसे प्रवृत्त किया होगा । फिर दिन-रात दिन में समय नापने की समस्या भी आई होगी। दिन के बाद पक्ष, पक्ष के बाद मास और वर्ष की गणना का विकास हुआ होगा । ऋतुचक्रों के ज्ञान से महीनों के नामों को जन्म मिला। फिर भी इन सबका ज्ञान और जन्म कब और किस प्रकार बोधगम्य हुआ, निश्चयात्मक रूप से कहना कठिन है । इतिहास सुदूर भूतकाल के गर्भ में छिपा हुआ है होता गया ज्योतिष का भी विकास होता गया । जिन्हें देवता माना उनके रहस्यों को उजागर कर दिया गया है विभिन्न ग्रह नक्षत्रों के रहस्यों को उजागर करने में संलग्न है । ने की भी नहीं होगी । ज्योतिषशास्त्र की व्युत्पत्ति "ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्" से की गई है, अर्थात् सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिःशास्त्र कहा जाता है । ज्योतिषशास्त्र के दो रूप माने जाते हैं - (१) बाह्य (२) आभ्यंतरिक । बाह्य रूप में ग्रह, नक्षत्र, घूमकेतु आदि ज्योतिः पदार्थों का निरूपण एवं ग्रह, नक्षत्रों की गति, स्थिति और उनके संचारानुसार शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है । आभ्यंतरिक रूप में समस्त भारतीय दर्शन आ जाता है । प्रायः सभी भारतीय दार्शनिकों ने आत्मा को अमर माना है । उनके मतानुसार उसका कभी नाश नहीं होता है । कर्मों के अनादि प्रवाह के कारण केवल उसके पर्यायों में परिवर्तन होता रहता है । कुछ मनीषियों का अभिमत है कि नभोमण्डल में स्थित ज्योतिः सम्बन्धी विविध १ भारतीय ज्योतिष — नेमिचन्द्र शास्त्री, पृ० २ २ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ, पृ० २२१ Jain Education International हाँ, इतना कहा जा सकता है कि ज्योतिष का और जैसे-जैसे सभ्यता और संस्कृति का विकास आज तो स्थिति ऐसी है कि प्राचीन मानव ने तथा आज का वैज्ञानिक मानव इसकी कल्पना तो प्राचीन मानव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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