Book Title: Jain Hitopadesh
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal

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Page 350
________________ ૧૭૬ શ્રી જૈન હિતાપદેશ ભાગ ૩ જો. समजी सहुए तेमां यथाशक्ति सहाय करवी, तत्त्वज्ञाननो फेलावो थवा पामे तेवो प्रबंध करवो, केमके शासननी उन्नतिनो खरो आधार तत्त्वज्ञान उपरज छे. १९, जैनी भाइ बहेनोमां पण केटलाक भागे कळा कौशल्यनी खामीथी, प्रमादथी तथा अगमचेतीपणाना अभावथी बहुधा नातवरा विगेरे नकामा खर्चे करवाथी दुःखी हालत थवा पामेली छे, ते दूर थाय तेवी देशकाळने अनुसारे उछरती प्रजाने तालीम (केळवणी) आपवी दरेक स्थळे शरु करवानी पूरी जरुर छे. १२. वीतराग प्रभुनो उपदेश सारी आलमने उपगारी थइ शके एवो होवाथी तेनो जेम प्रसार थवा पामे ते प्रयत्न कर्या करवो. जिनेश्वर भगवाने आपेली शिखामणोनुं सार ए छे केः क. सर्व जीवनुं भलं करवा कराववा बनती का ळजी राखवी. ख. सादाइ अने नरमाश राखवी. ग. समजु अने सरल (विवेकी) बनवुं.

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