Book Title: Jain Gyan Gajal Guccha
Author(s): Khubchandji Maharaj
Publisher: Fulchand Dhanraj Picholiya

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) गजल नं०१५ ( परिग्रहत्याग विषय. ) तर्जः---- || पूर्ववत् ।। माया को तू अपनी कह, अबतक तुझे मालूम नहीं; ॥ किसकी हुई न होयगी, अबतक तुझे मालूम नहीं, ॥ टेर. ॥ आयाथा जब नगन होकर, साथ कुच्छ लाया नहीं । पिछे पसारा सब हुआ, । अबतक तुझे मालूम नहीं, ॥ मायाके० ॥१॥ भाई २ सासु जमाई, पुत्र और माता पिता । धनके लिये शत्रुवने, अबतक तुझे मालुम नहीं ॥ २ ॥ बाबर अलाउद्दीन महम्मद, अकबर हुए बादशाहा, । वोभी खजाना छोड़गए, अबतक तुझे मालूम नहीं, ॥ मायाको ॥३॥ अकृत कामा तू करे, दिन रात पच२ के मरे , || क्या ठीक कौन मालिक बने, अबतक तुझे मालूम नहीं ०॥ मायाको ॥४॥ मेरेगुरू नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है, । संतोषधर आराम का, अबतक तुझे मालूम नही, ॥ मायाको० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम् गजल नं० १५ (नषा निषेध विषय पर.) तर्जः- रघुवर कौशल्या के लाल, मुनिका यज्ञरचाने वाले, मतकर नशा कहना मानतू , अपना हितचाहाने वाले ॥ टेर ।। ज्यो करते नशा अजान, उनको रहे नहीं कुच्छ भान, सबही लोग कहे बईमान, कुलं का नाम लजाने वाले; मत कर नशा० ॥ १ ॥ केई कपडा माल गमाते; केई गलियों में गिरजाते, उनका कुत्ता मुंह चाटजाते, मखियोंको उडाने वाले ॥ For Private and Personal Use Only

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