Book Title: Jain Gyan Gajal Guccha
Author(s): Khubchandji Maharaj
Publisher: Fulchand Dhanraj Picholiya
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir W-Gohro रचयिता, विद्वद्वर्य पंडित मुनिश्री नन्दलालजी महाराज सुयोग्य शिष्य धैर्यवान शास्त्रज्ञ मुनिश्री खूबचन्दजी महाराज. जैन ज्ञान गजलगुच्छा प्रथम भाग. गरसूरि मंदिर धीनगर प्रबोधक, प्रियव्याख्यानी मुनिश्री सुखलालजी महाराज. FChor प्रकाशक, सिंगोली निवासी स्वर्गीय शेठ, धनराजजी तत्पुत्र फूलचन्द पीछोलीया. प्रथमावृत्ति अमूल्यम् ( वीर सं.२४५१॥ १००० प्रति. नित्यपंठन. वि. सं. १९८१ नोट:-स्वर्गीय पिताजी के स्मार्थ भेंट. For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका. प्रिय सज्जनगण ! आजकल नूतन युवकों का दिल, विषयो त्पादक गजलें गानेका विशेष रहता है. जिससे वे कुविषय युक्त गजलें गायाकरते हैं. इससे भविष्य में संतति पर बुरा असर पडता है. अतएव भारत संतानों पर बुरा असर न पडे इस उद्देश्य को लेकर प्रातः स्मरणीय उम्र विहारी शुद्धाचारी पूज्यपाद श्री श्री १००८ श्री हुक्मीचन्दजी महाराज के पञ्चम पा विद्यमान शास्त्र विशारद श्रीमज्जैनाचार्य पूज्यवर श्री श्री १००८ श्री मुन्नालालजी महाराजकी सम्प्रदाय के वादीमान मर्दन पंडितवर्य मुनि श्री नन्दलालजी महाराज के सुशिष्य धैर्यवान शास्त्रज्ञ मुनिश्री खूबचन्दजी महाराज ने ज्ञानान्वित सरल शब्द सन्दर्मित सुगजलोंकी रचना की। उन गजलों को उक्त मुनि श्री के शिष्य श्रीमान् "सुखलालजी महाराज के पास से शुद्ध उतारकर यह जैन ज्ञान गजल गुच्छा प्रथम भाग नामक पुस्तक प्रकाशित कर आप सज्जनों के कर कमलों में समर्पण कर आशा करते हैं कि आप इसे पढकर आत्मिक लाभ उठावेंगे. अस्तु । भवदीय संग्रहकर्ता - कुं० नाथूलाल पिछोलिया. मु० सिंगोली For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीमद्विरायनमः ॥ जैन ज्ञान गजल-गुच्छा प्रथम भाग. ॥ मङ्गलाचरणं ॥ चेतः कौरव कौमुदी सहचरः स्याद्वाद विद्याकरः । कैवल्यद्रुम मञ्जरी मधुकरः सम्पल्लतांभोधरः ॥ मुक्तिस्त्री कमनीय भाल तिलकः सद्धर्मदः शर्मकृतः । श्री मद्वीर जिनेवर स्त्रिमुवने, क्षेमकरः पातुकाः ॥ १ ॥ ( शार्दुल ) ॥ थियेटर ॥ श्रीमुनिनन्दलाल; षटकाय प्रतिपाल; गुणवारी दयाल; तिरन तारन जहाज; । संजमले आतमउजवाली; । कीनाजी कीना बहुत उपकार २ । करे उगर विहार; प्रतिबोधे नर नार, 'सुख' करे नमस्कार, नित्य वार वार वार । वार वार वार | वार ३॥ For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) गजल नं० १ (शुद्ध देव पहिचान ) तर्ज:--पहलु में मेरे यार है, उस्की खबर नहीं ।। यह ॥ मेरे तो वाही देव है, अरिहंत सिद्ध वर । करता हुं उसे वन्दना, मैं सर झुकाय कर ।। टेर । गुण अनन्त ज्ञानादि, सर्व द्रब्य के ज्ञाता । सुरेन्द्र और नरेन्द्र; भक्ति करते आनकर ॥ करता हुं. ॥ १ ॥ विषय कषाय जीतके, कहलाते वीतराग । खडगादि शस्त्र ना रखे, वो धैर्य लायकर | करता. २॥ महिमा अपार सार जिनकी, त्रिहुं लोक में । फिर पाते हैं शिव धाम, सब दुखको मिटाय कर ॥ करता हुं० ॥ ३ ॥ सिद्धोंके सुखकी ओपमा, न कोई बता सके । नहिं आते मुड़ के फिर, अचल गति को पायकर ॥ करता हुं० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नंदलालजी, मुझपे करी मया । शुद्ध देवकी पहिचान, दी सागे बताय कर ॥ करता हुं० ॥ ५ ॥ संपूर्ण गजल नं० २ (सुगुरु पहिचान ) तर्ज:-. पूर्वोक्त जो साधु संयम के गुणों में, दिल रमाते हैं। ऐसे गुरु के चरनमें हम सिर झुकाते हैं । टेर ॥ जो हिंसा झूठ चौरी, मैथुन परिग्रह है । पांचोहिं आश्रव टालके, त्यागी कहाते हैं ॥ ऐसे गुरूके० ॥ १ ॥ मान या अपमान, लाभ या अलाभ हो । सुख दुःख निन्दा स्तुतिमें, समभाव लाते हैं। ऐसे गुरूके ॥२!! गृहस्थ या कोई क्षेत्रसे, न ममत्व भाव है । नव कल्प For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहारी कथा, निरवद्य सुनाते हैं। ऐसे गुरूके० ॥ ३ ॥ प्रतापना और भुख प्यास, सीत. उष्णका | सहते परिसा आप, न चितको चलाते हैं, । ऐसे गुरुको ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी, कहते सही सही,। वोही मुनि भवसिंधुसे, तिरते तिराते हैं, ॥ ऐसे गुरुके० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम् ॥ गजल नं. ३ ( सतशिक्षा.) तर्ज० पूर्वोक्त. पायाहै तू अनमोल, एसी जिन्दगी अएनर । इस लोककी परवा नहीं, परलोकसे तोडर ॥ टेर ।। संतोंका कहा मानले, जुल्मोंको छोडदे । नहीं तो जीया आगे तुझे, पडजायगी खबर । इसलोक्की० ॥ १ ॥ दिन चारका महमान है, तू विचारतो सही । तेने क्या किया शुभकाम, यहां दुनियामें आनकर | इस० ॥ २ ॥ चौरासीलक्ष योनमें, टकराता तू फिरा । निकल गई अधियारी, अबतो होगया फजा ॥ इसलोक० ॥३॥ मानके वस जात या, परजात धर्ममें । तैने डलाई फूट, खसी नर्क पे कमर ।। इसलोककी० ॥४॥ मेरेगुरु नन्दलालजी, देते हित उपदेश । मंजूर करलें फिरतो है, सुरलोककी सफर ॥ इसलोककी० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. ४ ( कर्तव्य मातपिता का ) तजे पूर्वोक्त. बचपनसे ही मा बाप, शुभ आचार सिखाते । मगदूर क्या जो पूत्रवो, कुपुत्र कहलाते ॥ टेर ॥ अपना अदब गुरुका For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनयकी रीत बताते । बुलवाते जी जीकारतो, यश जगतमें पाते ॥ मगदूर क्या० ॥१॥ ज्यो हिंसा झूठ चौरी, कुकर्मोंसे डराते । पहिले हिदायत होतीतो, क्यों नाम लजाते ॥ मग्दुर क्या० ॥ २ ॥ शुरूसे सिखाई गालियां, अबवो हाथ उठाते । खिंचे पकडकर बाल, न कुच्छभी सरमाते । मगदूर० ॥ ३ ॥ जैसाकी रहै संगमें, गुण वैसाही आते । इस न्यायको विचारके, सु संगमें लगाते ॥ मगदूर क्या० ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी सत्य बात बताते, सु पुत्र दीपककी तरह, निज कुलको दीपाते ॥ मग्दूर० ।। ५ ।। सम्पूर्णम्. गजल नं. ५ (नेक नसिहत ) तर्ज कल मतकरना मुझे, तेगोतवरसे देखना ।। यह ।। ___ कहने वाला क्या करे, तेरी तुझे मालूम नहीं । कु पथमें अब क्यों चले, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ टेर ॥ आया था किस कामपर, और काम क्या करनेलगा । खास मतलब क्या हुवा, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ १ ॥ पाया जो धनमाल कुछ, शुभ कार्यमें निकला नहीं। कु कार्य में पैसा गया, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ २ ॥ लोहकी गठडी बांधके, तेने उठाई शिशपे । सिंधु से हो पारकैसे, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ ३ ॥ जहर खाकर जीवना, प्रतिबोधसुतेसिंहको। यूं पापका फल है बूरा, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । अबडाव आया जीतका, तेरी तुझे मालूम नहीं॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गजल नं. ६ (हितोपदेश) तर्ज-पूर्वोक्त. कर्म यहां जैसा करे, वैसाही वो फल पायगा । इसलोक या परलोकमें, वैसाही फल पायगा ॥ टेर ॥ शास्त्रका फरमान है, हट छोडके कर खोजना । पूर्ण ज्ञानी कथगए, वोही कथन मिल जायगा || कम यहां ॥ १ ॥ कोई सुखी कोई दुःखी, कोई रंक है कोई राजवी। कोई धनी कोई निर्धनी, यह अवश्यही मिल जायगा । कर्म० ॥ २ ॥ कोई चरन्द कोई परन्द, कोई छोटे मोटे जीव है । अपने २ कर्म से, सुखदुःख सभी भर जायगा । कर्म यहां० ॥ ३ ॥ कृष्ण जी के भ्रात, गजसुखमालजी हुवे मुनि । बदला उन्होंने दीयातो, कैसे तू छुटजायगा ॥ कर्म यहां० ॥ ४॥ शालभद्रजीको मिली ऋद्धि सुपातर दानसे । निज हाथसे करदान तू भी, एसाही फल पायगा । कार्य यह ० ।। ५ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । सब कर्मोंका फन्द छुटनेसे, मोक्षका फल पायगा ॥ कर्म यहां०॥ ६ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. ७ (क्रोधनिषेधपर ) तर्ज--पूर्वोक्त. क्रोधमतकर अहजीया, सुणहाल छट्टे पापका । क्रोधकी ज्वाला गरम, रख खोफ इस्की तापका ।। टेर ॥ क्रोध जिस्के For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org / ( ६ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छारहा वहां सत्य का क्या काम है । सरलता नही नम्रता, नहीं रहे क्षम्यागुण आपका ॥ क्रोध० ॥ ॥ एक क्रोधी जिस्के घर, सब कुटुम्बको क्रोधी करे। दिल चाहै ज्युं बकता रहे, नहीं ध्यान रहे मा बापका || क्रोध० || २ || क्रोधी अपनी जानया, पर जानको गिनता नहीं । अवगुण निकाले औरका, यह काम नहीं असराफ का || क्रोध० || ३ || प्रिती तुटे क्रोध से, गुण नष्ट होवे क्रोधसे । हित बातपर गुसाकरे, फिर काम क्या चुपचाप का || क्रोध ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । क्रोध से बचते रहो, टल जावे दुःख संतापका || क्रोध मत० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं० ८ ( मान निषेधपर ) तर्ज० || पूर्ववन् || मान करना है बुरा, जहां मान वहां अपमान है। लाभ या नुक्सान इस्में, तुझको नहीं कुच्छ मानहै || ढेर || लाखों रुपैया हाथ से, बरबाद कर दिया मानसे । शुभ काम में दमडी नहीं तू, कायका इन्सान है | मान करना है बुरा || १ || सीताको देना हाथसे, रावन को मुश्कील होगया । मर मिटा वो भी मरद, अभीमान एसी तानहै || मान करना ० || २ || संसारमें या धर्म में, तें बीज बोया फूटका । दिलको किया राजी यहां, आखिर नर्क अस्थान है || मान करना० || ३ || दुनियां में केइ होगए, फिर और भि होजायेंगें । घुमते गजराज उनके, स्थान For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) अब बेरान है || मान करना० || ४ || मेरे गुरु नन्दलालजीका, येही नित्य उपदेश | छोडदे ज्यो मान उस्का, तुरत ही सनमान है || मान करना० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम् गजल नं० ९ ( कपट निषेधपर ) तर्ज || पूर्ववत् ॥ कपट करना छोडदे, निस कपट रहना ठीक है । थोडासा जीना जगत में, निसकपट रहना ठीक है || ढेर || सीता सती को कपटसे, लंका में रावण लेगया। आखिर नतीजा क्या मिला, निसकपट रहना ठीक है || १ || लेन में या देन में, छलकपट से डरता नहीं। वो राज में पावे सजा, निसकपट रहना ठीक है, || २ || दम्भी मनुष्य का जक्त में, विस्वास कोइ करतानहीं । कपट हैं घर झूठका, निसकपट रहना ठीक है || ३ || माया से नर नारी हुआ, नारीसे पुनः वह क्लीव बने । यह कपट का फल जान के, निस कपट रहना ठीक है ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । निसकपट से इज्जत बढे, निसकपट रहना ठीक है || ५ || सम्पूर्णम् ० || से गजल नं० १० ( लोभनिषेधपर ) तर्ज || पूर्ववत्० ॥ 1 लोभ नवमा पाप है, तूं लोभ तज संतोष कर । निर्लोभ में आराम है, तू लोभ तज संतोष कर || ढेर || लोभ से हिंसाकरे, और झूठ बोले लोभसे || लोभसे चोरी करेतूं, लोभ तज सं For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तोष कर ॥ १ ॥ लोभ से माता पिता, और पुत्र के अनबन रहै । हित मित सगपण ना गिणे, तू लोभ तज संतोष कर ।२। लोभ वस जिनपाल जिनरख, जहाज में चढकर गए । समुद्र में जिनरख मरा, तू लोभ तज संतोष कर ॥ ३ ॥ लोभ जहां इन्साफ नहीं, तू देखले अच्छि तरह । सब पापकी जड लोभ है, तू लोभ तज संतोष कर ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजीका, येही नित्य उपदेश है । निर्लोभसे मुक्तिहुवे, तू लोभ तज संतोष कर ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम् ॥ गजल नं० ११ ( हिंसा निषेधपर०) तर्ज० ।। पूर्ववत् ॥ नाहक सतावे और को, यह तेरे हकमें हे बूरा | मान या मत मान अए नर, तेरे हक में हे बुरा । टेर ।। अपने २ कम से जिस जोन में पैदा हुए । तू बे गुन्हा मारे उसे, यह तेरे हक में है बूग ॥ नाहक सतावे० ॥ १ ॥ पिछे जो बच्चा रहे, कौन पालना उनकी करे । परवरिश बिन वोभी मरे, यह तेरे हकमें हे बूरा ॥ नाहक० ॥ २ ॥ सुखके लिये पंखी पशु, फिरते छपाते जानको । रहिमके बदले सताना, तेरे हक में हे बुरा । नाहक० ॥ ३ ॥ तेरे जब कांटा लगे, जब दुःख तुझे मालूम हुवे । इस तरह सब पे समझ, यह तेरे हक में है बूरा । नाहक० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजीका, येहीनित्य उपदेशहै, रहम जबतक दिल नहीं, यह तेरे हकमें हे बूरा । नाहक०५ For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९) गजल नं० १२ [ झूठनिषेधपर] तर्ज । पूर्ववत् ॥ याद रख नर झूठसे, तारीफ तेरी है नहीं। बदल जाना बोलके, तारीफ तेरी है नहीं ।। टेर ॥ झूठसे प्रतितऊठे, झूठसे झूठीकहै लोग सब झूठागिने, तारीफ तेरी है नहीं ॥ याद रख० ॥१॥ वसुराजका सिंहासन, सत्य से रहता अधर । वो झूठ से गया नर्क में, तारीफ तेरी है नहीं ।। याद रख० ॥२॥ नीच वांछे झूठको, और उत्म नर वांछे नहीं । झूठनिन्दे सब जगह, तारीफ तेरी है नहीं ॥ याद रख० ॥ ३ ॥ झूठ से साधुको भी, आचार्य पद की है मना । व्यवहार सूत्र में लिखा, तारफि तेरी है नहीं ।। याद रख०॥४॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । ज्यो झूठ में माने मजा, तारीफ तेरी है नही ॥ याद रख० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम । गजल नं० १३ ( चोरी निषेधपर ) तर्न ॥ पूर्ववत ॥ साफ हुकमहै शास्त्रका, नर छोडदे तू तसकरी । तेरेहक में ठीक नहींहै, छोडदे नर तसकरी ॥ टेर ॥ बदनीत तसकरकी रहै, करुणा न जिस्के अंगरें । सर्व जाती में चौरी करे, नर छोडदे तू तसकरी ।। साफ हुकम है० ॥ १ ॥ सुरस्थान या शिवस्थान है, या धर्म का अस्थान है । मसजिद मंदिर नागिने, नर छोडदे तूं तस्करी ॥ साफ हुकम० ॥ २॥ सम जगह विसम For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) जगह, चौरीकर मारे मरे । समुद्र में चौरी करे, नर छोडदे तू तस्करी || साफहुकम ० ||३|| सरकार में पावेसजा, वो कैसे २ दुःख सहै । उन्को न मिलने दे किसीसे, छोडदे नर तस्करी | साफ हुकम || ४ || मेरेंगुरू नन्दलालजी का, येही नित्य उप देश हैं एक साधुजन इनसे बचे, नरछोडदे तू तस्करी, ॥ साफहुकम || ५ || सम्पूर्णम्. गजल नं० १४ ( परस्त्री गमन निषेध ) तर्ज ॥ पूर्ववत ॥ इज्जत बनिरहगि सदा पर नारी का संग छोड़ दे | अबभी समझ कुच्छ डरनहीं; कुकर्मों से मन मोड़दे; || ढेर || राजा कीचक द्रोपदीपे; चित दिया तब भिमजी । छत उठा स्थम्भ बिच धरा, पर नारी का संग छोड़दे, इज्जत ० ॥ १ ॥ कोई धन खोकर चुप है, कोई जान से मारे गए, । कोई रोग मे सड़२ मरे, परनारी का संग छोड़ दे, इज्जत || २ || केई जूतियों से पिट गए, केई न्यात से खारिज हुए; । कोई राज में पकड़े | गए, पर नारीका संग छोड़दे; | इज्जत || ३ || सती, फिर दृढ़ रहि राजमती | इस तरह पर नारी का संग छोड़दे, ॥ इज्जत ० ||४|| मेरे गुरू नन्दलालजी का; येही नित उपदेश है, ॥ शीलमें सुख हैं सदा, पर नारी का संग छोड़दे || इज्जत ० || ५ || सम्पूर्णम्. शील में सीता तू दृढ़ रहै; । For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) गजल नं०१५ ( परिग्रहत्याग विषय. ) तर्जः---- || पूर्ववत् ।। माया को तू अपनी कह, अबतक तुझे मालूम नहीं; ॥ किसकी हुई न होयगी, अबतक तुझे मालूम नहीं, ॥ टेर. ॥ आयाथा जब नगन होकर, साथ कुच्छ लाया नहीं । पिछे पसारा सब हुआ, । अबतक तुझे मालूम नहीं, ॥ मायाके० ॥१॥ भाई २ सासु जमाई, पुत्र और माता पिता । धनके लिये शत्रुवने, अबतक तुझे मालुम नहीं ॥ २ ॥ बाबर अलाउद्दीन महम्मद, अकबर हुए बादशाहा, । वोभी खजाना छोड़गए, अबतक तुझे मालूम नहीं, ॥ मायाको ॥३॥ अकृत कामा तू करे, दिन रात पच२ के मरे , || क्या ठीक कौन मालिक बने, अबतक तुझे मालूम नहीं ०॥ मायाको ॥४॥ मेरेगुरू नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है, । संतोषधर आराम का, अबतक तुझे मालूम नही, ॥ मायाको० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम् गजल नं० १५ (नषा निषेध विषय पर.) तर्जः- रघुवर कौशल्या के लाल, मुनिका यज्ञरचाने वाले, मतकर नशा कहना मानतू , अपना हितचाहाने वाले ॥ टेर ।। ज्यो करते नशा अजान, उनको रहे नहीं कुच्छ भान, सबही लोग कहे बईमान, कुलं का नाम लजाने वाले; मत कर नशा० ॥ १ ॥ केई कपडा माल गमाते; केई गलियों में गिरजाते, उनका कुत्ता मुंह चाटजाते, मखियोंको उडाने वाले ॥ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) मतकर नशा० ॥ २ ॥ वो निरलज होते चोडे, फिर साथ छोकरा दौडे, घरका बरतन वासन फोडे, हा हा हंसीकराने वाले ॥ मत कर नशा० ॥ ३ ॥ न रहे हिता हित ख्याल, मुख से बाले आल पंपाल, करते लोग हाल बे हाल, हा व्हा मोज उडाने वाले, ॥ मतकर नशा० ॥ ४ ॥ अब है बहुत मजेका टेम, तेरेरहेगा हमेशा क्षेम, करदे दिलले झटपट नेम, अ५नी ईज्जत बढ़ानेवाले, ॥ मतकर नशा० ॥ ५ ॥ मेरे गुरू मुनि नन्दलाल, हे सब जीवे के प्रतिपाल, देते मिथ्या भर्म को टाल, सच्चा ज्ञान सुनाने वाले ।। मतकर नशा ॥ ६ ॥ सम्पूर्णम् गजल नं० १६ ( परनिन्दा निषेध पर.) तर्जः-नम्बर १४ की गजल वाली करके बुराई और की, क्यों? पापका भागी बने, बहकाने वाले बहुत हैं, क्यों ? पापका भागीबने । टेर ॥ सत्य हो चाहे झूठ हो, निर्णय तो करना ठीक है, । अपनी२ तानके क्यों? पापका भागी बने, ॥ करके० ॥ १ ॥ काने सुणि झुठी हुवे, आंखोंसे देखि सत्य है। दखिभी झूठी हो सके, क्यों? पापका भागिबने ॥ करके ।। २ ॥ मुखसे बूराई निसरे, ज्यु हाटहो चर्मकारकी। यह न्याय निन्दकपे सही, क्यों पापका भागिबने० ॥ करके० ॥ ३ ॥ नीर को तज खीर पीवे, हंसका यह धर्म है । तू भि गुणले इस तरह, कों पापका भागिबने. ॥ करके० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) उपदेश है। निन्दापगई छोडदे, क्यों पापका भागिबने। ॥ करके० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. १७ (सत्संग विषयपर ) तर्ज पूर्ववत्. सत्संग से ज्ञानी बने, तू चाहे जिनसे पूछले । मोक्षभी हांसिल करे, तू चाहे जिनसे पूछले ॥ टेर० ॥ केई पापी होचुके, वो तिरगए सत्संगसे । शकहो तो मेरी हे रजा, तू चाहै जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० । १ ॥ जैसे पथ्थर नावके संग, नीरमें तिरता रहै। परले कीनारे वो लगे, तू चाहे जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० ॥ २ ॥ ज्यो हलाहल जहर को भी, वैद्यकी संगत मिले। अमृत बनादे औषधी, तू चाहै जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० ॥ ३ ॥ सोनी सुवर्णको तपाकर, जलती अग्निमें धर। फूंककर निर्मलकरे, तू चाहे जिनसे पूछले सत्संगसे० ॥ ४॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । सुधरे पशुभी संगसे, तू चाहे जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. १८ (सुशिष्य गुणकीर्तन ) तर्ज पूर्ववत. आज्ञा गुरुकी मानते, ज्यो वो ही सिश सुशिष्य है। आज्ञाको पालन नाकरे, लो वोही शिष्य कुशिष्य है ।। टेर० ।। बन्दना करके सुबेही, पूछले गुरु देवसे | आज्ञा होवे वो करे, ज्यो वोही शिष्य सुशिष्य है । आज्ञा० ॥ १ ॥ आते जाते देख गुरुको, हो खडा कर जोडके । भावसे भाक्त करे, ज्यो For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४ ) वोही शिष्य सुशिष्य है | आज्ञा० ॥ २ ॥ लेनमे या देन में, या खानमें अरुपानमें । कार्य सब करे पूछके, ज्यो वोही शिष्य सुशिष्य है || आज्ञा ० || ३ || ज्यो २ क्रिया दिनरातकी है, वही क्रिया करता रहै | चारित्र में मानें मजा, ज्यो वोही शिष्य सुशिष्य है || आज्ञा० || ४ || मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है। मुनि डाव जीते मोक्षका, ज्यो वोही शिष्य सुशिष्य है || आज्ञा ० || ५ || सम्पूर्णम्. गजल नं १९ ( ऋपण के गुण वर्णन ) तर्ज पूर्ववत. O मुंजी अपने हाथसे, नहीं जीते जी कामे दान दे । रात दिन जोडे जमा, नहीं जीते जी कभि दानदे. || टेर० || पुत्रादि को दान देते, देखले मूंजी कभी । तो | खुद करे एकासना, नहीं जीते जी कभी दान दे० ॥ मूंजी० ॥ १ ॥ चाहे कोई कुच्छभी दे, उस्का फिकर मूंजी करे | जहां तक बने कर दे मना, नहीं जीते जी कभी दान दे || मूंजी ० ॥ २ ॥ दीन दुःखि कोइ द्वार पे, कोई स्वाल डाले आनकर । करुणा का जिस्के काम क्या, नहीं जीतेजी कभी दानदे० ॥ मूजी० || ३ || बद खाना बद पहनना, चाहे को भी त्योहार हो । मायाका मजदूर वो, नहीं जीतेजी कभी दानदे० ॥ मूंजी ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है। मूंजी धन घर जायगा, नहीं जीतेजी कभी दानदे० || मूंजी ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५) गजल नं. २० ( सत्यधर्म स्वरूप ) तर्ज-पूर्ववत. सचमान संतोंका कहा, यह खास असली धर्म है । चाहे पूछले पंडितों से, यह खास असली धर्म है ।।टेर०॥ जीवोकी रक्षा करे, और झूठ नहीं बोले कभी। चौरीका त्यागन करे, यह खास असली धर्म है ॥ सचमान० ॥ १ ॥ ब्रह्मचर्य का पालना, संग परिग्रह का परिहरे । रात्री भोजन नहीं करे, यह खास असली धर्म है ॥ सच मान० ॥२॥ पांचों इन्द्रि को दमे, क्रोधादि चारों जीत ले। सम भाव शत्रु मित्र पे, यह खास असली धर्म है ॥ सच मान० ॥ ३ ॥ दान दे तप जप करे, नरमि रक्ख सबसे सदा । शुभ योग में रमता रहे, यह खास असली धर्म है। सच० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । गुण पात्रकी सेवा करे, यह खास असली धर्म है ।। सच मान०॥ ५ ॥ संपूर्णम्. गजल नं० २१ ( अल्पायु विषय पर ) __ तर्ज पूर्ववत् कौन यहां अमर रहा, तूं समझले अछि तरह । उमर तेरी जारही, तूं समझ ले आछि तरह ।। टेर । डाब आणि जल बिन्दु जैसी, उम्र तेरी अल्प है। दो पञ्चास वर्ष हद है, तूं समझ ले आछि तरह ॥ कौन यहां ॥१॥केई सागरोपम लगे, सुख भोगवे सुर स्वर्ग में । वह भी स्थिती पूरन हुवे, तू For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६) समझ ले अछि तरह ॥ कोन०॥ २ ॥ वायु या मनकी गति, ज्यु वेग नदी का बहै । स्थिर नहीं सूरज शशी, तू समझ ले अछि तरह ।। कौन० ॥ ३ ॥ राज पाया मुल्क का, किसी रंक ने ज्युं स्वप्न में | वो थाट कितनी देर का, तू समझ ले आछि तरह ॥ कौन० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलाल जी का, येही नित्य उपदेश है । सफल कर इस वक्त को, तू समझ ले आछ तरह ॥ कौन० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम गजल नं० २२ (हितोपदेश ) तर्ज पूर्ववत मनुष्य का भव पायके, शुभ काम तेने क्या किया । अपने या परके लिये, शुभ काम तैने क्या किया ॥ टेर || नामवर जीमन किया, दुनियां में व्हा व्हा हो रही । फूला फिर मगरूर में, शुभ काम तैने क्या किया ॥ मनुष्यका० ॥१॥ मित्र मिल गोठां करि, वैश्या नचाई बागमें । माल खागए. मस्करा, शुभ काम तैने क्या किया ॥ मनुष्यका० ॥ २ ॥ तनसे और धनसे बडा, नहीं जाती की रक्षा करी । प्रेम नहीं सत्संग से, शुभ काम तैने क्या किया । मनुष्यका० ॥३॥ दिन गमाया सोय के, और रात गमाई निन्द में । युं वक्त तेरी सत्र गई, शुभ "काम तैने क्या किया ॥ मनुष्यका० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्द लालजीका, येही नित्य उपदेश है । विद्वान होतो समझले, शुभ ‘काम तैने क्या किया । मनुष्य का० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) गजल नं० २३ ( श्रावक गुण वरणन ) तर्ज पूर्ववत श्रमणो पासक के सदा, गुण एसे होना चाहिये । अनुराग रत्ता धर्म में, गुण एसे होना चाहिये ।। टेर । आवश्यक करके सुबे, गुरु देव का दर्शन करे । वादमें शास्त्र सुने, गुण एसे होना चाहिये ।। श्रमणो० ॥ १ ॥ गुरु देव आवे द्वार पर, तब उठ कर आदर करे । दान दे निज हाथ से, गुण एले होना चाहिये ॥ श्रमणो० ॥ २ ॥ हितकारी चारी संघ के, समभाव सम्पत विपंत में, । गुणपात्र की स्तुति करे, गुण एसे होना चाहिये ॥ श्रमणो ।। ३ ॥ धर्म से डिगते हुए को, साज देकर स्थिर करे । उदास रहै संसार से, गुग ऐसे होना चाहिये । श्रमणे ।। ॥ ४ ।। मेरे गुरू नन्दलालजी का ! येही नित्य उपदेश है। न्याईहो निस्कपट हो, गुण ऐसे होना चाहिये ॥श्रमणो ॥ ॥ ५ ॥ संपूर्णम्, गजल नं. २४ ( पतितास्त्री गुण वरणन.) ॥ तर्जः-पूर्व वत् ।। पतिका हुकम पालन करे, पतिव्रत्ता वोही नार है। सख में सुखि दुःखमें दुःखि, पतिव्रत्ता वोही नारहै । टेर ॥ कुटम्ब को सुख दायनी, सु सम्प से मिलजुल रहै । सुमनी सु भाषिनी, पतिव्रत्ता वोही नार है ।। पतिका० ॥ १ ॥ विप्त में अनुकुल रहै, चित अथिर होता स्थिर करे । उपदेश दाता धर्म की, पतिव्रत्ता वोही नार है ।। पतिका ॥२॥ सीता सती For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८) राज मती, जैसे रहै दृढ़ धर्ममें । पर पूरूष को वांछे नहीं, पति वत्ता वोही नार है । पतिका ० ॥ ३ ॥ रोस में पात कुच्छ कहै, नहीं सामने बोले कभी । ज्युं त्युं दिल को खुश करे, पति व्रत्ता वोही नार है । पतिका ॥ ४ ॥ मेरे गुरू नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । दासी बन रहै चरण की, पति वत्ता वोही नार है । पतिका ॥ ५ ॥ संपूर्णम्. गजल नं० २५ (नेक नसिहत ) तजे:---पूर्ववत् ॥ देखकर पर सम्पति, क्यों ? ईर्षा मन में करे । जैसा करे वैसा भरे, क्यों ? ईर्षा मनमें करे ॥ टेर । लक्ष्मी भरपुर फिर, व्यापार में दुगने हुए | अपने२ पुन्य है, क्यो ? ईर्षा करता है तू ।। देखकर ॥ १ ॥ पुत्र पोतादि मनोहर, बहुतहि परिवार है । मोजां करे रंग महल में, क्यों? ईषा करता है तू ॥ देखकर० ॥२॥ जात या पर जात में, पंचायत और सरकार में । पूछ जिनकी होरही, क्यों ? ईर्षा मनमें कर ॥ देखकर ॥ ३ ॥ दयावंत दानेश्वरी, उपदेशदाता धर्मका । महिमा सुणी गुणवानकी, क्यों ? ईपी मनमें कर ।। देखकर० ॥४॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है। द्वेष बुद्धि छोडदे, क्यों ईर्ष मनमें करे || देखकर० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. २६ ( सम्पविषयपर ) तर्ज पूर्ववत. संतोंका कहना मानके, तुम छोडदो कुसम्पको । प्रेमसे मिलजुलरहो, तुम छोडदो कुसम्पको । टेर ॥ भाई २ या For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९ ) बाप बेटे, राज्य तकजो चढगए । बरबाद पैसे सब हुवे, तुम छोड़दो कुसम्पको || संतोंका० || १ || राज्य रावन का गया, पंचों कि गई पंचायती | सानु कि गई मानता, तुम छोडदो कुसम्पको || संतोंका ० ॥ २ ॥ केई तो खुद मरगए, और केई को मरवा दिये । केई गए परमुल्क में, तुम छोडदो कुसम्पको || संतोंका ||३|| केई की इज्जतगई, केई धर्म में हानि करी | भरम घरका खोदिया, तुम छोडदो कुसम्पको० || ४ || मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । सम्पनें सुख है सदा, तुम छोडदो कुसम्पको || संताका० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं २७ ( सत्बोध० ) तर्ज :- पेलु में मेरे यार है | यह० ॥ जीया मानले मुनिराज, सच्ची कहत है अरे । ले मुक्तिको सामान, अब ढिल क्यों करे ॥ ढेर ॥ यह मात तात कुटुम्बभ्रात, सेतु नेह करे । न तुमको तारनहार, क्यों इनकीजाल में परे || जीयामानले ० ||१|| बनजाउं मैं धनवान्, एसी कल्पना करे । न भाग बिना पावे, नाहक डोलतो फिरे || जीयामानले ० || २ || है थोडिसी जिन्दगानी, तू न पापसे डरे । विन पाल्यां धर्म नियम, कैसे आतमा तरे ॥ जीयामानले० || ३ || मेरेगरु नन्दलालजी हैं संतों में सिरे। संसार सागर घोर, आपतारे और तिरे । जीयामानले ० ॥ ४ ॥ सम्पूर्णम्. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) गजल नं. २८ (गुरु गुणमहिमा० ) तर्ज-पूर्ववत. गुरु देवकी मुझ सेव, पुन्ययोगसे मिली । सुना बैन खुला नैन, मेरी भाना टली ॥ टेर० ।। प्रकर्ति है मुलाम, ज्यु गुलाबकी कली । सब भनकी मेरी आस, बहुत दिनसे फली । ॥ गुरु देवकी ॥१॥ निर्यक्ष होके कहते कथा, ज्ञान कि भली । मुझे आवे स्वाद, मुंह में ज्युं मिष्टानकी डली | गुरु देवकी० ॥२॥ है ज्ञान के दरियाव धोवे, पापकी कली । न मान माया लोभ, है वैराग्यकी झली ॥ गुरु देवकी ० ॥ ३ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी, संतोषकी सली । तम शिव्य को गुरु भक्ति से, सुखसम्पती मिली ॥ गुरु देवकी० ॥ ४ ॥ सम्पूर्णम्. स्तवन नं. २९ ॥ तज-ख्यालकी. ... वन्दु मुनि नन्दलाल जी महाराज, सुधारे-भव्यजीवों के काज टेर। निरले भी निरलालची सरे, तारण तिरण जहाज । सत्योपदेशक अति गुणिहो, मेरे सरके ताज ॥ बन्दु मुनि०॥१॥ तत्व ज्ञान के ज्ञाता आपकी, मिट्ठी घणि आवाज | चार संघमें बैठासोहे, जैसे नक्षत्रराज || बन्दु मुनि० ॥ २॥ दे उपदेश भव्य हित कारन, बान्धे धरमकी पाज । जंगम सुरतरू प्रतक्ष आपहो, इस कलयुगमें आज || बन्दु मुनि० ॥ ३ ॥ मिथ्यात्व निकंदन किया आपने, सिंह तणि परेगाज । शिष्य वर्गको ज्ञान ध्यानका, खुबदिया है साज || बन्दु मुनि०॥ ४ ॥ धैर्यवान् गुरु खूबचन्दजी, तारी जैन समाज । सिंगोलीमें "सुख" मुनि कहै, रखियो गुरुजी लाज ॥ बन्दु मुनि० ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only