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बड़े बड़े अस्पताल जैनों द्वारा चलाये जा रहे हैं। अधिकांश मन्दिरों के साथ होम्योपैथी या आयुर्वेदिक चिकित्सालय मुफ्त चलाये जाते हैं।
इनके अतिरिक्त प्राय: हर क्षेत्र में समाज सेवा में जैन निस्वार्थ भाव से अग्रसर पाये जाते हैं।
इक्कीसवीं शताब्दी के परिपेक्ष में जैन धर्म
" वस्तु स्वभाव” ही धर्म है । 2 सत् की व्याख्या सत् की व्याख्या 'उत्पाद व्यय श्रव्ययुक्तं
इन दो जैन सिद्धान्तों का अर्थ है कि लोक सदा से है व रहेगा पर इसमें निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। इसका अर्थ है कि सत् सदैव सत् रहेगा पर उसका पर्याय बदलता रहता है अर्थात् महावीर के समय का संसार भी आज के सरीखा संसार था 4 पर अब समाज व उसकी समस्याओं का स्वरूप बदल गया है। आज का युग knowledge, IT व संचार का युग है जिसने सारे विश्व को एक कुटिया / ग्राम का रूप दे दिया है। आइये, अब हम देखते है कि जैन सिद्धान्त किस प्रकार आज की जटिल समस्याओं को सुलझाने में हमारी मदद कर सकता है।
1.
जीवन शैली: आज मोटापा, डायबीटीज़, हाइपरटेन्शन आदि समस्याएँ हमारे जीवन को ग्रसित कर रही हैं। इनके लिये जैन धर्म में शुद्ध शाकाहारी भोजन, तीन तप ( अनशन, उनोदरी, रसपरित्याग) का प्रावधान अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने की दृष्टि से ही किया गया है, जिससे हम अपने धार्मिक व सामाजिक कार्य पूर्ण रूप से कर सकें।
2. पर्यावरण: आज की इस जटिल समस्या के समाधान के लिये महावीर ने अहिंसा व षट्जीवनिकाय सिद्धान्त को प्रतिष्ठित किया। एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा के न्यूनिकरण का आदेश दिया।
3. आतंकवाद: हिंसा से हिंसा मिलती है। आतंक का हल अहिंसा व अनेकान्त दृष्टि दिखाता है। आतंकवादी से बातचीत, उसकी समस्याओं
ज्ञान
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4. यौन रोग: स्वदारा (पत्नि) - संतोष (ब्रह्मचर्य अणुव्रत) की स्थापना शायद यौन रोगों को मूल से समाप्त कर सकती है। इस अणुव्रत में यौन क्रिया त्याग (abstinence from sex) को उत्कृष्ट व अपनी पत्नी के साथ भी यौनक्रिया में मर्यादा को मध्यम श्रेणी कहकर ब्रह्मचर्य अणुव्रत का सही पालन करना बताया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन दर्शन एक समग्र व्यवहारिक व सैद्धान्तिक धर्म है जिससे हम अपनी सारी संसारी समस्याओं का समाधान भी कर सकते हैं।
का यथोचित समाधान, शिक्षा, अपने को शक्तिशाली बनाकर व विरोधी हिंसा का सिद्धात अपनाकर, आतंक से निपटा जा सकता है।
इसलिये हम जैनों का यह सर्वोपरि धर्म / कर्तव्य है कि जैन सिद्धान्तों व जीवन शैली की शिक्षा जैनों को व सारे विश्व को आधुनिक टैक्नोलॉजी के माध्यम से दें जिससे आप व सारा विश्व आनन्द व शान्ति पूर्वक जीवन जी सकें।
सन्दर्भ
1- आप्त मीमांसा (समन्तभद्रकृत ) में सर्वज्ञ, वीतराग व हितोपदेश तीन गुण आप्त कहे है।
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कार्तिकेय अनुप्रेक्षा (कुमार स्वामी) ।
भगवती (व्याख्या प्रज्ञति ) ।
महावीर के समय में दासी प्रथा, हिंसा, बलि, अनेकों मतावली (343), धन का दुरुपयोग, जाति के आधार पर शोषण आदि समस्याएँ आज की तरह ही थी। जिनका समाधान महावीर ने अपने समयानुकुल तरीकों से प्रमाणित कर समाज को चेतना दी।
लेखक इन्टरनेशनल स्कुल फॉर जैन स्टडीज़ (www.jainstudies.org), के संस्थापक निदेशक है। लेखक सम्पर्क: svana@vsnl.com
Malenda
अब तक बुजुर्गो से सुनते आएं है और उनका अनुसरण करते हुए शाकाहारी रहे। लेकिन जैसे ही हमे ज्ञान हुआ कि हम शाकाहारी क्यों है, इसका हमें ज्ञान ही नहीं है तो फिर खान-पान
पर इतनी पाबंदिया क्यों? इसलिये अब हम कुछ भी खा-पी लेते है।
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