Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 7
________________ प्रस्तुति आत्मा की उपासना निर्विघ्न है। आत्मोपासक के सामने यदा-कदा विघ्न आते रहते हैं । प्राकृतिक, भौगोलिक, मानवीय, पाशविक, दैविक और वातावरणीय - ये सब अपने-अपने क्रम से चलते हैं । उनका गतिक्रम किसी के लिए सहायक और किसी के लिए बाधक बन जाता है । अध्यात्म के क्षेत्र में यदा-कदा आने वाले विघ्नों और बाधाओं पर विचार किया गया । उनके उपशमन अथवा निवारण का उपाय खोजा गया । उन उपायों का एक महत्त्वपूर्ण अंग है आवश्यक । दिनचर्या का एक ध्रुव योग है आवश्यक | यह अध्यात्म विशुद्धि का प्रयोग, जागरूकता का दिग्सूचक यंत्र, आत्मनिरीक्षण का अध्यादेश और विघ्ननिवारण का महामंत्र है। प्रस्तुत पुस्तक में अवश्य करणीय अनुष्ठान के रूप में आवश्यक पर विचार किया गया है । नमस्कार महामंत्र जैन परम्परा में बहुत प्रसिद्ध है । आबाल, वृद्ध सब लोग उसका स्मरण करते हैं । मंगलपाठ कार्यारम्भ का आदिवाक्य है । इन दोनों के महत्त्व पर भी कुछ विमर्श किया गया है । उमास्वाति का प्रसिद्ध ग्रन्थ है मोक्षशास्त्र है । उसका प्रचलित नाम है तत्वार्थ सूत्र । उस महान् ग्रन्थ की पीठिका के रूप में वावकप्रवर ने प्रशमरति प्रकरण की रचना की । उसमें ज्ञान, दर्शन और चारित्र की रत्नत्रयी का मार्मिक विवेचन है । प्रस्तुत ग्रन्थ में उसके अल्पांश पर कुछ मनन उपलब्ध है । नव तत्त्व या नव सद्भाव पदार्थ जैनधर्म का उपयोगितावाद है। जहां षड्द्रव्य में अस्तित्ववादी दृष्टिकोण से विचार किया गया है, वहां नवतत्त्व में उपयोगितावादी अथवा आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विचार किया गया है । जैनधर्म प्रकृति से आध्यात्मिक धर्म है । जैन आचार्यों ने अध्यात्म की साधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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