Book Title: Jain Dharm me Tirth-ki Avadharna Author(s): Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 7
________________ उल्लेख अपने आप में एक स्वतन्त्र शोध का विषय है। अतः हम उन सबकी चर्चा न करके मात्र उनकी एक संक्षिप्त सूची प्रस्तुत कर रहे हैं रचनातिथि रचना सकलतीर्थस्तोत्र अष्टोत्तरीतीर्थमाला कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प तीर्थयात्रास्तवन वि०सं०१४वीं शती अष्टोत्तरीतीर्थमाला तीर्थमाला पूर्वदेशीय चैत्यपरिपाटी सम्मेतशिखर तीर्थमाला श्री पार्श्वनाथ नाममाला तीर्थमाला तीर्थमाला शत्रुञ्जयतीर्थपरिपाटी सूरतचैत्यपरिपाटी तीर्थमाला सम्मेतशिखरतीर्थमाला गिरनार तीर्थ चैत्यपरिपाटी पार्श्वनाथ चैत्यपरिपाटी शाश्वततीर्थमाला जैसलमेरचेत्यपरिपाटी शत्रुञ्जयचैत्यपरिपाटी आदिनाथ रास - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ आधुनिक सन्दर्भ में जैन धर्म पार्श्वनाथसंख्यास्तवन रचनाकार सिद्धसेनसूरि महेन्द्रसूरि वि०सं०११२३ वि०सं० १२४१ जिनप्रभसूरि विनयप्रभ उपाध्याय Jain Education International वि०सं०१३८९ मुनिप्रभसूरि मेघकृत हंससोम वि०सं०] १५वीं शती वि०सं० १६वीं शती वि०सं० १५६५ वि०सं० १७१७ मेघविजय उपाध्याय वि०सं०१७२१ विजयसागर शत्रुञ्जयतीर्थयात्रारास विनीत कुशल कविलावण्यसमय शीलविजय वि०सं० १७४८ सौभाग्यविजय वि०सं० १७५० देवचन्द्र वि०सं० १७६९ वि०सं० १७९३ वि०सं० १७९५ घालासाह ज्ञानविमलसूरि जयविजय रत्नसिंह सूरिशिष्य मुनिमहिमा कल्याणसागर वाचनाचार्य मेरुकीर्ति जिनसुखसूरि कावीतीर्थवर्णन तीर्थराज चैत्यपरिपाटीस्तवन साधुचन्द्रसूरि पूर्वदेशचैत्यपरिपाटी जिनवर्धनसूरि खेमराज मंडपांचलचैत्यपरिपाटी रत्नकुशल कवि दीपविजय वि०सं० १८८६ -- । भगवती आराधना एवं मूलाचार हैं किन्तु इनमें तीर्थ शब्द का तात्प धर्मतीर्थ या चतुर्विधसंघ रूपी तीर्थ से ही है दिगम्बर- परम्परा । में तीर्थक्षेत्रों का वर्णन करने वाले ग्रन्थों में तिलोयपण्णत्ती को प्राचीनतम माना जा सकता है । तिलोयपण्णत्ती में मुख्य रूप से तीर्थङ्करों की कल्याणक भूमियों के उल्लेख मिलते हैं। किन्तु इसके अतिरिक्त उ क्षेत्र मंगल की चर्चा करते हुए पावा, ऊर्जयंत और चम्पा के नामी का उल्लेख किया गया है । इसी प्रकार तिलोयपण्णत्ती में राजगृह का पंचशैलनगर के रूप में उल्लेख हुआ है और उसमें पाच शैलो का यथार्थ और विस्तृत विवेचन भी है। समन्तभद्र ने स्वयम्भुस्तोत्र में ऊर्जयंत का विशेष विवरण प्रस्तुत किया है। दिगम्बर-परम्परा में इसके पश्चात् तीर्थों का विवेचन करने वाले ग्रन्थों के रूप में दशभक्तिपाठ प्रसिद्ध हैं। इनमें संस्कृतनिर्वाणभक्ति और प्राकृतनिर्वाणकाण्ड महत्त्वपूर्ण हैं। सामान्यतया संस्कृतनिर्वाणभक्ति के कर्ता "पूज्यपाद" और प्राकृतभक्तियों के कर्ता "कुंदकुंद" को माना जाता है। पंडित नाथूराम जी प्रेमी ने इन निर्वाणभक्तियों के सम्बन्ध में इतना ही कहा है कि, जब तक इन दोनों रचनाओं के रचयिता का नाम मालूम न हो तब तक इतना ही कहा जा सकता है कि ये निश्चय ही आशाधर से पहले की (अब से लगभग ७०० वर्ष पहले की ) हैं । प्राकृतभक्ति में नर्मदा नदी के तट पर स्थित सिद्धवरकूट, बड़वानी नगर के दक्षिण भाग में चूलगिरि तथा पावागिरि आदि का उल्लेख किया गया है किन्तु ये सभी तीर्थक्षेत्र पुरातात्त्विक दृष्टि से नवीं दसवीं से पूर्व के सिद्ध नहीं होते हैं। इसलिए इन भक्तियों का रचनाकाल और इन्हें जिन आचार्यों से सम्बन्धित किया जाता है वह संदिग्ध बन जाता है। निर्वाणकाण्ड में अष्टापद, चम्पा, ऊर्जयंत, पावा. सम्मेदगिरि, गजपंथ, तारापुर, पावगिरि, शत्रुञ्जय, तुंगीगिरि, सवनगिरि, सिद्धवरकूट, चूलगिरि, बड़वानी, द्रोणगिरि, मेढगिरि, कुंथुगिरि, कोटशिला, रिसिंदगिरि, नागद्रह मंगलपुर, आशारम्य, पोदनपुर, हस्तिनापुर, वाराणसी, मथुरा, अहिछत्रा, जम्बूवन, अर्गलदेश, पिवडकुंडली, सिरपुर, होलगिरि, गोम्मटदेव आदि तीर्थों के उल्लेख हैं। इस निर्वाणभक्ति में आये हुए चूलगिरि, पावगिरि, गोम्मटदेव, सिरपुर आदि के उल्लेख ऐसे हैं, जो इस कृति को पर्याप्त परवर्ती सिद्ध कर देते हैं। गोम्मटदेव (श्रवणबेलगोला) की बाहुबली की मूर्ति का निर्माण ई० सन् ९८३ में हुआ। अतः यह कृति उसके पूर्व की नहीं मानी जा सकती और इसके कर्ता भी कुंदकुंद नहीं माने जा सकते। कुण्डपुर, जृम्भिकामाम, वैभारपर्वत, पावानगर, कैलाशपर्वत, यह सूची 'प्राचीनतीर्थमालासंग्रह' सम्पादक-विजयधर्मसूरिजी के आधार ऊर्जयंत, पावापुर, सम्मेदपर्वत, शत्रुञ्जयपर्वत, द्रोणीमत, सह्याचल पर दी गई है। आदि । पाँचवीं से दशवीं शताब्दी के बीच हुए अन्य दिगम्बर आचार्यों की कृतियों में कुंदकुंद के पश्चात् पूज्यपाद का क्रम आता है। पूज्यपाद ने निर्वाणभक्ति में निम्न स्थलों का उल्लेख किया है रविषेण ने 'पद्मचरित' में निम्न तीर्थस्थलों की चर्चा की है। कैलाश पर्वत, सम्मेदपर्वत, वंशगिरि, मेघरव, अयोध्या, काम्पिल्य, दिगम्बर- परम्परा का तीर्थविषयक साहित्य दिगम्बर - परम्परा में प्राचीनतम ग्रन्थ कसायपाहुड, षट्खण्डागम, रत्नपुर, श्रावस्ती, चम्पा, काकन्दी, कौशाम्बी, चन्द्रपुरी, भद्रिका, मिथिला, १२५ For Private & Personal Use Only m www.jainelibrary.orgPage Navigation
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