Book Title: Jain Dharm me Swadhyaya ka Arth evam Sthan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_1_001684.pdf View full book textPage 7
________________ प्रो. सागरमल जैन इनमें मुख्य रूप से वे ही पत्रिकाएँ अधिक पसंद की जा रही हैं जो वासनाओं को उभारने वाली तथा जीवन के विपित पक्ष को यथार्थ के नाम पर प्रकट करने वाली हैं। आज समाज में नैतिक मूल्यों का जो पतन है उसका कारण हमारे प्रसार माध्यम भी हैं। इन माध्यमों में पत्र-पत्रिकाएँ तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन प्रमुख हैं। आज स्थिति ऐसी है कि ये सभी अपहरण, बलात्कार, गबन, डकैती, चोरी, हत्या -- इन सबकी सूचनाओं से भरे पड़े होते हैं और हम उनको पढ़ने और देखने में अधिक रस लेते हैं। इनके दर्शन और प्रदर्शन से हमारी जीवन दृष्टि ही विकृत हो चुकी है, आज सच्चरित्र व्यक्तियों एवं उनके जीवन वृत्तान्तों की सामान्य रूप से इन माध्यमों के द्वरा उपेक्षा की जाती है। अतः नैतिकमूल्यों और सदाचार से हमारी आस्था उठती जा रही म इन विकृत परिस्थितियों में यदि मनुष्य के चरित्र को उठाना है और उसे सन्मार्ग एवं नैतिकता की ओर प्रेरित करना है तो हमें अपने अध्ययन की दृष्टि बदलना होगा। आज साहित्य के नाम पर जो भी है वह पठनीय है, ऐसा नहीं है। आज यह आवश्यक है कि सत्साहित्य का प्रसारण हो और लोगों में उसके अध्ययन की अभिरुचि जागत हो। यही सच्चे अर्थ में स्वाध्याय है। - प्रो. सागरमल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी-5. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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