Book Title: Jain Dharm ka Vaigyani  Mahattva
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 3
________________ | अंतिम सत्य नहीं है / जबकि अध्यात्म में अंतिम सत्य ही मुख्य है / विज्ञान कभी भी अंतिम सत्य या संपूर्ण सत्य पा सकता नहीं है / हाँ, वह अंतिम सत्य या संपूर्ण सत्य के नजदीक आ सकता है / अंतिम सत्य पाने के लिये विज्ञान के अत्याधुनिक उपकरण भी अनुपयोगी व अपूर्ण मालुम पड़ते हैं| क्योंकि वहाँ आत्मा के ज्ञानस्वरूप उपकरण ही अनिवार्य होते हैं और यह ज्ञानस्वरूप साधन अध्यात्ममार्ग बिना कहीं भी उपलब्ध नहीं है / अतः विश्व के महान भौतिक विज्ञानी भी विश्व के सभी पदार्थों के गुणधर्म व ब्रह्मांड की संरचना और अन्य परिबलों का गणित व विज्ञान की मदद से रहस्य पानेका प्रयत्न करते हैं और उस प्रयत्नों के अंत में भी इस विश्व के संचालक बल की शक्ति का रहस्य न पाने पर, वे भी ईश्वर या कर्म जैसी किसी अदृश्य सत्ता का स्वीकार करते हैं | __ इसी वजह से भूतकाल के आइन्स्टाइन, ओपेनहाइमर जैसे प्रखर विज्ञानी तथा वर्तमान काल के डॉ. अबदुस्सलाम, डॉ. अब्दुल कलाम, डॉ. हरगोविंद खुराना, डॉ. हेलीस ओडाबासी जैसे विज्ञानी भी ईश्वर में श्रद्धा रखते हैं। उनकी श्रद्धा किसी धर्म या संप्रदाय से संबद्ध न होकर अर्थात् अंधश्रद्धा न होकर विशाल अर्थ में धर्म ऊपर की बुद्धिजनित निष्पक्ष श्रद्धा होती है / और सत्य का स्वीकार ही ऐसी श्रद्धा का महत्त्वपूर्ण लक्षण है / अतएव डॉ. हेलीस ओडाबासी जैसे विज्ञानी स्वयं मुस्लीम होने पर भी, उन्होंने अपनी किताब के पहले प्रकरण के शुरु में ही कहा है : The idea that all matter consists of aggregate of large number of relatively few kinds of fundamental particles is an old one. Traces of it are found in Indian philosophy about twelve centuries before Christian Era." यदि ऐसे प्रगतिशील विज्ञानी भी ऐसा कथन करते हैं कि इसी अणुविज्ञान का मूल भारतीय तत्त्वज्ञान में निहित है तो हमारे देश के | विज्ञानीओं का फर्ज है कि वे इसी दिशा में महत्त्वपूर्ण अनुसंधान करें। कार्मण वर्गणा स्वरूप कर्म पुद्गल स्कंध / कण संबंधी जैन विभावना ख्याल तथा द्रव्य-शक्ति स्वरूप पुद्गल इत्यादि सारी बातें अच्छी तरह Amannainamainment AATRADARA 14 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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