Book Title: Jain Dharm aur Adhunik Vigyan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf View full book textPage 1
________________ जैनधर्म और आधुनिक विज्ञान - प्रो. सागरमल जैन यह सत्य है कि आधुनिक विज्ञान की प्रगति के परिणामस्वरुप विभिन्न धर्मों और दर्शनों की लोक के स्वरूप एवं सृष्टि सम्बन्धी तथा खगोल-भूगोल सम्बन्धी अनेक प्राचीन मान्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लग गये हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि कुछ प्रबुद्ध जनों ने वैज्ञानिक मान्यताओं को चरम सत्य स्वीकार करके विविध धर्मों की परम्परागत मान्यताओं को काल्पनिक एवं अप्रामाणिक बताना प्रारम्भ कर दिया। फलस्वरूप अनेक धर्मानुयायिओं की श्रद्धा को ठेस पहुंची और आप्त पुरुषों के वचन या सर्वज्ञ के कथन में अथवा आगमों के आप्तप्रणीत होने में उन्हें सन्देह होने लगा। इस सम्बन्ध में अनेक पत्र-पत्रिकाओं में गवेषणापरक लेखों के माध्यम से पर्याप्त उहा-पोह भी हुआ और दोनों पक्षों ने अपनी बात को युक्तिसंगत सिद्ध करने का प्रयत्न किया। विशेष रूप से यह बात तब अधिक विवादास्पद विषय बन गई, जब पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने चन्द्रमा की सफल यात्रा कर ली और उस सम्बन्ध में अनेक ऐसे ठोस प्रमाण प्रस्तुत कर दिए, जो विभिन्न धर्मों की खगोल-भूगोल सम्बन्धी मान्यताओं के विरोध में जाते यह सत्य है कि विज्ञान के माध्यम से धर्म के क्षेत्र में अन्धविश्वास एवं मिथ्या धारणायें समाप्त हुई हैं, किन्तु जो लोग वैज्ञानिक निष्कर्षों को चरम सत्य मानकर धर्म व दर्शन के निष्कर्षों पर और उनकी उपयोगिता पर चिह्न लगा रहे है वे भी किसी भ्रान्ति में है। यह एक सुस्पष्ट तथ्य है कि कालक्रम में पूर्ववर्ती अनेक वैज्ञानिक धारणायें अवैज्ञानिक बन चुकी है। न तो विज्ञान और न प्रबुद्ध वैज्ञानिक इस बात का दावा करते है कि हमारे जो निष्कर्ष है वे अन्तिम सत्य है। जैसे-जैसे वैज्ञानिक ज्ञान में प्रगति हो रही है वैसे-वैसे वैज्ञानिकों की ही पूर्व स्थापित मान्यताएँ निरस्त होकर नवीन-नवीन निष्कर्ष एवं मान्यताएं सामने आ रही है। अतः आज न तो विज्ञान से भयभीत होने की आवश्यकता है और न पूर्ववर्ती मान्यताओं को पूर्णतः निरर्थक या काल्पनिक कहकर अस्वीकार कर देने में कोई औचित्य है। उचित यही है कि धर्म और दर्शन के क्षेत्र में जो मान्यताएं निर्विवाद स्प से विज्ञान सम्मत सिद्ध हो रही हैं, उन्हें स्वीकार कर लिया जाय, शेष को भावी वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए परिकल्पना के रूप में मान्य किया जाय। क्योंकि धर्मग्रन्थों में उल्लेखित जो घटनाएं एवं मान्यताएं कुछ वर्षों पूर्व तक कपोल कल्पित लगती थी वे आज विज्ञान सम्मत सिद्ध हो रही है। सौ वर्ष पूर्व धर्मग्रन्थों में उल्लेखित आकाशगामी विमानों की बात अथवा दूरस्थ ध्वनियों को सुनपाने और दूरस्थ घटनाओं को देख पाने की बात काल्पनिक लगती थी, किन्तु आज वे यथार्थ बन चुकी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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