Book Title: Jain Darshan me Man
Author(s): Bacchraj Duggad
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 2
________________ बच्छराज दूगड़ कर्म - आत्मा की प्रवृत्ति के द्वारा आकृष्ट तथा उसी के साथ एकरसीभूत बना हुआ पुद्गल कर्म है ।' कर्म के विचार में नो-कर्म की अपेक्षा रहती है । कर्म विपाक की सहायक सामग्री नो-कर्म है । कर्म विपाक में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, अवस्था, पुद्गल आदि बाहरी परिस्थितियों की अपेक्षा रहती है । ८८ मन क्या है ? - मनन करना मन है अथवा जिसके द्वारा मनन किया जाता है, वह मन है । धवला में कहा गया है कि जो भली प्रकार ( ईहा, अवाय, धारणा, स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, तर्क अनुमान, आगम आदि पूर्वक ) जानता है, उसे संज्ञा या मन कहते हैं । द्रव्यसंग्रह की टीका में कहा गया है कि मन अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्पों का जाल है । इन सभी परिभाषाओं का संकलनात्मक रूप जैन सिद्धान्त दीपिका में मिलता है, जिसके अनुसार मन, इन्द्रियों के द्वारा गृहीत विषयों में प्रवृत्त होता है । वह शब्द रूप आदि सभी विषयों को जानता है तथा भूत, भविष्य और वर्तमान का संकलनात्मक ज्ञान करता है । मन के कार्य-स्मृति, चिंतन और कल्पना ही मन के कार्य हैं । यह इन्द्रिय ज्ञान का प्रवर्तक है । नन्दी सूत्र में मन के कार्यों का विभाजन इस प्रकार है- "ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता, विमर्श ।' आचार्य सिद्धसेन के अनुसार संशय, प्रतिभा, स्वप्नज्ञान, वितर्क, सुख-दुःख, क्षमा, इच्छादि मन के कार्य हैं ।" मन चेतन या अचेतन – जैन दर्शन के अनुसार मन चेतन द्रव्य और अचेतन द्रव्य के सम्मिश्रण की स्थिति में ही उत्पन्न होता है । जब आत्मा सर्वथा कर्म मुक्त होती है तो उसमें मन की स्थिति नहीं होती । इसलिए जैन- दृष्टि के अनुसार मन दो प्रकार के होते हैंएक चेतन और दूसरा पौद्गलिक । पौद्गलिक मन ज्ञानात्मक मन का सहयोगी होता है । इसके बिना ज्ञानात्मक मन अपना कार्य नहीं कर सकता । उसमें अकेले में ज्ञान-शक्ति नहीं होती दोनों के योग से मानसिक क्रियाएँ होती हैं । ज्ञानात्मक चेतना ( भावमन ) मस्तिष्क ( पौद्गलिक ) की उपज नहीं हो सकती । मन चैतन्य के विकास का एक स्तर है अतः ज्ञानात्मक है पर उसका यह कार्य जिस स्नायु मण्डल, मस्तिष्क और मनोवर्गणा की सहायता से होता है वह पौद्गलिक मन है । १. जैनसिद्धान्त दीपिका ४/१ २. प्रज्ञापना १७ ३. वही १३ ४. विशेषावश्यकभाष्य गाथा ३५२५ (मणणं व मन्नए वाडणेण ) ५. धवला १/१/१, ४/१५२/३ ६. द्रव्यसंग्रह टीका १२/३०/१ ७. जैनसिद्धान्त दीपिका २/३३ ८. नन्दीसूत्र ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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