Book Title: Jain Darshan me Dravya ki Dharna aur Vigyan Author(s): Virendra Sinha Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 4
________________ १ परमाणु का सूक्ष्म रूप नहीं मिलता है जैसा कि है। श्री बी. एल. शील का भी यही मत है कि जैन - जैन-दर्शन में । यह बात उपर्युक्त विवेचन के दार्शनिक इस तथ्य को पूरी तरह जानते थे कि धन 2 - आधार पर पूर्ण सत्य नहीं है। सच तो यह है कि और ऋण विद्य तकणों के संयोग से विद्युत की अधुनातन वैज्ञानिक प्रगति ने परमाणु की मूल्यवान उत्पत्ति होती है । आकाश में चमकने वाली विद्युत NO व्याख्या प्रस्तुत की है । स्कन्ध की धारणा विज्ञान का कारण भी परमाणुओं का स्निग्ध तथा रूक्षत्व TA की अणु (Molecule) भावना से मिलती है क्योंकि गुण है । वनस्पति तथा प्राणी जगत में भी ऋण || दो से अनन्त परमाणओं के संघात को स्कन्ध तथा धन-विद्य त का रूप यौन आकर्षण में देखा जा र (अण) की संज्ञा दी गई है जो विज्ञान और जैन- सकता है। इस प्रकार धन और ऋण का विस्तार दर्शन के समान प्रत्यय हैं। समस्त सृष्टि में व्याप्त है और यहाँ आकर जैन-दर्शन का वैज्ञानिक स्वरूप स्पष्ट स्कन्ध-निर्माण प्रक्रिया होता है। अब प्रश्न उठता है कि परमाणु स्कन्ध रूप में tal कैसे परिणत होते हैं ? इसका उत्तर विज्ञान तथा परमाणु के स्पर्श-गुण और विज्ञान जैनदर्शन में अपने-अपने तरीके से दिया है जिसमें जैन-दर्शन में परमाणओं के स्पर्श अनेक माने अनेक समानताएँ हैं । एक सबसे महत्वपूर्ण समा- गए हैं जो प्रत्यक्ष रूप से परमाणुओं के गुण तथा नता यह है कि दोनों में परमाणुओं के संघात से स्वभाव को स्पष्ट करते हैं। इन्हें स्पर्श इसलिए 8 स्कन्ध (अणु) का निर्माण होता है जिसका हेतु धन कहा जाता है कि इन्द्रियाँ इन्हें अनुभूत करती हैं। और ऋण विद्यु त हैं (+तथा-) जिसके आपसी इन स्पर्शों की संख्या आठ है जैसे, कर्कश, मृदु, लघु, II आकर्षण से स्कंध तथा पदार्थ का सृजन होता है। गुरु, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष और शीत। इस प्रकार के जैन आचार्यों ने परमाणुओं के स्वभाव को 'स्निग्ध' विभिन्न गुण वाले परमाणुओं के संश्लेष से उल्का, और रूक्ष (+और-) माना है जिससे रूक्ष तथा मेघ तथा इन्द्रधनुष आदि का सृजन होता है । आधुस्निग्ध परमाणु बिना शर्त बंध जाते हैं। इसके निक भौतिकी भी इसी तथ्य को स्वीकार करती है अतिरिक्त रूक्ष-परमाण रूक्ष से. और स्निग्ध पर- कि उल्का मेघ तथा इन्द्रधनष परमा का एक माणु स्निग्ध से, तीस से लेकर यावत् अपने गुणों विशेष संघात है। यही नहीं छाया, आतप शब्द । का बन्धन प्राप्त करते हैं। परमाणुओं के ये दो और अन्धकार को भी पुद्गल का रूप माना गया 15 विपरीत स्वभाव उनके आपसी बन्ध के कारण हैं। है। जैनाचार्यों ने पुद्गल के ध्वनिमय परिणाम को ||KC आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से पदार्थ में धन विद्य त 'शब्द' कहा है। परमाणु अशब्द है, शब्द नाना (0 (Positive Charge) और ऋण विद्य त (Negative स्कंधों के संघर्ष से उत्पन्न होता है। यही कारण है - Charge) के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। कि ध्वनि का स्वरूप कम्पनयुक्त (Viberative) होता यहाँ पर स्पष्ट रूप से ऐसा लगता है कि जैन है और इस दशा में ध्वनि, शब्द का रूप ग्रहण कर विचारकों ने परमाणु तथा पदार्थ के उन तत्वों को लेती है । आधुनिक भौतिकी के अनुसार भी ध्वनि प्राप्त कर लिया था जिनकी ओर विज्ञान गतिशील का उद्गम कंपन की दशा में होता है, उदाहरणस्वरूप १ जैन-दर्शन और आधुनिक विज्ञान, मुनि श्री नगराज, पृ. ८६ । २ पाजिटिव साइन्स आफ एन्णेंट हिन्दूज, बी. एल. शील, पृ. ३६ ३ जैन-दर्शन और आधुनिक विज्ञान, मुनि श्री नगराज, पृष्ठ ६५ २२७ तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन o साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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