Book Title: Jain Darshan me Dravya ki Dharna aur Vigyan
Author(s): Virendra Sinha
Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf

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Page 1
________________ OVE JAMANEMALove INSTA वैज्ञानिक शक्ति-मूल्य और ज्ञान-मूल्य आधुनिक युग विज्ञान का युग है । विज्ञान एक ऐसी सबल मानवीय क्रिया या अनुशासन है जिसने ज्ञान के क्षेत्रों को केवल प्रभावितं । ही नहीं किया है, वरन् विश्व और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को उद्घाटित किया है। वैज्ञानिक-ज्ञान के दो पक्ष हैं जो दो प्रकार के मूल्यों की सृष्टि करते हैं-एक शक्ति-मूल्य और दूसरे प्रेम या ज्ञान-मूल्य । जहाँ तक शक्ति-मूल्य का सम्बन्ध है, वह तकनीकी विज्ञान से सम्बन्धित है जैन-दर्शन में 'द्रव्य' जो अन्तर्राष्ट्रीय धरातल पर प्रतिस्पर्धा का विषय बनता जा रहा है। इसके द्वारा शक्ति और संघर्ष मूल्यों को इस कदर वृद्धि होती जा रही । को धारणा और है कि आधुनिक मानव विज्ञान को केवल शक्ति-संचय का साधन मानता जा रहा है। दूसरी ओर, विज्ञान का वह महत्त्वपूर्ण पक्ष है विज्ञान जो प्रेम या ज्ञान-मूल्य का सृजन करता है जिसकी ओर हमारा ध्यान । कम जाता है। सत्य में विज्ञान का यह ज्ञान-मल्य ही 'प्रतिमानों की रचना करता है जो मानवीय संदर्भ को अर्थवत्ता प्रदान करता है। इसी से ज्ञान का महत्व मानव तथा विश्व से है और प्रत्येक मानवीय क्रिया मानव और उससे सम्बन्धित विश्व-संदर्भ के लिए ही है। यह ज्ञान प्राप्त करने का मनोभाव विज्ञान का भी सत्य है। रहस्यवादी, प्रेमी, कवि, दार्शनिक, सभी सत्यान्वेषी होते हैं, यह बात दूसरी है कि उनका 'अन्वेषण' उस पद्धति को स्वीकार न करता हो जो वैज्ञानिक अन्वेषण में स्वीकार की जाती है। इस कारण से रहस्यवादी और कलाकार हमारे लिए किसी भी दशा में कम सम्मान के पात्र नहीं है, क्योंकि एक वैज्ञानिक के समान ही वे भी ज्ञान और सत्य के -डॉ. वीरेन्द्र सिंह अन्वेषी हैं । ५-झ-१५, जवाहर नगर जयपुर-३०२००४ प्रेम के प्रत्येक स्वरूप के द्वारा हम 'प्रिय' के ज्ञान का साक्षात्कार करना चाहते हैं। यह साक्षात्कार शक्ति प्राप्त करने के लिए नहीं होता है, वरन् उसका सम्बन्ध आन्तरिक उल्लास और ज्ञान के साक्षाकार के लिए होता है । अतः ज्ञान स्वयं में एक मूल्य है जो वैज्ञानिक ज्ञान के लिए भी उतना सत्य है जितना अन्य ज्ञान-क्षेत्रों के लिए । विज्ञान का आरम्भ इसी प्रेम-ज्ञान का रूप है क्योंकि वैज्ञानिक भी वस्तुओं, दृश्यों, घटनाओं और पिण्डों आदि से एकात्म को अनुभूति कर उनके रहस्य का उद्घाटन करता है । १. द साइन्टिफिक इन्साइट, बड रसेल, पृष्ठ २०० तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ , AD Jain Education International For private Personal use only www.jainelibrary.org

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